गीता प्रेस गोरखपुर को महात्मा गांधी राष्ट्रीय शांति पुरस्कार देने की घोषणा हुई है। जून इसलिए भी विशेष है क्योंकि लोकतंत्र की जड़ों पर प्रहार करने की जिद, नागरिक अधिकारों की डालियों पर कुल्हाड़ी चलाने की कोशिश 25 जून 1975 को ही हुई थी।
महात्मा गांधी कांग्रेस के लिए क्या हैं? और महात्मा गांधी गीता प्रेस गोरखपुर के लिए क्या हैं? ये प्रश्न जून के तपते मौसम में एकाएक गरमा गए हैं। अभी गीता प्रेस गोरखपुर को महात्मा गांधी राष्ट्रीय शांति पुरस्कार देने की घोषणा हुई है। जून इसलिए भी विशेष है क्योंकि लोकतंत्र की जड़ों पर प्रहार करने की जिद, नागरिक अधिकारों की डालियों पर कुल्हाड़ी चलाने की कोशिश 25 जून 1975 को ही हुई थी। जो गांधी स्वतंत्रता के साथ ही कांग्रेस का तर्पण करने का मन बना चुके थे, वह देश पर आपातकाल थोपने का बर्बर प्रयोग कैसे देखते?
नाम में गांधी का पुछल्ला जोड़कर हिटलर के कदमों पर चलती वह कांग्रेस न केवल अहिंसा से दूर और नाजीवाद के पास है, बल्कि गांधी से तो उसका कोई नाता ही नहीं है। लगातार मूर्खतापूर्ण टिप्पणियां करने वाली पार्टी में अपेक्षाकृत समझदार समझे जाने वाले जयराम रमेश ने गीता प्रेस गोरखपुर को निशाना बनाने के लिए जिन तर्कों को आधार बनाया है, वह एक फर्जी (कथित) शोध पुस्तक से उधार लिए गए हैं।
गीता प्रेस के संस्थापक जयदयाल गोयंदकाजी का, संपादक भाई हनुमान प्रसाद पोद्दार जी का गांधीजी के साथ कैसा संबंध था, उनके बीच कैसा पत्राचार होता था, इसका कांग्रेस को किंचित भी आभास नहीं है। कांग्रेस के गले यह बात उतर ही नहीं सकती कि यह वह गीता प्रेस है जिसने गांधी जी की एक सलाह के बाद आज तक कभी कोई विज्ञापन ही नहीं लिया। यही नहीं, हाल में जिस पुरस्कार की घोषणा हुई है उसमें पुरस्कार के साथ मिलने वाली एक करोड़ रुपए की राशि लेने से भी गीता प्रेस ने इंकार कर दिया है। प्रश्न है कि क्या कांग्रेस को गोरक्षा को लेकर, कन्वर्जन और ईसाई मिशनरियों की भूमिका को लेकर महात्मा गांधी के विचारों का अनुमान भी है?
कांग्रेस का गांधी तो वह है जो झूठमूठ की ट्रक यात्रा करता है और झूठ को अपनी राजनीति का आधार बनाता है। सत्य और अहिंसा के पुजारी गांधी इस कांग्रेस के गांधी हो ही नहीं सकते। हिटलर ने नाजियों ने समाजवाद शब्द का पुछल्ला बनाया हुआ था, और कांग्रेस ने गांधी शब्द को पुछल्ला बना रखा है।
क्या कांग्रेस के लिए ‘गांधी’ शब्द के मात्र दो अर्थ हैं -एक करेंसी नोटों पर छपे गांधी और दूसरे वह गांधी, जिन्हें कांग्रेस के दरबारी राजनीतिक करेंसी समझते हैं? जो कांग्रेस मुस्लिम लीग को सेक्युलर होने का प्रमाणपत्र देती है, उस कांग्रेस को गीता प्रेस सांप्रदायिक नजर आती है? यह कहना कि महात्मा गांधी के निधन पर कल्याण पत्रिका ने श्रद्धांजलि प्रकाशित नहीं की थी, एक ऐसा मूर्खतापूर्ण बिन्दु है, जो सिर्फ किसी ढीठ अपराधी के दिमाग में उत्पन्न हो सकता है। दैनिक समाचार पत्र भी आधी रात के बाद के समाचार प्रकाशित न कर पाने के लिए विवश होते हैं। समाचार पत्र छपने में और पाठक तक पहुंचने में समय लगता है। इसी प्रकार 1 फरवरी को निकलने वाले अंक की सामग्री, आज से सात दशक पूर्व की तकनीक में, कम से कम 10-12 दिन पहले ही पूरी हो जाती थी।
ऐसे में कांग्रेस का प्रश्न यह भर रह जाता है कि ‘कल्याण पत्रिका ने गांधीजी की हत्या की एक सप्ताह पहले ही भविष्यवाणी क्यों नहीं कर दी थी।’ वास्तविकता यह है कि इस दुर्भाग्यपूर्ण घटनाक्रम के बाद कल्याण के जितने भी अंक छपने से रह गए थे, उनमें गांधीजी को श्रद्धांजलि अत्यंत श्रम और प्रयत्नपूर्वक जोड़ी गई थी।
इस संदर्भ में पाञ्चजन्य ने आज से छह वर्ष पूर्व पड़ताल की थी और यह पाया था कि उस समय भी गीता प्रेस ने अपनी छपाई रोककर गांधीजी को श्रद्धांजलि देने के लिए कुछ वाक्य नहीं, बल्कि पूरे तीन पृष्ठ जोड़े थे। जहां तक हनुमान प्रसाद पोद्दार जी की बात है, तो तथ्य यह है कि यह वही हनुमान प्रसाद पोद्दार थे जिनके गांधी जी के साथ आत्मीय संबंध थे और जिन्होंने 1932 में अंग्रेज सरकार द्वारा गोरखपुर जेल में बंद किए गए गांधी जी के पुत्र देवदास गांधी का ध्यान अपने पुत्र की तरह रखा था।
अक्षय मुकुल की उस कथित पुस्तक के बारे में चर्चा करना भी आवश्यक नहीं है, जिसका उल्लेख कांग्रेस एक तथ्य के रूप में करती है। अक्षय मुकुल की लिखी कोई बात तथ्यों पर आधारित नहीं है। बल्कि जिस तथ्य को छिपाया गया है वह यह है कि यह पुस्तक कांग्रेस द्वारा प्रायोजित थी, जिसके तथ्य झूठे थे और अपनी ओर से कथानक गढ़ने के लिए कांग्रेस ने इतना बड़ा स्वांग रचा था। जो कांग्रेस केरल की सड़कों पर गोमांस की पार्टी आयोजित करती है, क्या वह कांग्रेस उस गांधी को जानती भी है जिसके लिए गोसेवा परम प्रिय थी?
कांग्रेस का गांधी तो वह है जो झूठमूठ की ट्रक यात्रा करता है और झूठ को अपनी राजनीति का आधार बनाता है। सत्य और अहिंसा के पुजारी गांधी इस कांग्रेस के गांधी हो ही नहीं सकते। हिटलर ने नाजियों ने समाजवाद शब्द का पुछल्ला बनाया हुआ था, और कांग्रेस ने गांधी शब्द को पुछल्ला बना रखा है।
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