अमेरिकी के पूर्व राष्ट्रपति जॉन एफ. कैनेडी के भतीजे रॉबर्ट एफ कैनेडी जूनियर पिछले दिनों अमेरिकी राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवारी का दावा कर चुके हैं। इसके साथ ही उनकी राजनीतिक बयानबाजी में एक उछाल आया है। हाल ही में उन्होंने दावा किया है कि अमेरिकी दवा कंपनी फाइजर ने अपने कोविड टीके के प्रचार के लिए सीएनएन के पत्रकार को करीब 82 करोड़ रु. की रिश्वत दी थी।
कैनेडी ने फाइजर कंपनी के विरुद्ध लॉबिंग, रिश्वतखोरी और हेरफेर के आरोपों की झड़ी लगा दी है। उनके ऐसे दावों के बाद, न सिर्फ अमेरिकी राजनीतिक गलियारों में, बल्कि कारोबारियों में भी गर्मागर्म चर्चा चल निकली है। कैनेडी जूनियर अमेरिकी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार होने की वजह से हल्के में कोई बात नहीं कह रहे होंगे, ऐसा मानने वाले भी कम नहीं हैं। आज यह सवाल तेजी से उठ रहा है कि क्या सीएनएन जैसे जाने—माने समाचार संस्थान के पत्रकार ने सच में फाइजर से पैसा खाया होगा, क्या सच में उसने फाइजर के टीके को जरूरत से ज्यादा ‘कारगर’ ठहराया था?
अमेरिका की दिग्गज फार्मास्यूटिकल कंपनी ने कोविड की विभीषिका के बीच अपनी वैक्सीन बाजार में उतारी थी। शुरू में उस वैक्सीन को लेकर कई नकारात्मक चीजें भी छपी थीं। लेकिन फिर धीरे धीरे उसे लगवाने वाले लोगों और खरीदने वाले देशों की संख्या बढ़ने लगी थी। कैनेडी का आरोप है कि इसी टीके को बढ़ावा देने के लिए फाइजर ने एक पत्रकार के साथ सालाना 10 मिलियन डालर का सौदा किया था।
अमेरिका की दिग्गज फार्मास्यूटिकल कंपनी ने कोविड की विभीषिका के बीच अपनी वैक्सीन बाजार में उतारी थी। शुरू में उस वैक्सीन को लेकर कई नकारात्मक चीजें भी छपी थीं। लेकिन फिर धीरे धीरे उसे लगवाने वाले लोगों और खरीदने वाले देशों की संख्या बढ़ने लगी थी। कैनेडी का आरोप है कि इसी टीके को बढ़ावा देने के लिए फाइजर ने एक एंकर के साथ सालाना 10 मिलियन डालर का सौदा किया था।
कैनेडी ने यह बात बोली कहां? अभी उनका एक टीवी चैनल ने इंटरव्यू लिया था। उसमें अमेरिका के अगले राष्ट्रपति होने की उम्मीद पाले कैनेडी ने दावा किया था कि सीएनएन के एक पत्रकार एंडरसन कूपर की सालाना 82 करोड़ की पगार का करीब 80 प्रतिशत सीधे फाइजर देती है।
राबर्ट कैनेडी ने कहा कि कूपर की पगार में से लगभग 10 मिलियन डॉलर की राशि तो सीएनएन के बजाय सीधे फाइजर से भेजी जाती है। उनका आगे आरोप है कूपर चैनल देखने वालों के सामने फाइजर के कोविड टीकों के बारे में तथ्यात्मक जानकारी नहीं रख रहे हैं।
इस क्षेत्र को नजदीक से जानने वाले कहते हैं कि अमेरिकी में बड़े मीडिया संस्थान, खासकर सीएनएन और फॉक्स न्यूज, अधिकांशत: फार्मास्युटिकल कंपनियों से मिलने वाले पैसे के भरोसे काम करते हैं। बीच में विज्ञापन के वक्त ये चैनल उन कंपनियों की दवाओं और टीकों का प्रचार करते हैं।
फॉक्स न्यूज चैनल के बारे में बताया जाता है कि यह मुख्यत: रूढ़िवादी नजरिया रखता है और उन्हीं संस्थाओं से पैसे की सहायता लेता है जो सीएनएन की समर्थक मानी जाती हैं। मीडिया पर फार्मास्युटिकल कंपनियों के असर के मामले में न तो ‘लेफ्ट’ वाले पीछे हैं न ‘राइट’ वाले।
कैनेडी जूनियर का दावा है कि अमेरिकी मुख्यधारा मीडिया में करीब 75 प्रतिशत विज्ञापन आय, जो शाम के समाचारों के वक्त तो कहीं अधिक होती है, वह बहुत हद तक दवा कंपनियों से होती है। कैनेडी का कहना गलत नहीं लगता है कि यह पैसा स्वीकारने के बाद मीडिया संस्थानों की अनेक मुद्दों पर रिपोर्टिंग पक्षपातपूर्ण ही तो रहेगी।
कैनडीके आरोपों पर अभी कूपर की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। दूसरी तरफ फाइजर पर तो एक लंबे वक्त से आरोप लगते आ रहे हैं कि चैनल सरकारी अधिकारियों और मीडिया संस्थानों पर दबाव बनाने और रिश्वत देने में आगे रहता है। कई देशों में तो बताते हैं, फाइजर कंपनी के कोविड टीकों को गंभीर बीमारियों, यहां तक कि मौतों, की भी वजह बताया गया था। कुछ माह पूर्व एक कार्यक्रम में एक पत्रकार ने जब फाइजर के सीईओ अल्बर्ट बोर्ला से वैक्सीन के प्रभाव को लेकर प्रश्न किया तो उन्होंने मुंह सिल लिया और भागते नजर आए।
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