दिल्ली में 426.55 किलोमीटर प्राकृतिक नाले हैं और करीब 3311.54 किलोमीटर बनाए गए स्टॉर्म वॉटर नाले, जिनमें सुधार करना होगा।
दिल्ली में फ्लैश फ्लड की स्थिति चिंताजनक है। जलवायु बदलाव हमारी जिंदगी पर बुरा असर डाल रहा है। ऐसे मामले अभी और बढ़ेंगे। लेकिन कुछ जरूरी कदम उठाकर हम ऐसी स्थितियों से निपट सकते हैं। सबसे जरूरी बात है कि पानी के रास्ते के अतिक्रमण हटे, जल स्रोतों और नदियों की सफाई हो, उन्हें गहरा किया जाए।
नदियों, तालाबों और पोखरों के आसपास पानी को प्राकृतिक रूप से सोखने के लिए बायो-ड्रेनेज भी प्रभावी कदम साबित होंगे।
जल निकासी प्रणाली (ड्रेनेज सिस्टम) में सुधार किया जाए और यमुना नदी के बहाव क्षेत्र के लिए बने मास्टर प्लान पर तेजी से काम हो। इसके अलावा, पोरस पेवमेंट भी बड़ा समाधान हो सकते हैं। यह जरूरी है कि पानी को रोके रखने वाली सतह पानी को नीचे जाने का रास्ता दे। इससे भूगर्भ में पानी जाएगा और बाहर के तापमान में भी कमी आएगी। शहरी निर्माण का पानी के प्रति संवेदनशील होना जरूरी है।
बारिश के पानी के संरक्षण के लिए बड़े खुले मैदान और पार्क निचले हिस्से में बनाए जाएं। शहर के नियोजन में बड़े पार्कों को जल शोधन की विकेंद्रीकृत व्यवस्था से जोड़ा जाए और पार्कों के रखरखाव, धुलाई आदि के लिए शोधित पानी के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जाए।
फिलहाल दिल्ली में 426.55 किलोमीटर प्राकृतिक नाले हैं और करीब 3311.54 किलोमीटर बनाए गए स्टॉर्म वॉटर नाले, जिनमें सुधार करना होगा। नदियों, तालाबों और पोखरों के आसपास पानी को प्राकृतिक रूप से सोखने के लिए बायो-ड्रेनेज भी प्रभावी कदम साबित होंगे।
– हिमांशु अग्रवाल
सड़क तकनीक विशेषज्ञ, गुजरात
(प्रस्तुति- क्षिप्रा माथुर)
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