आज छत्तरपुर के गढ़ा से निकलकर सनातन धर्म को मानने वाले हर भारतीय घर में चर्चित है, बागेश्वरधाम बाबा उर्फ धीरेन्द्र शास्त्री का नाम। श्री धीरेंद्र शास्त्री जी का संकल्प भारत को हिंदू राष्ट्र बनाना है। इसके बाद के मार्ग के बारे में भी शास्त्री जी स्पष्ट हैं। कन्वर्जन, बदलती जनांकिकी, घर वापसी, हिंदू राष्ट्र, उन्हें बदनाम करने के षड्यंत्र जैसे तमाम विषयों पर समाज में जागृति और सेवा कार्य में जुटे धीरेंद्र शास्त्री से पाञ्चजन्य की ओर से तृप्ति श्रीवास्तव की बातचीत के खास अंश-
आप जहां भी जाते हैं, लोग इंतजार में खड़े रहते हैं। जब आपने गढ़ा में कथावाचन शुरू किया और उसके कुछ ही समय में देश-विदेश में जिस तरह का आपका नाम हुआ है, क्या आपको लगता है कि यह जो कृपा है, वह भगवान की है या कोई चमत्कार है?
जिंदगी में स्वयं इंसान से बड़ा कोई चमत्कार नहीं है। दूसरी बात, हमने न तो अब तक कोई चमत्कार किया है और न हम कोई चमत्कार करते हैं। परमात्मा में आस्था रखने वाले, बागेश्वर जी को ध्यान में रखने वाले, हनुमान जी को भजने वाले एवं उनसे जुड़ने वालों की जिंदगी में चमत्कार हो जाता है। इसमें हमारी कोई मध्यस्थता नहीं है। बागेश्वर हनुमान जी की कृपा है। रही बात कम समय में, तो बात यह है कि परमात्मा अवस्था नहीं देखता। परमात्मा संकल्प की व्यवस्था देखता है। आपका संकल्प क्या है और उसकी व्यवस्था क्या है? जब व्यवस्था, संकल्प और ध्येय, सनातन वैदिक परंपरा की पुनर्स्थापना और संस्कृति के संरक्षण के लिए हो तो निश्चित रूप से प्रसिद्धि, यश स्वभाववश इस रास्ते में मिल जाता है।
भक्त तो सभी होते हैं। क्या आपको नहीं लगता कि शायद किसी विशेष उद्देश्य के लिए आपके ऊपर विशेष कृपा है?
हमने ऐसा माना नहीं, परंतु ईश्वर किसी-किसी को निमित्त चुनता है। गुरुदेव ने हमें आज्ञा दी तो हमने यह कार्य किया। हम अपने गुरु की आज्ञा को स्वीकार करके अपने कार्य में लग गये। रही बात विशेष की तो इसमें एक कारण हो सकता है। हमने अपने गुरुदेव और बालाजी से कभी भी अपने लिए कुछ नहीं मांगा। राष्ट्र के लिए मांगा और शायद यही बात उनको पसंद आयी होगी। जिनके भी मन में ये भाव रहते हैं, वे सदा ही ऐसी कृपा को प्राप्त कर सकते हैं।
आपने सनातन धर्म की बात की। भारत में बहुसंख्यक समाज हिंदू है। ऐसे में क्या आवश्यकता पड़ी कि आपको बोलना पड़ा कि सनातन की रक्षा के लिए आपको आगे आना पड़ा?
वर्तमान परिवेश में जो परिस्थितियां हैं, उन परिस्थितियों को दृष्टि में रखते हुए हमें यह बोलना पड़ रहा है कि हमें दस साल बाद का – भविष्य का भारत- दिख रहा है। हम और आप लगभग 3 या पांच राज्यों में अल्पसंख्यक होते चले जा रहे हैं। हमारे अपने राम की रामनवमी यात्रा पर भी हमलोगों को भय लगने लगा है कि पत्थर न पड़ने लगें। यह राम का राष्ट्र है, फिर भी राम के मंदिर के लिए इतने साल तक न्यायालय की दहलीज पर जाना पड़ा। अदालत की चौखट पर पुकार लगानी पड़ी। वही हाल कृष्ण जन्मभूमि का है। यह तब है, जब राम के राष्ट्र में इतने सनातनी हैं। 80 प्रतिशत सनातनी हिंदू होते हुए भी यह हाल है। जिस दिन यह अनुपात 50 प्रतिशत पर आएगा, उस दिन क्या होगा? बस यही पीड़ा मन में है।
एक समस्या और है देश के अंदर, वह है कन्वर्जन की समस्या। विशेष तौर से, मध्य प्रदेश या फिर हम झारखंड की बात कर लें, देश के कई ऐसे राज्य हैं जहां कन्वर्जन का धंधा चल रहा है। आपका एक उद्देश्य यह भी रहा है कि जो लोग लालच की वजह से दूसरे मजहबों में चले गये थे, उनकी वापसी करवाना। यह एक बड़ी चुनौती है। इन चुनौतियों का सामना आप कैसे करेंगे?
