‘ज्येष्ठ’ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को दो दिव्य दैवीय शक्तियां ‘गंगा’ और ‘गायत्री’ एक साथ धराधाम पर अवतरित हुईं थीं। एक ओर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के सूर्यवंशी वंशज राजा भगीरथ ने अपने पुरखों की शाप मुक्ति के लिए कठोरतम तप करके देवनदी ‘गंगा’ को स्वर्ग से धरती पर उतारा था तो दूसरी ओर क्षत्रिय से ब्राह्मणत्व ग्रहण करने वाले महामुनि विश्वामित्र अपनी दुर्धर्ष तपश्चर्या के बल पर ज्ञान गंगा की अधिष्ठात्री मां गायत्री को देवताओं तक सीमित न रहने देकर भूलोक के कल्याण के लिए धरती पर लाये थे। एक ही पर्व तिथि पर दो दिव्य दैवीय शक्तियों का अवतरण भारतीय संस्कृति की विलक्षणता को सिद्ध करता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार इस वर्ष 2023 में ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि 29 मई को सुबह 11 बजकर 49 मिनट पर शुरू हुई और इसका समापन 30 मई को दोपहर 01 बजकर 07 मिनट पर होगा। ऐसे में उदया तिथि को ध्यान में रखते हुए गंगा दशहरा तथा गायत्री जयंती का पर्व 30 मई 2023 मंगलवार के मनाया जाएगा।
भारतीय समाज में मां ‘गंगा’ के प्रति जन आस्था कितनी गहरी है, इसे कोरे शब्दों में अभिव्यक्त नहीं किया जा सकता। पतित पावनी, पापनाशनी, पुण्यसलिला मां गंगा ज्येष्ठ शुक्ल दशमी के दिन इस धराधाम पर अवतरित हुई थीं, इसलिए इस पर्व को ‘गंगा दशहरा’ कहा जाता है। ‘गंगा दशहरा’ को सूर्यवंशी राजा भगीरथ का कठोर तप सार्थक हुआ और स्वर्ग नदी गंगा देवाधिदेव शिव की जटाओं से प्रवाहित होती हुई गंगा धराधाम पर ब्रह्मा द्वारा निर्मित बिंदुसर सरोवर में उतरीं थीं। इस सरोवर की आकृति गाय के मुख के समान दिखने के कारण यह तीर्थ स्थल “गोमुख” के नाम से जाना जाता है।
शास्त्रज्ञ कहते हैं कि ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को दस योगों में मां गंगा का धरती पर अवतरण हुआ था। इसलिए इस पर्व को दशहरा कहा जाता है। ये दस योग हैं- ज्येष्ठ मास, शुक्ल पक्ष, दशमी तिथि, बुधवार, हस्त नक्षत्र, व्यतिपात योग, गर करण, आनंद योग, कन्या का चंद्रमा और वृषभ का सूर्य। ब्रह्मपुराण में कहा गया है कि गंगा का तत्वदर्शन जीवन में उतारने से चोरी, झूठ, अनैतिक हिंसा, क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष, चुगली, परनिंदा, परस्त्री गमन और नास्तिक बुद्धि, यह दस महापातक सहज ही छूट जाते हैं। शास्त्रज्ञ कहते हैं कि जिस तरह संस्कृत भाषा को “देववाणी” की मान्यता प्राप्त है, उसी प्रकार गंगा को “देव नदी” की।
इसके तटों पर ही हमारी महान वैदिक सभ्यता व संस्कृति पुष्पित पल्लवित हुई है। ऋग्वेद, अथर्ववेद, ब्राह्मण ग्रंथों के साथ रामायण, महभारत तथा स्कन्द व नारद पुराण में पुण्य सलिला, पाप-नाशिनी, मोक्ष प्रदायिनी, सरित्श्रेष्ठा देवनदी के रूप में गंगा मइया का विस्तृत यशोगान मिलता है। हम भारतीयों की आस्था मां गंगा से बेहद गहराई से जुड़ी है। हम हर प्रमुख पर्व-त्यौहार पर गंगा में डुबकी लगाते हैं। वैज्ञानिक शोधों में गंगाजल की शुद्धता प्रमाणित हो चुकी है। मां गंगा हम भारतीयों को राष्ट्रीय एकता के सूत्र में पिरोती हैं। लाखों धरती पुत्रों का पेट भरती हैं। आर्य-अनार्य, वैष्णव-शैव, साहित्यकार-वैज्ञानिक सभी ने एकस्वर में इसके महत्व को स्वीकार करते हैं। लोक आस्था के अनुसार जीवन में एक बार भी गंगा में स्नान न कर पाना जीवन की अपूर्णता का द्योतक माना जाता है।
वैदिक मान्यता है कि गंगावतरण की ही तरह इसी पावन दिन भूलोक में महाशक्ति गायत्री का भी अवतरण हुआ था। इसी कारण सनातन धर्मी इस तिथि को ‘गायत्री जयंती’ के रूप में भाव श्रद्धा से मनाते हैं। सनातन हिन्दू धर्म में मां गायत्री को सद्ज्ञान व आत्मबल की अधिष्ठात्री माना जाता है। शास्त्र कहते हैं कि गायत्री जयंती के दिन ही गायत्री महामंत्र का भी प्रादुर्भाव हुआ था। ॐ भूर्भुव: स्व: तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्। (भावार्थ – उस प्राणस्वरूप, दुखनाशक, सुखस्वरूप श्रेष्ठ तेजस्वी, पापनाशक देवस्वरूप परमात्मा को हम अंत:करण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे)। महामंत्र के इस भावार्थ में चारो वेदों का सारतत्व निहित है। श्रीमद्भागवद्गीता में योगेश्वर श्रीकृष्ण का यह कथन कि मन्त्रों में मैं ‘गायत्री’ हूं, इसकी महत्ता को स्वयं प्रमाणित करता है। उपनिषदों के ऋषि कहते हैं कि भारतीय धर्म के ज्ञान विज्ञान का मूल स्रोत होने के कारण गायत्री सर्वोत्तम गुरुमंत्र भी है। इसीलिए गायत्री को “ज्ञान गंगा” भी कहा जाता है।
