प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अवैध लिव इन रिलेशनशिप को लेकर महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा है कि अवैध लिव-इन-रिलेशनशिप को सामाजिक ताने-बाने की कीमत पर पुलिस सुरक्षा नहीं दी जा सकती है। कोर्ट ने मौजूदा मामले में याचियों को सुरक्षा देने से इंकार कर दिया। कहा कि सुरक्षा देने का अर्थ है कि अवैध लिव-इन-रिलेशनशिप को मान्यता देना।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि वह लिव-इन-रिलेशनशिप के खिलाफ नहीं है, लेकिन अवैध संबंधों के खिलाफ है। न्यायमूर्ति रेनू अग्रवाल की कोर्ट ने इस टिप्पणी के साथ याचिकाकर्ता की ओर से सुरक्षा दिए जाने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया।
याचिकाकर्ता की ओर से तर्क दिया गया कि वह बालिग है। उसकी उम्र 37 वर्ष है। वह पति के यातनापूर्ण व्यवहार के कारण छह जनवरी 2015 से ही लिव-इन रिलेशनशिप में स्वेच्छा और शांतिपूर्वक तरीके से रह रही है। इसलिए प्रतिवादी या उसका पति उसके शांतिपूर्ण जीवन को खतरे में डालने की कोशिश कर रहा है। प्रतिवादी से उसकी सुरक्षा प्रदान की जाए। दोनों के खिलाफ कोई आपराधिक मामला नहीं है और न ही कोई मुकदमा दर्ज है।
जबकि, सरकारी अधिवक्ता ने इसका विरोध किया। कहा कि याची महिला दूसरे याची के साथ अवैध रूप से लिव-इन रिलेशनशिप में रह रही है। जबकि, उसकी शादी हो चुकी है। उसका पति है। उसने पति से तलाक नहीं लिया है। कोर्ट ने पहले भी इस तरह के मामले में सुरक्षा देने से इंकार कर दिया है।
कोर्ट ने कहा कि वह इस तरह की अवैधता की अनुमति देना उचित नहीं समझता है। क्योंकि, कल को याचिकाकर्ता यह बता सकते हैं कि कोर्ट ने उनके अवैध संबंधों को पवित्र कर दिया है। लिव-इन-रिलेशनशिप इस देश के सामाजिक ताने-बाने की कीमत पर नहीं हो सकता है। पुलिस को उन्हें सुरक्षा देने का निर्देश अप्रत्यक्ष रूप से ऐसे अवैध संबंधों को हमारी सहमति दे सकता है। विवाह की पवित्रता में तलाक पहले से ही शामिल है। यदि याची को अपने पति के साथ कोई मतभेद है तो उसे लागू कानून के अनुसार सबसे पहले अपने पति या पत्नी से अलग होने के लिए आगे बढ़ना होगा। लिहाजा, याचिका खारिज की जाती है।
(सौजन्य सिंडिकेट फीड)
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