भारत का उदय एक भू राजनीतिक दिग्गज के रूप में हुआ है। चीन-पाकिस्तान सरीखे चंद देशों को छोड़कर विश्व के अधिकांश देश भारत के साथ मित्रता के लिए उत्सुक हैं। प्रधानमंत्री की वैश्विक लोकप्रियता ने, उनकी सुलझी हुई,
अमृतकाल में भारत का उदय एक भू राजनीतिक दिग्गज के रूप में हुआ है। चीन-पाकिस्तान सरीखे चंद देशों को छोड़कर विश्व के अधिकांश देश भारत के साथ मित्रता के लिए उत्सुक हैं। प्रधानमंत्री की वैश्विक लोकप्रियता ने, उनकी सुलझी हुई, सक्रिय और दक्ष कूटनीति ने विश्व भर में बसे उस अप्रवासी भारतीय समुदाय और भारतवंशी समुदाय को भी नई ऊर्जा और सम्मान दिया है, जो अभी तक सिर्फ प्रताड़ना के बीच गुमनामी का जीवन जी रहा था।
याद कीजिए, हाल ही का अमेरिका के सिएटल शहर का जाति-विरोधी भेदभाव कानून। रंगभेद से लेकर सामंतवाद, साम्यवाद, दासता, नाजीवाद-फासीवाद और गिरमिटिया श्रमिकों पर टिके पश्चिम को कोई अन्य प्रणाली नजर नहीं आई, लेकिन उसने बहुत सुविधाजनक ढंग से ‘जाति व्यवस्था’ की कहानी गढ़कर स्पष्ट रूप से हिंदुओं और हिंदू धर्म को सभी अन्यायों के लिए दोषी ठहराने की कोशिश की।
यह उस अमेरिका की स्थिति है, जहां 2013 में ही एफबीआई हिंदू मंदिरों और व्यक्तियों पर हमलों में लगातार होती वृद्धि के कारण हिंदू विरोधी घृणा अपराधों पर नजर रखनी शुरू करने के लिए बाध्य हुई थी। मंदिरों पर हमले, हिन्दुओं पर हमले और हिन्दुत्व को कभी नाजीवाद से तो कभी ‘एनिमिज्म’ से जोड़कर दिखाने की घटनाएं, तमाम भारत-विरोधी, हिन्दू-विरोधी शक्तियों को मिलता राजनीतिक-आर्थिक प्रश्रय बहुत आम था। आज भी पश्चिम का मुख्यधारा का मीडिया पूरी बेशर्मी से हिंदुओं को निशाना बनाता है। कुछ बड़े व्यावसायिक घराने भी खुल कर हिन्दू विरोध करते हैं।
लेकिन अब समय बदलने लगा है, भले ही धीरे-धीरे बदल रहा हो। जैसे कि आस्ट्रेलिया ने खालिस्तान समर्थकों को बड़ा झटका देते हुए ‘रेफरेंडम इवेंट’ रद्द कर दिया, जो अलगाववादी समूह ‘सिख्स फॉर जस्टिस’ द्वारा आयोजित था और आस्ट्रेलिया के सिडनी मेसोनिक सेंटर में 4 जून के लिए निर्धारित किया गया था।
मंदिरों पर हमले, हिन्दुओं पर हमले और हिन्दुत्व को कभी नाजीवाद से तो कभी ‘एनिमिज्म’ से जोड़कर दिखाने की घटनाएं, तमाम भारत-विरोधी, हिन्दू-विरोधी शक्तियों को मिलता राजनीतिक-आर्थिक प्रश्रय बहुत आम था। आज भी पश्चिम का मुख्यधारा का मीडिया पूरी बेशर्मी से हिंदुओं को निशाना बनाता है। कुछ बड़े व्यावसायिक घराने भी खुल कर हिन्दू विरोध करते हैं।
ऐसा अनायास नहीं हुआ। 23 मई, 2023 को 21,000 से अधिक भारतीय आस्ट्रेलिया के सिडनी में सिडनी ओलंपिक पार्क, कुडोस बैंक एरिना में एकत्रित हुए। मेलबर्न से जो चार्टर्ड उड़ानें सिडनी के लिए चलीं, उनका नाम बदल कर ‘मोदी एयरवेज’ कर दिया गया। क्वींसलैंड से चलीं चार्टर्ड उड़ानों को ‘मोदी एक्सप्रेस’ कहा गया।
