आखिरकार 9 साल बाद ब्रिटेन ने एक खास रिपोर्ट में यह माना है कि जिहादी गुट आईएस यानी इस्लामिक स्टेट ने यजीदियों का नरसंहार किया था। हालांकि अमेरिका और जर्मनी बहुत पहले बता चुके हैं कि 2014 में आईएस ने यजीदियों का नरसंहार शुरू किया था। यजीदी इराक के अल्पसंख्यक वर्ग से आते हैं और उनकी उपासना पद्धति इस्लामी नहीं होती। अमेरिका ने तब बताया था कि यजीदियों को आईएस के जिहादी फांसी, सामूहिक बलात्कार, यौन गुलामी तथा जबरन मजदूरी के साथ कन्वर्जन का शिकार बना रहे हैं।
इराक में आईएस के जिहादी हत्यारों ने यजीदियों की सामूहिक हत्याएं की थीं। इसे ब्रिटेन ने अब औपचारिक स्तर पर नरसंहार की संज्ञा दी है। ब्रिटेन के अब इसे नरसंहार बताने से बहुत पहले, 2021 में जर्मनी की एक अदालत ने इराक तथा सीरिया में यजीदियों के नरसंहार में लिप्त रहे एक पूर्व आईएस जिहादी को उम्र कैद की सजा दी थी। इस प्रकरण के बाद जर्मनी के सांसदों ने भी स्वीकारा था कि इराक में आईएस के जिहादियों ने जबरदस्त नरसंहार रचाया था।
अब ब्रिटेन की सरकार ने इस पर जो आधिकारिक वक्तव्य जारी किया है, उसमें कहा है कि मध्य पूर्व के राज्य मंत्री ने यजीदियों के विरुद्ध आईएस के दमन को नौ साल हो चुके हैं। उन्होंने माना कि साल 2014 में यजीदी लोगों का आईएस ने सामूहिक नरसंहार किया था। इसकी भयावहता आज भी उस समुदाय के अंदर देखी जा सकती है।
ब्रिटेन में मध्य पूर्व के राज्य मंत्री लॉर्ड अहमद ने अपने इस वक्तव्य में आगे कहा कि इस नरसंहार की वजह से अनेक लोगों की जिंदगी बर्बाद हो गई। इसलिए जरूरी है कि उन्हें न्याय मिले और उसके जिम्मेदारों को चिन्हित किया जाए।
2014 में जिहादी गुट आईएसआईएस ने इराक के यजीदियों का नरसंहार करना शुरू किया था। इसमें यजीदियों को अमानवीय यातनाएं दी गई थीं, यजीदी लड़कियों को जबरन यौन गुलाम बनाया गया था, बलात्कार किए गए थे, फांसी पर लटकाया गया था, मजदूरी करने को विवश किया गया था, उन्हें इस्लाम में कन्वर्ट किया गया था। उस साल इस्लामी जिहादियों ने हजारों की तादाद में यजीदियों की हत्या की थी।
लॉर्ड अहमद इस वक्तव्य को सामने रखने के पीछे वजह बताते हैं कि इससे उनकी यजीदियों को न्याया दिलाने के प्रति गंभीरता प्रकट होती है। इस मौके पर अहमद का कहना था कि ब्रिटेन नि:संदेह जिहादी गुट इस्लामिक स्टेट को जड़ से मिटाने में अपनी भूमिका से पीछे नहीं हटेगा। उनका देश यह काम करते रहने वाला है। इसके साथ ही जिहाद के शिकार हुए लोगों को फिर से संबल देने का काम करना है और दुनिया भर में जिहादी प्रचार के विरुद्ध दुनिया में चल रहीं कोशिशों में बढ़—चढ़कर जुड़े रहना है।
उल्लेखनीय है कि साल 2014 में जिहादी गुट आईएसआईएस ने इराक के यजीदियों का नरसंहार करना शुरू किया था। इसमें यजीदियों को अमानवीय यातनाएं दी गई थीं, यजीदी लड़कियों को जबरन यौन गुलाम बनाया गया था, बलात्कार किए गए थे, फांसी पर लटकाया गया था, मजदूरी करने को विवश किया गया था, उन्हें इस्लाम में कन्वर्ट किया गया था। उस साल इस्लामी जिहादियों ने हजारों की तादाद में यजीदियों की हत्या की थी। एक आंकड़े के अनुसार, लगभग 7,000 यजीदी महिलाओं तथा लड़कियों को अपना गुलाम बनाया था। इस नरसंहार के खौफ की वजह से लगभग साढ़े 5 लाख यजीदियों ने इराक के उत्तरी हिस्से से पलायन किया था।
असल में यजीदी समुदाय प्राचीन काल से ही अपनी विशिष्ट उपासना पद्धति के साथ पूर्वी सीरिया तथा उत्तर-पश्चिमी इराक में रहता आया है। वहां वह एक मजहबी अल्पसंख्यक समुदाय माना जाता है। इस्लामी जिहादी गुट इस्लामिक स्टेट यजीदियों को उनकी अलग उपासना पद्धति की वजह से ‘शैतान को पूजने वाले’ मानता है।
उल्लेखनीय है कि साल 2021 में ही संयुक्त राष्ट्र ने माना था कि इस्लामिक स्टेट इन इराक एंड द लेवांत यानी आईएसआईएल/दाएश ने यजीदियों का नरसंहार किया था। यजीदियों के नरसंहार के बारे में आज दुनिया जानती है, लेकिन तो भी आज ये जितने भी बचे हैं वे डर के साए में जीने को विवश हैं। सिर्फ इराक तथा सीरिया की बात करें तो आज भी 3,60,000 से ज्यादा यजीदी लोग राहत शिविरों में बदतर जिंदगी जीने को विवश हैं।
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