कई साल पहले गंगा की प्रशस्ति में एक गीत लिखा गया था, “गंगा तेरा पानी अमृत झर-झर बहता जाय, युग-युग से इस देश की धरती तुझसे जीवन पाए…” वाकई एक दौर में गंगा वैसी ही थी। लेकिन बीते पांच दशकों में गंगा के अस्तित्व पर घोर संकट आ पड़ा है। बहुआयामी उपयोगिता व गहन धार्मिक आस्था के बावजूद हम मनुष्यों के पापपूर्ण कृत्यों के चलते मां गंगा प्रदूषण की मार से बुरी तरह कराह रही है। आइए भूल सुधारें और हम सब भारतवासी कलिमल हारिणी मां गंगा की शुद्धि व सुरक्षा के साथ गायत्री महामंत्र के तत्वदर्शन को हृदयंगम कर अंतस की ज्ञानगंगा को जागृत करने के लिए संकल्पबद्ध होकर पूरे मन से प्रयास करें तभी गंगावतरण के साथ गायत्री जयंती का पर्व मनाना सार्थक होगा।
वेदमाता गायत्री के वरदपुत्र पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य
ज्येष्ठ शुक्ल दशमी की पावन तिथि गायत्री महाविद्या के महामनीषी व अखिल विश्व गायत्री परिवार के संस्थापक-संरक्षक वेदमूर्ति पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य के जीवन से भी अविच्छिन्न रूप से जुड़ी हुई है। आचार्यश्री ने अपनी लोकलीला का संवरण कर अपनी आराध्य शक्ति मां गायत्री में विलीन होने के लिए गायत्री जयंती के शुभ दिवस का चयन किया था। सादगी की प्रतिमूर्ति व स्नेह से परिपूर्ण अन्त:करण वाले आचार्यश्री की हर श्वास गायत्रीमय थी। समिधा की तरह उन्होंने अपने पूरे जीवन को संस्कृति यज्ञ में होम कर दिया था। ‘युग के विश्वामित्र’ की उपाधि से अलंकृत आचार्य श्रीराम शर्मा के शब्दों में गायत्री महामन्त्र भारतीय तत्त्वज्ञान एवं अध्यात्मविद्या का मूलभूत आधार है।
जिस तरह वट वृक्ष की समस्त विशालता उसके नन्हे से बीज में सन्निहित रहती है, ठीक वैसे ही वेदों में जिस अविच्छिन्न ज्ञान-विज्ञान का विशद वर्णन किया है, वह सब कुछ बीज रूप में गायत्री मन्त्र में समाहित है। देवता, ऋषि, मनीषी व तपस्वियों ने इसी आधार पर महान सिद्धियां एवं विभूतियां हासिल की हैं। गायत्री वह शक्ति है जो प्राणियों के भीतर विभिन्न प्रकार की प्रतिभाओं, विशेषताओं और महत्ताओं के रूप में परिलक्षित होती है। जो इस शक्ति के उपयोग का विधान- विज्ञान ठीक तरह जानता है, वह उससे वैसा ही लाभ उठाता है जैसा कि भौतिक जगत् के वैज्ञानिक अपनी प्रयोगशालाओं, मशीनों तथा कारखानों के माध्यम से उपार्जित करते हैं। गायत्री का सबसे बड़ा जो गुण है, जिसके ऊपर गायत्री शब्द ही रखा गया है- ”गय”। संस्कृत में प्राण को ”गय” कहते हैं और प्राण का त्राण करने वाली शक्ति गायत्री कहलाती है। गायत्री महाशक्ति की तात्विक विवेचना करते हुए आचार्यवर ने लिखा है कि हिंदू धर्म में मां गायत्री को पंचमुखी माना गया है जिसका अर्थ है यह संपूर्ण ब्रह्माण्ड जल, वायु, पृथ्वी, तेज और आकाश के पांच तत्वों से बना है। संसार में जितने भी प्राणी हैं, उनका शरीर भी इन्हीं पांच तत्वों से बना है। इस पृथ्वी पर प्रत्येक जीव के भीतर गायत्री प्राण-शक्ति के रूप में विद्यमान है।
आचार्यश्री ने भारतीय जनजीवन में आध्यात्मिक नवजागरण का जो महापुरुषार्थ किया, उसके लिए समूची मानव जाति सदैव इस विलक्षण राष्ट्र संत की सदैव ऋणी रहेगी। समय की मांग के अनुरूप जीवन के विभिन्न पहलुओं पर अभिनव, प्रेरणा व संवेदना जगाती 3200 पुस्तकों का सृजन उनकी अद्वितीय लेखकीय क्षमता का द्योतक है। मानवी चेतना में सुसंस्कारिता संवर्धन, अध्यात्म व विज्ञान के समन्वय, पर्यावरण व लौकिक जीवन का शायद कोई ऐसा पक्ष हो जो इस युग व्यास की लेखनी से अछूता रहा हो। आचार्यश्री ने अपने 80 वर्ष के जीवनकाल में खुद के बलबूते सुगढ़ मानवों को गढ़ने की टकसाल के रूप में जिस गायत्री तीर्थ शांतिकुंज की आधारशिला रखी थी। आज वह करोड़ों की सदस्य संख्या वाले अखिल विश्व गायत्री परिवार बनकर भारत के सांस्कृतिक पुनरोत्थान में जुटा हुआ है।
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