एक चलन था- साम्प्रदायिक हिंसा विधेयक, माने हिन्दू विरोधी सारी हिंसा माफ और हिन्दू की आक्रांता, इसी तरह है वक्फ कानून, जिसमें बार-बार मुसलमानों को निर्बाध कब्जे का अधिकारी बनाया गया। वहीं तीसरा पक्ष है- पूजा स्थल विधेयक, जो हिन्दुओं को अपने छीने गए पूजास्थलों को भूल जाने के लिए बाध्य करता है- क्या है यह चलन!
आज भारत मेें रेलवे और सेना के बाद वक्फ बोर्ड के पास सबसे अधिक जमीन है। दुर्भाग्य से वक्फ बोर्ड की संपत्ति बढ़ती जा रही है। अंग्रेजों ने मुसलमानों की मजहबी संपत्ति (मस्जिद, मजार, कब्रिस्तान आदि) की देखरेख के लिए 7 मार्च, 1913 को एक कानून बनाया। इसके बाद 5 अगस्त, 1923, 25 जुलाई, 1930 और 7 अक्तूबर, 1937 को इस कानून में कुछ और प्रावधान जोड़े गए।
स्वतंत्र भारत में पहला वक्फ कानून 1954 में बना, जिसमें वक्फ बोर्ड को असीमित अधिकार दिए गए। इसके बाद 1984 और 1995 में भी इस बोर्ड को शक्तिशाली बनाया गया। इस कानून के अनुसार यदि किसी गैर-मुस्लिम की संपत्ति वक्फ बोर्ड में दर्ज हो गई तो आदेश की तारीख से एक साल के अंदर वक्फ बोर्ड में मुकदमा करिए और यदि आपको आदेश के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली तो आपकी संपत्ति हमेशा के लिए गई।
इसके बाद 20 सितंबर, 2013 को वक्फ कानून में कुछ संशोधन कर वक्फ बोर्ड को अपार शक्तियां दे दी गई। इन शक्तियों का इस्तेमाल जमीन कब्जाने के लिए किया जाने लगा है। इसे समझने के लिए वक्फ कानून की कुछ धाराओं को देख सकते हैं। वक्फ कानून-1995 की धारा 40 के अनुसार कोई भी व्यक्ति वक्फ बोर्ड में एक अर्जी लगाकर अपनी संपत्ति वक्फ बोर्ड को दे सकता है। यदि किसी कारण से वह संपत्ति बोर्ड में पंजीकृत नहीं होती है तो भी 50 साल बाद वह संपत्ति वक्फ संपत्ति हो जाती है।
इस कारण सैकड़ों अवैध मजारें और मस्जिदें वक्फ संपत्ति हो चुकी हैं। धारा 40 में यह भी प्रावधान है कि किसी भी संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित करने से पहले उसके मालिक को सूचित करना जरूरी नहीं है। धारा 52 कहती है कि यदि किसी की जमीन, जो वक्फ में पंजीकृत है, उस पर किसी ने कब्जा कर लिया है तो वक्फ बोर्ड जिला दंडाधिकारी से जमीन का कब्जा वापस दिलाने के लिए कहेगा। नियमत: जिला दंडाधिकरी 30 दिन के अंदर जमीन वापस दिलवाएगा।
धारा 107 के अनुसार वक्फ संपत्ति वापस लेने के लिए कोई तय समय-सीमा नहीं है, जबकि हिंदू धार्मिक संपत्तियों को ऐसी छूट नहीं है। ऊपर से 1991 में पूजा स्थल विधेयक कानून पारित कर हिंदुओं से यह अधिकार ले लिया गया है कि 15 अगस्त, 1947 से पहले टूटे मंदिरों को वापस नहीं ले सकते हैं।
धारा 89 में व्यवस्था है कि वक्फ बोर्ड के विरुद्ध कोई भी दावा करने से पहले 60 दिन पूर्व नोटिस देना आवश्यक है। ऐसा कोई प्रावधान किसी हिंदू ट्रस्ट/मठ की संपत्ति के बारे में नहीं है। धारा 90 के अनुसार वक्फ प्राधिकरण के समक्ष दाखिल संपत्ति पर कब्जा या मुतवल्ली (केयरटेकर) के अधिकार से संबंधित कोई वाद लाया जाता है तो प्राधिकरण उसी व्यक्ति के खर्चे पर बोर्ड को नोटिस जारी करेगा, जिसने वाद दायर किया है।
धारा 91 में यह व्यवस्था है कि यदि वक्फ बोर्ड की कोई जमीन सरकार द्वारा अधिगृहित की जानी है तो पहले वक्फ बोर्ड को बताया जाएगा। धारा 104 (बी.), जो कि 2013 में जोड़ी गई है, इसमें व्यवस्था है कि यदि किसी सरकारी एजेंसी ने वक्फ संपत्ति पर कब्जा कर लिया है तो उसे बोर्ड या दावेदार को प्राधिकरण के आदेश पर छह महीने के अंदर वापस करना होगा।
धारा 107 के अनुसार वक्फ संपत्ति वापस लेने के लिए कोई तय समय-सीमा नहीं है, जबकि हिंदू धार्मिक संपत्तियों को ऐसी छूट नहीं है। ऊपर से 1991 में पूजा स्थल विधेयक कानून पारित कर हिंदुओं से यह अधिकार ले लिया गया है कि 15 अगस्त, 1947 से पहले टूटे मंदिरों को वापस नहीं ले सकते हैं।
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