भारत में लोगों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने के लिए किए जा रहे प्रयासों की दुनियाभर में प्रशंसा हो रही है। विश्व बैंक के प्रमुख अजय बंगा ने भी कहा है कि भारत जिस तरह विकास और रोजगार की बदौलत गरीबी से मुकाबला कर रहा है, उससे गरीबी को तेजी से कम किया जा सकता है।
दमोह जिले के एक छोटे-से गांव में रहने वाली मनीषा अहिरवार और उसका परिवार कोरोना की पहली लहर में अपने गांव लौट गया था। मनीषा के परिवार के पास खेत के नाम पर सिर्फ 3 बीघा जमीन थी, इसलिए अपने बच्चों को छोड़कर वह पति के साथ फरीदाबाद में मजदूरी करती थी। लेकिन कोरोना काल बीतने के बाद भी मनीषा और उसका परिवार मजदूरी करने वापस दिल्ली-एनसीआर में नहीं आया। घरेलू सहायिका का काम करने वाली मनीषा कहती है कि अब वह दूसरों के घर मजदूरी करने क्यों जाए, जबकि गांव में ही अच्छी कमाई हो रही है।
दरअसल, मनीषा की ससुराल के पड़ोस के गांव में एक किसान मोती की खेती करता था, जिससे उसे अच्छी कमाई होती थी। मनीषा और उसके पति को भी इससे मोती की खेती की प्रेरणा मिली। दंपति ने अपने खेत में तालाब बनाकर मोती की खेती शुरू की। इसके लिए उन्होंने बाकायदा प्रशिक्षण लिया। प्रशिक्षण से लेकर बाकी व्यवस्था एक निजी कंपनी ने की, जो अब इनसे मोती भी खरीदती है। कुछ माह में ही मनीषा ने गांव में अपना पक्का घर बना लिया और पति ने मोटरसाइकिल खरीद ली।
बुंदेलखंड के इस इलाके में सूखे की मार किसानों को मजदूर बना देती देती थी। इसलिए रोजगार की तलाश में वे पूरे देश में जाते थे। लेकिन अब समय बदलने लगा है। सरकार ने सूखाग्रस्त बुंदेलखंड में कई योजनाएं शुरू की हैं। इस कारण ग्रामीण क्षेत्रों में खुशहाली लौट रही है। गरीबों के पास अपना घर, पीने का पानी, रसोई गैस और बैंक खाता सहित सभी सुविधाएं हैं। इन्हें सबसे बड़ा लाभ प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) से हुआ है। सरकार द्वारा जनधन के तहत जिन 48 करोड़ से अधिक लोगों के बैंक खाते खोले गए हैं, उनमें अधिकांश गरीबी रेखा से नीचे या गरीबी रेखा के मापदंडों के आसपास ही हैं।
नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले 13.5 करोड़ लोग गरीबी रेखा से ऊपर आ गए हैं। मतलब उनके खान-पान, शिक्षा, रहन-सहन इत्यादि में बड़ा सकारात्मक बदलाव आया है। नीति आयोग ने बहुआयामी गरीबी सूचकांक तैयार किया है
जनधन खातों की भूमिका
2011 तक देश में तीन में सिर्फएक व्यक्ति के पास बैंक खाता था, लेकिन अब देश की 80 प्रतिशत आबादी के पास बैंक खाता है। जिन जनधन खातों को बैंकों के लिए बोझ बताया जाता था, उन खातों में लगभग 2 लाख करोड़ रुपये जमा हैं। देश में गरीबी मिटाने में जनधन खातों ने बड़ी भूमिका निभाई है। जनधन खाता खुलने के बाद देश में गरीबों के पास सीधे सरकारी मदद पहुंचने लगी है, जो पहले भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती थी। लिहाजा, देश में गरीबों की संख्या में भारी कमी आई है।