हमारे जीवन में दादागुरुजी के समय से एक परिवार जुड़ा हुआ था। एक दिन वह आते हैं और फूट-फूटकर रोने लगते हैं। हम पूछते हैं कि भई क्या हो गया। उन्होंने कहा कि गुरुजी, बालक बात नहीं मान रहा है। हमने कहा कि यह कोई बड़ी बात नहीं है। बात करेंगे। बीच-बीच में कभी-कभी उनका बालक आता था। उस बच्चे को बुलाया तो उसके माता-पिता ने बताया कि यह किसी अलग मजहब के चक्कर में पड़कर हर रविवार को कहीं जाता है। पवित्र मुंह से नाम नहीं लेंगे… हमने उस बालक से बात की। उसने दो-तीन प्रश्न अपने माता पिता के ऊपर ताने कसते हुए किये। जैसे कि इसमें दिक्कत क्या है? इसमें घाटा क्या है? उसका कहना था और अगर फायदा होता हो तो क्या दिक्कत है? वो हमारे लिए ही ऐसा कर रहे हैं, कुछ दे भी रहे हैं। वे हमारी मदद भी कर रहे हैं। तो हमें जाने में दिक्कत क्या है? वो अपने-माता को कहता था कि गले में मंगलसूत्र मत डालो, हिंदू तीज-त्योहार मत करो। माता-पिता रो पड़े। उन माता-पिता की रोती-बिलखती पीड़ा को देखते हुए, हमारे मन में क्रांति की एक लहर उठी। हमने संकल्प लिया अब हम इस तरह का मत परिवर्तन भारत में नहीं होने देंगे। भारत सनातनियों का राष्ट्र है न कि किसी हलीहुल्ला वालों का।
जो लोग कन्वर्जन करते हैं, उनको लालच देकर या उनका ब्रेन वॉश करके कन्वर्जन करा दिया जाता है। ऐसे में उनकी घर वापसी कराना कितना कठिन काम है?
बहुत मुश्किल होता है। बार—बार हमारी छवि खराब करवाने का प्रयत्न करते हैं। क्लेश करते हैं। तांडव कराते हैं। कथाओं को रुकवाने के लिए याचिका दर्ज कराते हैं। यहां हम एक बात कहना चाहेंगे कि हमारे हिंदू सनातन समाज में सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि समर्थन बहुत कम लोग करते हैं। हो-हल्ला अपने यहां ज्यादा करते हैं। शोर मचाएंगे, सोशल मीडिया चलाएंगे। वास्तविक समर्थन कोई नहीं कर रहा है। हालांकि कुछ लोग हृदय से जुड़े रहते हैं लेकिन सब नहीं करते। अगर हिंदू समाज की ये कुरीति या अवधारणा मिट जाए तो हमें नहीं लगता कि दुनिया के किसी भी मजहब या ब्रेन वॉश में इतना दम है कि वह हमारी सनातनी वैदिक परंपरा को मानने वाले बच्चों को किसी भी प्रकार से बहका सके। हिंदू समाज की इन्हीं गलतियों की वजह से कुछ चुनौतियां झेलते हैं। ये सब झेलते हुए हम कथाएं करते हैं। जो भी दक्षिणा मिलती है, उसको सनातन समाज के लिए खर्च करते हैं। लोगों को बुलाते हैं, जोड़ते हैं। हम पर भगवान के दरबार की एक बहुत ही बड़ी कृपा है। दरबार के परम प्रभाव से, शुद्ध संतों की वजह से लोग उसमें स्वत: आ जाते हैं। वनवासी भोले-भाले होते हैं। उनको कन्वर्जन गिरोह आसानी से अपने जाल में फंसा लेते हैं। मध्य प्रदेश में हमने देखा कि वो वन में रहने वाले सभी वनवासियों को अहिंदीभाषी कहते हैं। इन चीजों पर हमने कथाएं कीं। वनवासियों को समझाया। उनके मुखियाओं को पकड़ा, उनको समझाया। उनको कुछ वैदिक मंत्र बताये, कुछ सनातन धर्म के चमत्कार दिखाये। अंततोगत्वा वे लोग नतमस्तक हुए।
लोग कहते हैं कि कुछ लोग कन्वर्जन कराते हैं, वही काम आप भी कर रहे हैं। ऐसे लोगों के लिए आप क्या कहेंगे?
वे लोग कन्वर्जन कराते हैं और हम घरवापसी कराते हैं। हमारे संविधान में भी है कि लोगों को लोभ देकर, लालच देकर, भय दिखाकर, प्रभाव दिखाकर किसी अन्य मजहब में ले जाना कन्वर्जन है जिसका निषेध है और ऐसे भूले-भटके को वापस ले आना घरवापसी होती है।
आप हिंदू राष्ट्र की भी बात करते हैं? आपको लगता है कि हिंदू राष्ट्र बनेगा?
