देवशयनी एकादशी पर विशेष: ईश्वर के निकट ले जाती है पंढरपुर के विठोबा तीर्थ की महायात्रा
July 13, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम भारत

देवशयनी एकादशी पर विशेष: ईश्वर के निकट ले जाती है पंढरपुर के विठोबा तीर्थ की महायात्रा

महाराष्ट्र के सोलापुर जिले में भीमा नदी के तट पर बसे इस पंढरपुर तीर्थ पर देवशयनी एकादशी पर पालकी महायात्रा का आयोजन किया जाता है। इस पालकी यात्रा की शुरुआत महाराष्ट्र के प्रमुख संतों ने की थी

by पूनम नेगी
Jun 29, 2023, 01:52 pm IST
in भारत, धर्म-संस्कृति, महाराष्ट्र
आषाढ़ की देवशयनी एकादशी के दिन पंढरपुर पहुंचने का उद्देश्य सामने रखकर, दूरी के अनुसार हर पालकी की यात्रा का कार्यक्रम तय होता है।

आषाढ़ की देवशयनी एकादशी के दिन पंढरपुर पहुंचने का उद्देश्य सामने रखकर, दूरी के अनुसार हर पालकी की यात्रा का कार्यक्रम तय होता है।

FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

हमारे धर्म शास्त्रों के विभिन्न उद्धरण यह तथ्य प्रतिपादित करते हैं कि पुण्यभूमि भारत में भक्तों की श्रद्धा भगवान को विविध रूपों में स्थापित करती है। ‘विट्ठल पांडुरंग’ के प्रति लोकश्रद्धा जितनी गहरी है, उनके इस रूप स्वरूप की कथा भी उतनी ही अलौकिक है।

आध्यात्मिकता भारत की सनातन संस्कृति का प्राणतत्व है। हमारे धर्म शास्त्रों के विभिन्न उद्धरण यह तथ्य प्रतिपादित करते हैं कि पुण्यभूमि भारत में भक्तों की श्रद्धा भगवान को विविध रूपों में स्थापित करती है। ‘विट्ठल पांडुरंग’ के प्रति लोकश्रद्धा जितनी गहरी है, उनके इस रूप स्वरूप की कथा भी उतनी ही अलौकिक है। कथा कहती है कि छठी सदी में श्री हरि के पुंडलिक नाम के एक परम भक्त हुए थे। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर आराध्य उनके द्वार पर आये और उन्हें स्नेह से पुकार कर बोला, ‘हम तुम्हारा आतिथ्य ग्रहण करने आए हैं पुंडलिक।’ यह सुनकर पुंडलिक ने, जो उस वक्त अपने पिता के पैर दबा रहे थे और उनकी पीठ द्वार की ओर थी, कहा- ’प्रभु! इस समय मेरे पिताजी शयन कर रहे हैं, इसलिए अभी मैं आपका स्वागत करने में सक्षम नहीं हूं। आपको प्रात:काल तक प्रतीक्षा करनी होगी। आप इस ईंट पर खड़े होकर प्रतीक्षा करें। यह कह कर वे प्रभु की ओर एक ईंट सरका कर पुनः पिता की सेवा में लीन हो गये।

भगवान ने भक्त की आज्ञा का पालन किया और कमर पर दोनों हाथ रखकर और पैरों को जोड़कर ईंटों पर खड़े हो गये। प्रातः पिता की नींद खुलने के बाद पुंडलिक ने द्वार की ओर देखा परंतु तब तक प्रभु मूर्ति का रूप ले चुके थे। पुंडलिक ने अपने आराध्य के उसी श्याम वर्ण मूर्ति स्वरूप की विधिवत पूजा उपासना कर अपने घर में स्थापित किया। चूंकि महाराष्ट्र में ईंट को ‘विठ’ या ‘विठो’ तथा श्याम वर्ण को पांडुरंग के नाम से जाना जाता है; इसलिए ईंट पर खड़े होने के कारण उनका वह श्यामल स्वरूप कालांतर में ‘विट्ठल पांडुरंग’ के नाम से तथा वह पुण्यभूमि उनके परम प्रिय पुंडलिक के नाम पर पुंडलिकपुर (अपभ्रंश रूप में पंढरपुर) के रूप में महाराष्ट्र के सिद्धतीर्थ के रूप में लोकप्रिय हो गयी।