स्वदेशी जागरण मंच के सह-संगठक सतीश कुमार के अनुसार, जनधन खातों में भी 26 करोड़ खाते महिलाओं के हैं, जो बचत के पैसे अपने बैंक खातों में डाल रही हैं। इस बचत ने गरीब परिवारों को अपने पैरों पर खड़ा किया है। बचतों के पैसों से गरीब परिवार छोटे-छोटे रोजगार कर रहे हैं। इसका बड़ा असर हुआ है। नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले 13.5 करोड़ लोग गरीबी रेखा से ऊपर आ गए हैं। मतलब उनके खान-पान, शिक्षा, रहन-सहन इत्यादि में बड़ा सकारात्मक बदलाव आया है। नीति आयोग ने बहुआयामी गरीबी सूचकांक का दूसरा संस्करण तैयार किया है। इस तरह का पहला संस्करण नवंबर 2021 में जारी किया गया था। 2015-16 के परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) और 2019-21 के एनएफएचएस की तुलना के आधार पर तैयार रिपोर्ट ‘राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक: एक प्रगति समीक्षा 2023’ के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबों की संख्या 32.59 प्रतिशत से घटकर 19.28 प्रतिशत पर आ गई है। जिन ग्रामीण क्षेत्रों के लिए मौजूदा केंद्र सरकार ने सबसे अधिक योजनाएं शुरू कीं, उससे लोगों के जीवन में बहुत बड़ा बदलाव आया है। दूसरी ओर शहरी इलाकों में गरीबी दर 8.65 से घटकर 5.27 प्रतिशत रह गई है। इसका मतलब यह है कि गांवों में अभी भी शहरों की तुलना में तीन गुना अधिक गरीबी है।
उत्तर प्रदेश अव्वल
रिपोर्ट के अनुसार, आबादी की दृष्टि से देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश ने गरीबों का जीवन बदलने में बड़ी भूमिका निभाई है। यहां गरीबों की संख्या में 3.43 करोड़ की बड़ी गिरावट आई है। इसके बाद बिहार, मध्य प्रदेश, ओडिशा और राजस्थान का स्थान है। रिपोर्ट के अनुसार, गरीबी कम करने में पोषण में सुधार, स्कूली शिक्षा, स्वच्छता और घरेलू गैस की भूमिका महत्वपूर्ण रही। केंद्र सरकार ने 2030 तक गरीबी रेखा के नीचे रहने वालों की संख्या को आधी करने का लक्ष्य रखा था, लेकिन यह रिपोर्ट कहती है कि यह लक्ष्य काफी पहले ही हासिल हो जाएगा। इससे पहले नवंबर 2021 में राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) जारी किया गया था।
खुला खुशहाली का झरोखा
झारखंड का एक गांव है-लकरजोरी। यह गोड्डा जिले के पथरगामा प्रखंड की सोनारचक पंचायत में पड़ता है। इस गांव में केवल 25 घर हैं, वह भी कच्चे। इनके पास खेती के नाम पर जमीन का एक टुकड़ा है। कुछ वर्ष पहले तक अधिकांश ग्रामीण दाने-दाने को मोहताज थे। अब केंद्र सरकार की योजनाओं ने गांव की तस्वीर ही बदल दी है। गांव की खुशहाली में स्वच्छ भारत अभियान, प्रधानमंत्री आवास योजना, किसान सम्मान निधि, फसल बीमा सहित तमाम योजनाओं और महिला स्वयं सहायता समूह का बड़ा योगदान है। 10वीं पास युवाओं को प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के अंतर्गत मोटर मैकेनिक और लड़कियों को कंप्यूटर आदि का प्रशिक्षण मिल रहा है।
पट्टे पर खेती करने वाले गोपाल महतो कहते हैं, ‘‘पिछले कुछ वर्षों में गांव में बड़ा बदलाव आया है। अब कोई भूखा नहीं रहता। भारत सरकार द्वारा गरीबों को मुफ्त में अनाज मिल रहा है। खाने पर जो पैसा खर्च होता था, वह बच रहा है।’’
पशुपालक करमचंद महतो कहते हैं, ‘‘सरकारी प्रयासों और योजनाओं ने जीवन को बेहतर बना दिया है। गांव तक पक्की सड़क आ गई है। पहले सिंचाई के लिए हम वर्षा पर निर्भर थे, अब गांव में बिजली आने से सिंचाई आसान हो गई है, जिससे कमाई भी होने लगी है।’’