भारत हिंदू राष्ट्र है और इसको बनवा कर मानेंगे।
ये काम कैसे होगा जबकि भारत में 80 प्रतिशत हिंदू होने के बावजूद उसी समाज के कई लोग आपके विरोध में भी बात करते हैं?
रावण भी सनातनी ही था। भगवान शंकर का उपासक था। वह भी राम का विरोधी था। ये अपेक्षा बिल्कुल मत रखना कि कोई विरोध नहीं करेगा। जिनके जीवन में दोगलापन है, वो करेंगे। जयचंदों की कमी नहीं है। इन जयचंदों के पास काम भी क्या है। अपने पूर्वजों का नाम बहुत अच्छा कैसे करेंगे? इसलिए जयचंद ऐसा काम करते हैं। दूसरी बात भारत हिंदू राष्ट्र ही है। ये हृदयों और कागजों में घोषित होकर रहेगा। हमें भारत के हिंदू के दिलों में हिंदू राष्ट्र चाहिए। भगवान बालाजी ने चाहा तो प्रबुद्ध लोग आवाज बुलंद करेंगे। अपने मत और अपनी मति, दोनों का सदुपयोग करके हिंदू राष्ट्र के लिए गुहार लगाएंगे तो भारत को हिंदू राष्ट्र बनाना सरकार की मजबूरी बन जाएगा।
हमारे हिंदू संत या कथावाचकों को विवादों में लाया जाता है और उसके माध्यम से हिंदू धर्म को बदनाम किया जाता है। इसके पीछे कौन-सा गिरोह काम करता है? क्या आप भी स्वयं को इस षड्यंत्र का शिकार मानते हैं?
हम कई बार षड्यंत्र का शिकार हुए और अभी भी चल ही रहे हैं। लोगों को बोरिया-बिस्तर, गठरी बांधने का भय सताता है। सनातन धर्म इतना सर्वव्यापक, सर्वहितैषी है कि सनातन धर्म के सिपाहियों, वास्तविक संतों पर भारतवासियों को पूर्ण भरोसा हो जाए, तो हमें नहीं लगता है कि दुनिया का कोई भी मजहब बच पाएगा। शीघ्रातिशीघ्र भारत अखंड राष्ट्र बन जाएगा। लेकिन चुनौती देने वाले चाहते हैं कि इनकी रीढ़ की हड्डी को तोड़ दो। इनके संतों को ही बदनाम कर दो। जब संतों को बदनाम कर देंगे तो इनकी आस्थाएं डगमगा जाएंगे और यदि आस्था डगमगा जाएगी तो अपने पंथ, मजहब थोप देंगे। बल्कि जितना अत्याचार इनके द्वारा हो रहा है, इतना अत्याचार तो किसी आततायी राजा ने भी नहीं किया जितना अत्याचार ये गिरोह कन्वर्जन के नाम पर कर रहे हैं। पैसा देकर सुनियोजित ढंग से काम कर रहे हैं। झूठा मत दिखाकर, झूठे चमत्कार दिखाकर भोले-भाले लोगों का कन्वर्जन करवाते हैं।
आपको लगातार निशाना बनाया जा रहा है। आपके कथावाचन का कोई न कोई हिस्सा निकालकर वायरल कर देते हैं, विवाद पैदा कर देते हैं। क्या इससे आप कभी विचलित होते हैं?
हम कभी विचलित नहीं होते और इसलिए भी नहीं होते हैं कि नवीनता नहीं है। जो मसाला चाहिए, वह मसाला उन्हें नहीं मिलता। तो आगे-पीछे की बात काट दो, मध्य की बात उठा लो। उससे टीआरपी मिलेगी। आपके नाम से जय-जयकार हो जाएगा। हम भी सोचने लग जाते हैं कि अगर इसमें उनके बाल-बच्चे पल रहे हैं, तो पाल लें।
आप एक तरह से पूरे समय सेवा में लगे रहते हैं। आपके भक्त पूछ रहे थे कि आपकी दिनचर्या क्या रहती है और हिंदू राष्ट्र के बाद क्या ध्येय रहेगा?
हमारा एक ही नियम है कि हमारा कोई नियम नहीं है। दूसरी बात, जब हमें मौका मिलता है तो दो-तीन घंटा सो लेते हैं। इसका कोई निश्चित समय नहीं है। जब समय मिलता है, तुम कहो तो हम यहीं बैठे-बैठे सो लेंगे। ये जागृति और इस सुनामी देखकर हमें लग रहा है कि हिंदू राष्ट्र का लक्ष्य बहुत जल्द पूर्ण होगा। लक्ष्य पूर्ण होगा, तब भी हम नहीं रुकेंगे। भारत के हिंदू राष्ट्र होते ही अखंड भारत की यात्रा पर निकलेंगे।
(साथ में शिवम दीक्षित)
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