इन्हें कहा जाता है वारकरी

महाराष्ट्र के सोलापुर जिले में भीमा नदी के तट पर बसे इस पंढरपुर तीर्थ पर देवशयनी एकादशी पर पालकी महायात्रा का आयोजन किया जाता है। इस पालकी यात्रा की शुरुआत महाराष्ट्र के प्रमुख संतों ने की थी। महाराष्ट्र की इस महान संत परम्परा में संत ज्ञानेश्‍वर, नामदेव, एकनाथ, तुकाराम, रामदास, चोखामेला, सावता माली, गोरा कुम्हार, राका महार, नरहरि सुनार, सेन महाराज, जनाबाई, मुक्ताबाई, बहिणाबाई, भानुदास, विसोबा खेचर, कान्होपात्रा तथा बंका आदि का नाम प्रमुखता से शामिल है।

इन संतों के अनुयायियों को ‘वारकरी’ कहा जाता है। वारकरी मत को मानने वाले विट्ठल-विट्ठल कहकर कृष्ण भक्ति के भजन गाकर, नृत्य करने में लीन रहते हैं। ये श्रीकृष्ण उपासक वारकरी तुलसी की माला पहनते हैं और शुद्ध शाकाहारी होते हैं। लाखों की संख्या में नंगे पैर तीर्थयात्रा करना वारकरियों की परम्परा है। मूलतः श्रीमद्भागवत और श्रीमद्भगवद्गीता इस सम्प्रदाय के मूल उपास्य ग्रंथ हैं।

इस पंढरपुर यात्रा की मुख्य विशेषता है उसकी वारी। वारी का अर्थ है- सालों-साल से समय-समय पर लगातार यात्रा करना। इस यात्रा में हर वर्ष शामिल होने वालों को वारकरी कहा जाता है और यह सम्प्रदाय वारकरी सम्प्रदाय कहलाता है। इस वारी का जब से आरंभ हुआ है, तब से पीढ़ी दर पीढ़ी लोग हर साल वारी के लिए निकल पड़ते हैं। महाराष्ट्र में कई स्थानों पर वैष्णव संतों के निवास और उनके समाधि स्थल हैं। ऐसे स्थानों से उन संतों की पालकी वारी के लिए प्रस्थान करती है। इस वारी में बच्चे, बूढ़े, महिला, पुरुष सभी शामिल होते हैं।

भगवान ने भक्त की आज्ञा का पालन किया और कमर पर दोनों हाथ रखकर और पैरों को जोड़कर ईंटों पर खड़े हो गये। प्रातः पिता की नींद खुलने के बाद पुंडलिक ने द्वार की ओर देखा परंतु तब तक प्रभु मूर्ति का रूप ले चुके थे। पुंडलिक ने अपने आराध्य के उसी श्याम वर्ण मूर्ति स्वरूप की विधिवत पूजा उपासना कर अपने घर में स्थापित किया। चूंकि महाराष्ट्र में ईंट को ‘विठ’ या ‘विठो’ तथा श्याम वर्ण को पांडुरंग के नाम से जाना जाता है; इसलिए ईंट पर खड़े होने के कारण उनका वह श्यामल स्वरूप कालांतर में ‘विट्ठल पांडुरंग’ के नाम से तथा वह पुण्यभूमि उनके परम प्रिय पुंडलिक के नाम पर पुंडलिकपुर के रूप में महाराष्ट्र के सिद्धतीर्थ के रूप में लोकप्रिय हो गयी।

15 से 20 दिन की पैदल यात्रा

आषाढ़ की देवशयनी एकादशी के दिन पंढरपुर पहुंचने का उद्देश्य सामने रखकर, दूरी के अनुसार हर पालकी की यात्रा का कार्यक्रम तय होता है। मार्ग पर कई पालकियां एक-दूसरे से मिलती हैं और उनका एक समूह बन जाता है। वारी में दो प्रमुख पालकियां होती हैं। उनमें एक संत ज्ञानेश्वर की तथा दूसरी संत तुकाराम की होती है। 15 से 20 दिन की पैदल यात्रा कर वारकरी देवशयनी एकादशी के दिन पंढरपुर पहुंच जाते हैं। वारी में शामिल होना या वारकरी बनना यह एक परिवर्तन का आरंभ है। वारी से जुड़ने पर मनुष्य के विचारों और आचरण में परिवर्तन दिखाई देता है। वारी का उद्देश है- ईश्वर के पास पहुंचना, निकट जाना। वारी में दिन-रात भजन-कीर्तन, नाम स्मरण चलता रहता है। अपने घर की, कामकाज की, खेत की समस्याओं को पीछे छोड़कर वारकरी वारी के लिए चल पड़ते हैं, क्योंकि हर काम में वह ईश्वर के ही दर्शन करते हैं।

