कर्नाटक में उडुपी में जो हुआ है, उस जघन्य अपराध को एक आवरण में डालकर यह स्थापित करने का प्रयास किया जा रहा है कि वह दरअसल बहुत ही छोटी बात है, छोटा मोटा मजाक था। यह छोटा-मोटा शब्द उन लोगों के तमाम अपराधों पर पर्दा डालने के लिए प्रयोग किया जाता है, जो खुद को सामाजिक न्याय का पर्याय ही बताते रहते हैं या फिर कहते हैं कि वह न्याय दिलाते हैं। मगर वह तथ्यों को अपने अनुसार तोड़ मरोड़कर भी प्रस्तुत करते हैं, जिससे वह जिनके पक्ष में एजेंडा चलाते हैं उनका अपराध कम दिखने लगे।
रिपोर्ट्स के अनुसार उडुपी प्राइवेट नर्सिंग स्कूल की तीनों लड़कियां जिन्हें वीडियो भेजती थीं, उनमें से ही किसी ने सोशल मीडिया पर यह वीडियो वायरल कर दिया और उसके बाद इस मामले के विषय में पता चला। परन्तु जितनी खतरनाक यह घटना है, उतना ही खतरनाक उसका बचाव है। क्योंकि जब इन तीनों मुस्लिम लडकियों को पकड़ लिया गया तो उन्होंने कहा कि वह केवल प्रैंक कर रही थीं और कॉलेज भी इसे रफा-दफा करना चाहता है। परन्तु क्या किसी लड़की का ऐसे वीडियो बनाना मात्र प्रैंक की श्रेणी में आ सकता है? क्या यह मामला ऐसा नहीं है जिस पर व्यापक विमर्श होना चाहिए कि कैसे लड़कियों की देह को धर्म के नाम पर निशाना बनाया जा रहा है?
क्या इन लड़कियों की पीड़ा इसलिए विमर्श में पीड़ा बनकर नहीं आ रही है क्योंकि पीड़ित समुदाय कथित अल्पसंख्यक समाज की लड़कियों से पीड़ित हैं और विमर्श में तो हमेशा अल्पसंख्यक ही पीड़ित हैं। यह कैसी चुप्पी इस समय महिला विमर्श के क्षेत्र में छाई हुई है, जिसमें इस भयानक घटना के दुष्परिणाम भी नहीं देखे जा रहे हैं? क्या यह घटना जल्दी पकड़ में आ गयी इसलिए अब इसे किसी न किसी तरह रफा-दफा किया जा रहा है? क्या कारण है कि कॉलेज प्रशासन इसे जबरन रैगिंग जैसी घटना बता रहा है?
कई तहों में चुप्पियों का विमर्श घातक है
ये चुप्पियां कई स्तर पर हैं। सबसे पहले तो यही कि यह बात आखिर छिपाई किसलिए गयी और जब यह बात सामने आई कि इसके पीछे मुस्लिम लड़कियां हैं, तो कर्नाटक पुलिस उन लोगों को शांत कराने में लग गई। एक्टिविस्ट रश्मि सामंत ने जब एक ट्वीट किया कि आखिर अलीमातुल शैफा, शहबानाज़ और आलिया के बारे में कोई बात क्यों नहीं कर रहा है और उसके बाद फिर उन्हें निशाने पर लिया जाने लगा। 19 जुलाई को यह घटना हुई थी और फिर 24 जुलाई को जब उन्होंने यह ट्वीट किया तो उसके बाद वह निशाने पर आ गईं और वह भी जुबैर के निशाने पर। यह वही जुबैर है जिसने भारतीय जनता पार्टी की निलंबित नेता नुपुर शर्मा की क्लिप सोशल मीडिया पर डाली थी। रश्मि सामंत हिंदू मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं और ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में छात्र संघ की अध्यक्ष रह चुकी हैं। रश्मि सामंत स्वयं उडुपी की हैं तो उन्होंने ट्वीट किया था कि चूंकि वह स्वयं उडुपी से हैं, तो उन तीनों लड़कियों के बारे में कोई क्यों नहीं बात कर रहा, जिन्होंने सैकड़ों हिन्दू लड़कियों के वीडियो और पोस्ट बनाकर साझा किए हुए हैं।
कर्नाटक पुलिस रश्मि के घर पहुंची। रश्मि के वकील के अनुसार पुलिस द्वारा रश्मि के पिता को कई कॉल की गईं और जिसमें उन्होंने रश्मि का पता लगाने का प्रयास किया। यह पूरी तरह से स्पष्ट था कि पुलिस रश्मि सामंत द्वारा किए गए ट्वीट के विषय में ही बात करने के लिए गयी थी।
रश्मि सामंत ने इस सम्बन्ध में ट्वीट करते हुए लिखा था कि
जैसे इस मामले में भी देखा जा रहा है कि डिस्कोर्स का सारा का सारा मुंह केवल इस बात पर मोड़ा जा रहा है कि वह तो प्रैंक था, तो ऐसे में प्रश्न यह उठता ही है कि कैसे बिना जांच के यह बताया गया कि यह प्रैंक है? क्या किसी लड़की का निर्वस्त्र वीडियो सर्कुलेट करना प्रैंक की श्रेणी मी आ सकता है? और यदि सोचकर देखा जाए कि यदि स्थिति विपरीत होती अर्थात प्रताड़ित लड़कियां मुस्लिम होतीं तो ? उस समय क्या विमर्श बनता ? कुछ लोग इस बात का भी संकेत दे रहे हैं कि यह मामला कहीं न कहीं अजमेर जैसा ही तो नहीं है? अजमेर सेक्स स्कैंडल में भी तमाम लड़कियों के साथ क्या हुआ था, वह जब बाद में पता चला था तो पूरा देश सिहर गया था।
इसकी जांच होनी चाहिए। परन्तु जांच से पहले ही इसे प्रैंक कहकर नकारा जाना और इसकी गंभीरता को कम करके विमर्श को विकृत करना अत्यंत भयावह है और यह इस बात की ओर भी संकेत करता है कि यदि अपराध करने वाली मुस्लिम महिलाएं हैं तो उन पर प्रश्न ही न किया जाए ! कट्टरपंथियों की ट्रोल आर्मी ने सोशल मीडिया पर आवाज दबाने की कोशिश की। लेकिन रश्मि सामंत ने ट्रोल आर्मी के सामने झुकने से इंकार किया और अडिग रहीं। जिससे मामला प्रैंक के विमर्श से आगे बढ़ा और उन तीनों लड़कियों पर एफआईआर दर्ज हुई।
टिप्पणियाँ