नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में ट्रांसफर और पोस्टिंग के मामले में केंद्र सरकार के अध्यादेश के खिलाफ दायर याचिका को पांच जजों की संविधान पीठ को रेफर कर दिया है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस संबंध में निर्णय दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने 17 जुलाई को सुनवाई के दौरान इस बात का संकेत दिया था कि वह दिल्ली में ट्रांसफर और पोस्टिंग के मामले में केंद्र सरकार के अध्यादेश के खिलाफ दिल्ली सरकार की याचिका को संविधान बेंच को रेफर कर सकता है। इस मामले में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया था। हलफनामा में केंद्र सरकार ने अध्यादेश का बचाव करते हुए कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 246 (4) संसद को भारत के किसी भी हिस्से के लिए किसी भी मामले के संबंध में कानून बनाने का अधिकार देता है, जो किसी राज्य में शामिल नहीं है, इसके बावजूद ऐसा मामला राज्य सूची में दर्ज मामला है।
केंद्र ने कहा था कि संसद सक्षम है और उसके पास उन विषयों पर भी कानून बनाने की सर्वोपरि शक्तियां हैं, जिनके लिए दिल्ली की विधान सभा कानून बनाने के लिए सक्षम होगी। दिल्ली सरकार के मंत्रियों ने सोशल मीडिया पर आदेश अपलोड कर अफसरों के खिलाफ अभियान चलाया। दिल्ली सरकार ने विजिलेंस अफसर को निशाना बनाया और रात 11 बजे के बाद फाइलों को अपने कब्जे में लेने के लिए विजिलेंस दफ्तर पहुंच गए।
हलफनामे में कहा गया था कि दिल्ली सरकार की यह दलील कि अध्यादेश बिना किसी विधायी क्षमता के जारी किया गया है, जो बिल्कुल गलत है। दिल्ली सरकार की तरफ से कानूनी या संवैधानिक आधार पर नहीं बल्कि राजनीतिक आधार पर बेतुका और निराधार दलीलें अध्यादेश के खिलाफ दी जा रही हैं। केंद्र सरकार का कहना था कि अध्यादेश संसद के मानसून सत्र में पेश होने की संभावना है, ऐसे में सुप्रीम कोर्ट को इस मुद्दे पर फैसले के लिए मानसून सत्र के खत्म होने का इंतजार करना चाहिए।
कोर्ट ने 10 जुलाई को केंद्र सरकार और दिल्ली के उप-राज्यपाल को नोटिस जारी किया था। दिल्ली सरकार ने याचिका में केंद्र सरकार के अध्यादेश पर तुरंत रोक लगाने की मांग की। दिल्ली सरकार ने याचिका में कहा कि केंद्र सरकार का 19 मई को लाया गया अध्यादेश असंवैधानिक है।
सुप्रीम कोर्ट की संविधान बेंच ने 11 मई को कहा था कि उप-राज्यपाल के पास केंद्रशासित प्रदेश दिल्ली से संबंधित सभी मुद्दों पर व्यापक प्रशासनिक पर्यवेक्षण नहीं हो सकता है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय बेंच ने सर्वसम्मत फैसले में कहा कि उप-राज्यपाल की शक्तियां उन्हें दिल्ली विधानसभा और निर्वाचित सरकार की विधायी शक्तियों में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं देती हैं। यानी दिल्ली सरकार का पुलिस, कानून-व्यवस्था और भूमि पर नियंत्रण नहीं है।
कोर्ट ने कहा था कि नौकरशाह इस धारणा के तहत नहीं हो सकते कि वे मंत्रियों के प्रति जवाबदेह होने से अछूते हैं। अगर अधिकारी इस धारणा के तहत मंत्रियों को जवाब नहीं देते हैं तो वे लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार के लिए बेहिसाब हो जाएंगे। कोर्ट ने कहा था कि दिल्ली विधानसभा के पास भूमि, लोक व्यवस्था और पुलिस को छोड़कर सूची 2 में सभी विषयों पर कानून बनाने की शक्ति है।
(सौजन्य सिंडिकेट फीड)
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