हजारों लोग विमानों से टिकट लेकर सिडनी पहुंचे। सिडनी में आयोजन स्थल के बाहर उत्सव जैसा माहौल पहले ही बनने लगा और भारतवंशी समुदाय ने मोदी-मोदी के गगनभेदी नारों और भारत माता की जय के नारों के साथ नृत्य, गीत और मंत्रोच्चारण शुरू कर दिया। यह सिडनी शहर के सबसे बड़े इनडोर स्टेडियमों में से एक था, जिसमें ब्रूस स्प्रिंगस्टीन और बैकस्ट्रीट बॉयज जैसे अंतरराष्ट्रीय सितारों की मेजबानी के कार्यक्रम हुए हैं।
इस कार्यक्रम में आस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीसी भी शामिल हुए। अल्बनीसी ने कहा, ‘आखिरी बार मैंने इस मंच पर ब्रूस स्प्रिंगस्टीन को देखा था और उन्हें भी वह स्वागत नहीं मिला जो प्रधानमंत्री मोदी को मिला है। प्रधानमंत्री मोदी बॉस हैं।’ (ब्रूस स्प्रिंगस्टीन का उपनाम ‘द बॉस’ है)।
आपने समाचार पढ़ा है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने जापान में जी 7 शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से आॅटोग्राफ मांगे। राष्ट्रपति जो बाइडेन मोदी के पास आए और उन्होंने कहा कि पीएम मोदी के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए प्रमुख नागरिकों के अनुरोधों की बाढ़ आई हुई है, जो उनके लिए एक चुनौती की तरह है।
वहीं आस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री अल्बनीसी ने कहा कि सिडनी में सामुदायिक स्वागत के लिए 20,000 की क्षमता है, लेकिन वह भी सारे लोगों के अनुरोधों को पूरा करने में सक्षम नहीं हैं। पीएम अल्बनीसी ने यह भी याद किया कि कैसे अमदाबाद के नरेंद्र मोदी स्टेडियम में 90,000 से अधिक लोगों ने पीएम मोदी का स्वागत किया था।
यह एक घटना या एक स्थान की बात नहीं है। पिछले वर्ष म्यूनिख के आडी डोम में भी भारतीय प्रवासी समुदाय ने प्रधानमंत्री मोदी का इसी प्रकार स्वागत किया था। म्यूनिख में भी हजारों लोग उनसे मिलने पहुंचे थे। प्रधानमंत्री मोदी की हर विदेश यात्रा का एक महत्वपूर्ण पक्ष भारतीय प्रवासी समुदाय ही होता है।
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने जापान में जी 7 शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से आॅटोग्राफ मांगे। राष्ट्रपति जो बाइडेन मोदी के पास आए और उन्होंने कहा कि पीएम मोदी के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए प्रमुख नागरिकों के अनुरोधों की बाढ़ आई हुई है, जो उनके लिए एक चुनौती की तरह है।
यह काम ठीक 2014 में मैडिसन स्क्वायर गार्डन सभा के साथ शुरू हो गया था, जहां 18,500 से अधिक लोग मौजूद थे। उस समय द वाशिंगटन पोस्ट ने ‘इंडियाज मोदी वॉज वन्स डिनाइड यूएस एन्ट्री, सन्डे, ही वॉज द स्टार एट मैडिसन स्क्वायर गार्डन’ शीर्षक से प्रकाशित समाचार में लिखा था- ‘मैडिसन स्क्वायर गार्डन रविवार को पूरी तरह से भरा हुआ था, किसी निक्स गेम या जे-जेड कॉन्सर्ट के लिए नहीं, बल्कि भारत के प्रधानमंत्री के लिए। प्रधानमंत्री के रूप में न्यूयॉर्क शहर की पहली यात्रा पर नरेंद्र मोदी के साथ 18,500 से अधिक की भीड़ ने खुशी मनाई।’
प्रधानमंत्री मोदी 2015 में कैलिफोर्निया गए थे और सैन जोस के सैप सेंटर में भी भारी भीड़ जमा हुई थी। 18,500 से अधिक लोग स्टेडियम में थे, और लगभग 45 हजार लोग स्टेडियम के बाहर थे। जो लोग स्टेडियम के बाहर थे, उनके लिए विशाल टेलीविजन स्क्रीन लगाई गई थीं, ताकि वे अपने प्रिय नेता का भाषण सुन सकें। नवंबर 2015 में लंदन के वेम्बली स्टेडियम में मोदी की सभा में 60,000 की भीड़ जुटी, किसी ब्रिटिश नेता ने भी इतनी विशाल जनसभा वहां पहले नहीं की थी।
फिर तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के साथ ह्यूस्टन का हाउडी मोदी कार्यक्रम, जिसमें मोदी को सुनने के लिए 50,000 की भीड़ जुटी थी। वास्तव में आॅस्ट्रेलिया से लेकर कनाडा तक, यूके से लेकर अमेरिका तक, दुबई से इस्राइल तक किसी भी देश के किसी नेता ने अपने देश के प्रवासियों के लिए इतनी एकजुटता और मेहनत नहीं की है, जितनी प्रधानमंत्री मोदी ने की है।
विश्व राजनीति में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि मोदी से पहले किसी ने भी न तो अप्रवासी भारतीय समुदाय की शक्ति को मान्यता दी और न ही किसी ने अप्रवासी भारतीय समुदाय को यह विश्वास दिलाया कि परदेस में वे अनाथ नहीं हैं, उनके साथ मोदी हैं, भारत है। मोदी की यह विश्वनीति अप्रवासी भारतीय समुदाय का भाग्य पलटने वाली साबित होती जा रही है।
लोकतांत्रिक देशों में राजनीतिक दल यह महसूस करने लगे हैं कि अप्रवासी भारतीय समुदाय एक अच्छा, स्वच्छ और शक्तिशाली राजनीतिक समूह है, जिसके साथ तालमेल बनाकर रखा जा सकता है। इससे अप्रवासी भारतीय समुदाय को एक राजनीतिक प्रश्रय मिला है, जिसने इस्लामवादी, धुर दक्षिणपंथी ईसाई और वामपंथियों के हिन्दू विरोधी गठजोड़ की धार कुंद कर दी है। यही वे शक्तियां थीं, जिन्होंने प्रधानमंत्री बनने के पहले मोदी की प्रस्तावित अमेरिका यात्रा न होने देने के लिए गठजोड़ बनाकर लॉबिंग की थी। पाकिस्तान की आईएसआई, सोरोस से जुड़े संगठनों और चीन के एजेंटों ने पश्चिम के मीडिया, राजनीतिक और व्यावसायिक क्षेत्रों में स्पष्ट और असंदिग्ध घुसपैठ की हुई है, जहां से मोदी विरोधी और भारत विरोधी हरकतें की जाती हैं।
लेकिन मोदी की नई विश्व नीति ने पासा पलट दिया है। जो अप्रवासी समुदाय डर कर, सहम कर रहने के लिए बाध्य था, वही अब शक्ति का केन्द्र बनकर उभरा है। चोट कितनी गंभीर है, इसे ऐसे समझा जा सकता है कि भारत में वामपंथियों का अखबार कहा जाने वाला ‘द हिंदू’ इस बात पर रुदाली करता नजर आया है कि मोदी अपनी विदेश यात्राओं में प्रवासी भारतीय समुदाय को इतना महत्व क्यों देते हैं, इससे तो द्विपक्षीय संबंध प्राथमिकता में नहीं रह जाते हैं। इसी प्रकार चीन के सरकारी अखबार ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने बार-बार अपने लेखों में भारत की बढ़ती भू-राजनीतिक हैसियत पर टिप्पणियां की हैं और उसे चीनी हितों के प्रतिकूल करार दिया है। यानी तीर निशाने पर लगा है।
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