चीन ने भारत के साथ सुलह—समझौते की बात सिर्फ बयानों तक सीमित रखने की अपनी मंशा एक बार फिर से उजागर कर दी है। अभी 10 दिन पहले थ्येनआनमन चौक पर कोई लोकतंत्र समर्थक आंदोलन की सालाना याद करने को इकट्ठा न हो, इसके लिए कड़ाई करने वाले चीन को लोकतांत्रिक देशों के पत्रकार भी स्वीकार नहीं हैं। बीजिंग में भारत के अब बस एक बचे पत्रकार को भी कम्युनिस्ट सरकार ने देश से चले जाने का फरमान सुना दिया है।
हालांकि अभी कुछ दिन पहले भारत की मोदी सरकार ने बयान दिया था कि हमारे यहां चीन के पत्रकारों को काम में कोई दिक्कत नहीं आने दी जा रही है। परन्तु चीन में वहां की कम्युनिस्ट सरकार का व्यवहार बिल्कुल उलट है। वहां भारतीय पत्रकारों को खुलकर काम नहीं करने दिया जाता। अब इस नए फरमान के बाद तो भारत का कोई अधिकृत पत्रकार उस देश में नहीं रह जाएगा। आखिरी भारतीय पत्रकार को देश से चले जाने के आदेश के बाद मोदी सरकार का कहना है कि इस विषय में वह चीन सरकार से बात कर रही है।
2023 के शुरू में बीजिंग में भारत के चार पत्रकार कार्यरत थे। गत अप्रैल में चीन ने दो पत्रकारों को आगे वीसा देने से मना किया था। एक अन्य भारतीय पत्रकार यानी तीसरे ने तो पिछले हफ्ते ही चीन छोड़ा है। अब चौथा और आखिरी पत्रकार भी 30 जून तक भारत वापस लौटना है।
इसमें संदेह नहीं है कि ड्रैगन के इस कदम के बाद भारत और चीन के बीच तनाव ने एक नया आयाम ने लिया है। प्राप्त जानकारी के अनुसार, भारत को चीन के इस कदम की भनक लग चुकी थी और संभवत: इसी वजह से मोदी सरकार ने चीन के एक पत्रकार के वीसा को और बढ़ाने से मना कर दिया था।
चीन ने भारत के आखिरी पत्रकार को अपने यहां से 30 जून तक चले जाने को कहा है। इसके बाद से वहां भारत का एक भी पत्रकार शेष नहीं रह जाएगा। चीन पहले तीन भारतीय पत्रकारों को वापस भेज चुका है। 2023 के शुरू में बीजिंग में भारत के चार पत्रकार कार्यरत थे। गत अप्रैल में चीन ने दो पत्रकारों को आगे वीसा देने से मना किया था। एक अन्य भारतीय पत्रकार यानी तीसरे ने तो पिछले हफ्ते ही चीन छोड़ा है। अब चौथा और आखिरी पत्रकार भी 30 जून तक भारत वापस लौटना है। इस कार्रवाई पर चीन के विदेश मंत्रालय की कोई टिप्पणी सामने नहीं आई है।
चीन के विदेश विभाग ने इस संबंध में पिछले महीने जरूर कहा था कि भारत में बचे एकमात्र चीन के पत्रकार का वीसा आगे बढ़ाया जाना है। जबकि उसके पहले ही भारत ने चीन के दो पत्रकारों के वीसा आगे बढ़ाने से मना कर दिया था। मोदी सरकार का मानना है कि वह भारत में चीन के पत्रकारों को काम करने में पूरी सहूलियत दे रही थी, लेकिन चीन में भारत के पत्रकारों के लिए खुलकर काम नहीं करने दिया जाता। वहां इस संबंध में कोई मदद भी नहीं मिलती।
चीन ने आखिर ऐसा कदम क्यों उठाया, इस बारे में कुछ जानकारों का कहना है कि इस मुद्दे की शुरुआत तब हुई थी जब चीन में काम कर रहे भारत के दो पत्रकारों ने अपने सहायक रखने की कोशिश की थी। क्योंकि चीन की नीति है कि कोई पत्रकार अधिकतम तीन सहायक रख सकता है। लेकिन भारत में ऐसी कोई सीमा तय नहीं है।
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