किसान लालधारी महतो कहते हैं,‘‘गांव के ज्यादातर लोगों के पास एक बीघा से भी कम जमीन है। इससे एक परिवार का गुजारा नहीं हो सकता। कभी फसल अच्छी हो जाती है, तो कभी बिल्कुल नहीं होती। ऐसे में किसान सम्मान निधि से मिलने वाली मदद से बीज खरीद लेते हैं। इसके बाद कुछ बचता है, तो खेती से संबंधित अन्य वस्तुएं खरीद लेते हैं।’’
गांव में तीन महिला स्वयं सहायता समूह हैं- राधे महिला मंडल, मां दुर्गा महिला मंडल और गायत्री महिला मंडल। राधे महिला मंडल की अध्यक्ष वीणा देवी ने बताया, ‘‘हर महिला मंडल को भारतीय स्टेट बैंक 15,000 रु. का अनुदान देता है। यह पैसा जरूरतमंद बहनों को मात्र एक रुपये सालाना ब्याज पर दिया जाता है। एक वर्ष बाद बैंक सिर्फ 80 पैसे सालाना ब्याज पर मंडल को 50,000 रु. कर्ज देता है। अगले वर्ष कर्ज की राशि 1,00,000 रु. हो जाती है। जैसे-जैसे मंडल के गठन का वर्ष बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे बैंक की ओर से मिलने
वाली ऋण की राशि भी बढ़ती जाती है। महिला मंडल से रोजगार के लिए ग्रामीणों को मामूली ब्याज पर आसानी से कर्ज मिल जाता है।’’
पहले गांव में एक-दो लोगों के पास ही साइकिल थी, लेकिन अब गांव में आठ मोटरसाइकिल और दो आटोरिक्शा हैं। गांव के युवा 60,000 रु. जमा कर किस्त पर आॅटोरिक्शा खरीद कर ठीक-ठाक पैसा कमा रहे हैं। उन्हें कहीं बाहर जाने की जरूरत नहीं पड़ रही। अरुण कुमार सिंह
गरीबी का मापदंड
आयोग के उपाध्यक्ष सुमन बेरी द्वारा गत 17 जुलाई को जारी रिपोर्ट में कुल मिलाकर 12 ऐसे बिंदु हैं, जिनके आधार पर जीवन स्तर को देखा जाता है। इसमें पोषण, बाल और किशोर मृत्यु दर, मातृ स्वास्थ्य, स्कूली शिक्षा के वर्ष, स्कूल में उपस्थिति, खाना पकाने का ईंधन, स्वच्छता, पीने का पानी, बिजली, आवास, संपत्ति और बैंक खाते शामिल हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि सभी 12 संकेतकों में उल्लेखनीय सुधार देखा गया है, जिससे गरीबी में कमी आई है। इसी के साथ देश में इंटरनेट का प्रयोग भी काफी बढ़ा है। आंकड़ों के अनुसार, देश के शहरी क्षेत्रों में 51.8 प्रतिशत महिला व 72.5 प्रतिशत पुरुष तथा ग्रामीण इलाकों में 24.6 प्रतिशत महिला व 48.7 प्रतिशत पुरुष इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2019-21 के आंकड़ों के अनुसार, इंटरनेट के उपयोग को लेकर ग्रामीण और शहरी क्षेत्र के बीच अभी अंतर तो है, लेकिन यह धीरे-धीरे घट रहा है। इंटरनेट के जरिए किसान फसलों के भाव से लेकर खेती की नई-नई तकनीक और मार्केटिंग के गुर भी सीख रहे हैं। इस वजह से गांवों में गरीबी के स्तर में कमी आई है।
कुछ दिन पहले संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) ने भी कहा था कि भारत में लगभग 41 करोड़ लोग गरीबी रेखा से ऊपर आए हैं। भारत में लोगों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने के लिए किए जा रहे प्रयासों की दुनियाभर में प्रशंसा हो रही है। विश्व बैंक के प्रमुख अजय बंगा ने भी कहा है कि भारत जिस तरह विकास और रोजगार की बदौलत गरीबी से मुकाबला कर रहा है, उससे गरीबी को तेजी से कम किया जा सकता है।
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