यात्रा को डिंडी यात्रा कहा जाता है

वर्ष में चार बार (आषाढ़, कार्तिक, चैत्र तथा माघ माह में) लाखों तीर्थयात्री यहाँ एकत्रित होते हैं। इस यात्रा के दौरान प्रमुख पालकी में संत नामदेव की पादुका रखी जाती है। इस पालकी को सफेद रंग के बैलों की जोड़ी खींचती है। यह पालकी आलंदी से प्रारम्भ होती है। इसके बाद अन्य पालकियां संतों के जन्म स्थान से पंढरपुर के लिए रवाना होती हैं। संत तुकाराम के जन्म स्थान ‘देहू’ तथा एकनाथ के जन्म स्थान ‘पैठण’ से इन वारकरी भक्तों के अलग अलग समूह निकलते हैं। इन यात्राओं को डिंडी यात्रा कहा जाता है। वारकरी भक्तों का यह समूह इस तीर्थ यात्रा के दौरान नृत्य व कीर्तन के माध्यम से संतों की कीर्तिगाथा का बखान करता हुआ पुणे तथा जेजुरी होते हुए तीर्थ नगरी पंढरपुर पहुँचता है। वारकरी भक्तों के यह पालकी देवशयनी एकादशी पर पंढरपुर पहुंच कर सर्वप्रथम पवित्र भीमा नदी में स्नान कर विठोवा का दर्शन पूजन करते हैं। पंढरपुर की इस महायात्रा को वैष्णवों के महाकुम्भ की संज्ञा दी जाती है। माना जाता है कि वारी करने की यह परंपरा 800 वर्षों से भी अधिक समय से चली आ रही है।

द्वार के समीप भक्त चोखामेला की समाधि

पंढरपुर के विठोवा मंदिर में प्रवेश करते समय द्वार के समीप भक्त चोखामेला की समाधि है। प्रथम सीढ़ी पर ही नामदेवजी की समाधि है। द्वार के एक ओर अखा भक्ति की मूर्ति है। यहां भक्तराज पुंडलिक का स्मारक भी बना हुआ है। मुख्य मंदिर के घेरे में ही रुक्मणिजी, बलरामजी, सत्यभामा, जाम्बवती तथा श्रीराधा के मंदिर हैं। पंढरपुर के अन्य सुप्रसिद्ध देवी मंदिरों में पद्मावती, अंबाबाई और लखुबाई के मंदिर सबसे प्रसिद्ध हैं। चंद्रभागा के पार श्रीवल्लभाचार्य महाप्रभु की बैठक है। यहां से तीन मील दूर एक गांव में जनाबाई का मंदिर है और वह चक्की है जिसे भगवान ने चलाया था। कहते हैं कि विजयनगर साम्राज्य के प्रसिद्ध नरेश कृष्णदेव विठोबा की मूर्ति को अपने राज्य में ले गए थे किंतु बाद में एक महाराष्ट्रीय भक्त ने विठोबा की मूर्ति को वापस लाकर पुन: यहां स्थापित कर दिया था।

Topics: PandharpurVithoba pilgrimageदेवशयनी एकादशीपंढरपुरविठोबा तीर्थDevshayani Ekadashi
ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

चातुर्मास के दिव्य ज्ञान-विज्ञान को हृदयंगम करें देश के सनातनी युवा

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

18 खातों में 68 करोड़ : छांगुर के खातों में भर-भर कर पैसा, ED को मिले बाहरी फंडिंग के सुराग

बालासोर कॉलेज की छात्रा ने यौन उत्पीड़न से तंग आकर खुद को लगाई आग: राष्ट्रीय महिला आयोग ने लिया संज्ञान

इंटरनेट के बिना PF बैलेंस कैसे देखें

EPF नियमों में बड़ा बदलाव: घर खरीदना, इलाज या शादी अब PF से पैसा निकालना हुआ आसान

Indian army drone strike in myanmar

म्यांमार में ULFA-I और NSCN-K के ठिकानों पर भारतीय सेना का बड़ा ड्रोन ऑपरेशन

PM Kisan Yojana

PM Kisan Yojana: इस दिन आपके खाते में आएगी 20वीं किस्त

FBI Anti Khalistan operation

कैलिफोर्निया में खालिस्तानी नेटवर्क पर FBI की कार्रवाई, NIA का वांछित आतंकी पकड़ा गया

Bihar Voter Verification EC Voter list

Bihar Voter Verification: EC का खुलासा, वोटर लिस्ट में बांग्लादेश, म्यांमार और नेपाल के घुसपैठिए

प्रसार भारती और HAI के बीच समझौता, अब DD Sports और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर दिखेगा हैंडबॉल

वैष्णो देवी यात्रा की सुरक्षा में सेंध: बिना वैध दस्तावेजों के बांग्लादेशी नागरिक गिरफ्तार

Britain NHS Job fund

ब्रिटेन में स्वास्थ्य सेवाओं का संकट: एनएचएस पर क्यों मचा है बवाल?

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies