श्रीअन्न से बने खाद्य पदार्थों व उत्पादों की लोकप्रियता इसी बात से समझ सकते हैं कि जी-20 की बैठकों में विदेशी मेहमानों के बीच बाजरे की खिचड़ी, चूरमा, जौ के सूप से लेकर नूडल्स की मांग सबसे अधिक है। भारत की पहल पर विश्व 2023 को मोटे अनाज के अंतरराष्ट्रीय वर्ष के रूप में मना रहा है।
मध्य प्रदेश में सतपुड़ा की गोद में बसे छिंदवाड़ा जिले के कारेआम गांव के राकेश पचलिया, अलीवाड़ा गांव के गुरुदयाल धुर्वे के लिए कुछ साल पहले तक खेती घाटे का सौदा थी। शहर और गांव के बीच आजीविका की तलाश उनकी नियति बन गई थी। इसी बीच स्थानीय कृषि विभाग के अधिकारियों से उनकी मुलाकात हुई। कृषि विज्ञान केंद्र के सहयोग से कृषि उत्पादक संगठन बनाया। अब बाजरा,कोदो, कुटकी से बने चावल-आटा, मिलेट रस्क, मिलेट मल्टी ग्रेन आटा, मिलेट बार, बिस्किट जैसे दर्जन भर उत्पाद तैयार कर रहे हैं। इन किसानों के पास मोटे अनाज (मिलेट) से बने उत्पादों की मांग इतनी अधिक है कि उसे पूरा करना कठिन हो जाता है। अकेले छिंदवाड़ा जिले में मोटा अनाज 20 हजार किसानों की भाग्यरेखा बन गया है। श्रीअन्न के जरिए स्वाद से समृद्धि की ऐसी कहानी देश के अलग-अलग हिस्से में लिखी जा रही है।
श्रीअन्न से बने खाद्य पदार्थों व उत्पादों की लोकप्रियता इसी बात से समझ सकते हैं कि जी-20 की बैठकों में विदेशी मेहमानों के बीच बाजरे की खिचड़ी, चूरमा, जौ के सूप से लेकर नूडल्स की मांग सबसे अधिक है। भारत की पहल पर विश्व 2023 को मोटे अनाज के अंतरराष्ट्रीय वर्ष के रूप में मना रहा है। कभी हमारी थाली से लेकर खेत-खलिहाल की शान रहे श्रीअन्न एक बार फिर हमें स्वाद से समृद्धि की ओर लेकर आए हैं। देश में श्रीअन्न की सभी नौ प्रमुख प्रजातियों बाजरा, रागी, कंगना, चेना कोदो, कुटकी, सांवा, छोटी कंगनी और चारा से खेत लहलहा रहे हैं। शहरों में सुपरफूड के रूप में लोकप्रिय अन्न कथित हरित क्रांति से पहले हमारी खाद्य सुरक्षा के प्रमुख आधार थे। हालांकि पिछले कुछ दशकों में गेहूं और धान पर जरूरत से ज्यादा निवेश ने मोटे अनाज के उत्पादन को न सिर्फ कमजोर किया बल्कि पर्यावरण और मानवीय सेहत के सामने चुनौतियां लेकर आया। 1962 में जहां प्रति व्यक्ति मोटे अनाज की खपत 32.9 किग्रा थी, वहीं 2010 तक यह अनुपात घटकर 4.2 किग्रा हो गयी। इसी अवधि में प्रति व्यक्ति गेहूं की खपत 27 किग्रा से बढ़कर 52 किग्रा हो गई।
मोटे अनाज की पैदावार बढ़ी
नीति आयोग द्वारा जारी ताजा रिपोर्ट बताती है कि कैसे पिछले कुछ वर्षों में मोटे अनाज खेती, पर्यावरण और लोगों की सेहत का आधार बन रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक अलग-अलग राज्यों ने स्वस्थ प्रतिस्पर्धा कर मोटे अनाज के उत्पादन व खपत को नयी ऊंचाई दी है। पिछले वित्तीय वर्ष में देश से कृषि व उससे जुड़े उत्पादों के निर्यात में 19.92 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। केंद्रीय कृषि मंत्रालय के आंकड़े के मुताबिक भारत ने 2022-23 में (अप्रैल से नवंबर) के बीच 1,04,146 मीट्रिक टन मोटे अनाज का निर्यात किया है, जिसका मूल्य 365.85 करोड़ रुपये है। भारत मोटे अनाज के 5 बड़े निर्यातकों में शामिल हो गया है।
स्वास्थ्य और खाद्य सुरक्षा में सहायक
आहार विशेषज्ञ मनीषा अग्रवाल कहती हैं कि प्रोटीन, कॉबोर्हाइड्रेट, एंटीआॅक्सिडेंट, फाइबर, आयरन, मैग्नीशियम और कैल्शियम से भरपूर श्रीअन्न हजारों साल से खाद्य श्रृंखला का अहम हिस्सा रहे हैं। केंद्रीय महिला एवं बाल विकास विभाग ने श्रीअन्न को पोषण अभियान में शामिल किया है। एकीकृत बाल विकास परियोजनाओं (आईसीडीएस) में मक्का, ज्वार, बाजरा, रागी, कोदो को शामिल करने से बच्चों में कुपोषण की समस्या कम हो रही है। देश की अलग-अलग राज्य सरकारें श्रीअन्न आधारित खाद्य पदार्थों को मध्यान्ह भोजन योजना में शामिल किया है। इससे यह खून की कमी, सूखारोग (रिकेट्स) और कुपोषण से लड़ने में कारगर जरिया बने हैं। यह आंत से जुड़ी बीमारियों के साथ ही यह मधुमेह जैसी बीमारियों से भी बचाव करते हैं। मनीषा अग्रवाल कहती हैं, देश में जिस तरह जीवनशैली आधारित बीमारियां जैसे मोटापा, मधुमेह और ह्रदय रोग बढ़ रहे हैं, उससे निजात दिलाने में मोटे अनाज काफी सहायक हैं। मोटे अनाज में ग्लुटन नहीं होता है, इससे मोटापा और मधुमेह को नियंत्रित करता है। पाचन तंत्र को व्यवस्थित रखने में इनका कोई सानी नहीं।
मौसम अनुकूल श्रीअन्न
मध्य प्रदेश के कृषि उप संचालक जितेंद्र कुमार सिंह के मुताबिक ‘श्रीअन्न फसल विविधीकरण का सबसे सशक्त माध्यम है। यह कार्बन फुटप्रिंट को भी कम करते हैं। श्रीअन्न खाद्य प्रणाली में विविधता लाने के साथ समग्र कृषि प्रणाली को समावेशी बना रहे हैं। मोटे अनाज की खेती न सिर्फ आसान है बल्कि इनकी जलवायु प्रतिरोधक क्षमता कहीं अधिक होती है। इनके उत्पादन में धान, गेहूं और गन्ने जैसी फसलों के मुकाबले बहुत कम पानी खर्च होता है। गन्ने के पौधे को 2100 मिलीलीटर पानी की जरूरत होती है। वहीं बाजरे के एक पौधे को जीवनकाल में 350 मिलीलीटर पानी की आवश्यकता होती है। शुष्क और अर्धशुष्क क्षेत्रों में 50 डिग्री सेल्सियस में भी मोटे अनाज की खेती की जा सकती है।
जनजातीय समाज की जीवनरेखा बने श्रीअन्न
मध्य प्रदेश के मंडला की गोंड जनजाति की पीढ़ियां वर्षों से बाजरे की खेती करती आयी हैं। उनके भोजन का यह अहम हिस्सा होता था, लेकिन धान, कपास, मूंगफली की व्यावसायिक खेती ने उन्हें मोटे अनाज से दूर कर दिया। सार्वजनिक वितरण प्रणाली से मिलने वाले चावल ने और भी रही-सही कसर पूरी कर दी। लेकिन अब अब प्रदेश सरकार और गैर सरकारी संगठनों के प्रयासों से मंडला और डिंडोरी में गोंड जनजातियां एक बार फिर बाजरे की खेती की ओर लौट आयी हैं। एक्शन फॉर सोशल एडवांसमेंट (एएसए) नामक गैर सरकारी संगठन के जरिए 40 गांवों का चयन किया गया। यहां कोदो और कुटकी के उत्पादन के लिए किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है।
इसी क्रम में जनजाति बहुल छत्तीसगढ़ ने सितंबर 2021 में मोटे अनाज पर मिशन की शुरूआत की। योजना के अंतर्गत कोदो, छोटी कंगनी, रागी के उत्पादन पर बल दिया गया है। राज्य के 20 जिलों के 85 ब्लॉक में यह योजना संचालित है। न्यूनतम आय योजना के तहत 9 हजार रुपये प्रति हेक्टेअर लागत मुहैया कराई जाती है। 30 रुपये प्रति किलो न्यूनतम समर्थन मूल्य कोदो और कुटकी के लिए तथा 33.77 रु प्रति किग्रा रागी के लिए तय की गई है। राज्य ने 20 हेक्टेअर में उत्कृष्टता केंद्र स्थापित किया है, जहां उन्नत बीज, प्रशिक्षण, आधुनिक उपकरण, क्षमता निर्माण का प्रशिक्षण दिया जाता है।
ऐसे बढ़ रही श्रीअन्न की खेती
- कृषि विज्ञान केंद्र के सहयोग से उन्नत बीज उपलब्ध कराया जाता है
- बुआई के लिए छिटकने की जगह कतार बोनी (लाइन सोइंग) को प्रोत्साहन
- जैविक खाद से पोषक तत्वों का प्रबंधन
- नाबार्ड के सहयोग से प्रसंस्करण संयंत्र व इकाई स्थापित की जाती है
- महिला स्वसहायता समूह की सदस्यों को कृषि विज्ञान केंद्र से प्रशिक्षण
- एफपीओ और एसएचजी का बाजार से संपर्क
ओडिसा : मिलेट कैफे और टिफिन सेंटर
ओडिसा राज्य सरकार ने 2017 में मोटे अनाज पर मिशन मोड में काम करना शुरू किया। राज्य में वाटरशेड सपोर्ट सर्विस एंड एक्टिविटीज नेटवर्क के जरिए जनजाति बहुल जिलों में मोटे अनाज के उत्पादन को प्रोत्साहित किया जा रहा है। प्रदेश के 15 जिलों के 84 ब्लॉक, जो मुख्य रूप से पहाड़ी इलाके हैं। में आज बाजरा और दूसरे मोटे अनाज लहलहा रहे हैं। महिला स्वसहायता समूह यहां प्रसंस्करण संयंत्र भी चलाता है। मिशन शक्ति और ओडिसा मिलेट्स मिशन के जरिए ग्रामीण इलाकों के साथ ही शहरों में भी मोटे अनाज की खपत बढ़ी है। राज्य में 6 लाख समूहों के जरिए ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में 70 लाख महिलाएं इस अभियान से जुड़ चुकी हैं। इससे मलकानगिरी, मयूरभंज, बोलागीर, रायगढ़ जिले में आदिवासी समाज का जीवन स्तर भी ऊंचा हुआ है।
अभियान के तहत स्वसहायता समूह की महिलाओं को मिलेट शक्ति टिफिन सेंटर संचालित करने के लिए आर्थिक सहयोग प्रदान किया जाता है। टिफिन सेंटर में मोटे अनाज पर आधारित पकवान बनते हैं। तय समय में विभिन्न चार पहिया वाहनों के जरिए सेंटरों से टिफिन एकत्र कर ग्राहकों तक पहुंचाया जाता है। 30 हजार रुपये के आर्थिक सहयोग से स्थापित मिलेट शक्ति टिफिन सेंटर से प्रति महिला को 6 हजार रुपये प्रति महीना आमदनी हो रही है। इसी तरह भुवनेश्वर, कटक, संभलपुर, राउरकेला, पुरी, कोणार्क, बेहरामपुर, क्योंझर, सुंदरगढ़, जाजपुर में ‘अर्बन मिलेट शक्ति कैफे’ फास्ट फूड का नया विकल्प मुहैया करा रहे हैं।
मोटे अनाज के उत्पादन को प्रोत्साहित कर रहे केंद्रीय संस्थान
- भारतीय कदन्न अनुसंधान संस्थान (आईआईएमआर) हैदाराबाद
- भारतीय बाजार अनुसंधान संस्थान हैदाराबाद
- केंद्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी संस्थान (सीएसआईआर) मैसूर
- केंद्रीय कटाई उपरांत अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (लुधियाना)
हरियाणा : नहीं रही दाम न मिलने की चिंता
हरियाणा में चरखी दादरी, भिवानी, रेवाड़ी, झज्जर, महेन्द्रगढ़, नूंह और हिसार बाजरा खेती के नये केंद्र बनकर उभरे हैं। पहले किसानों को मोटे अनाज की अच्छी कीमत नहीं मिलने की चिंता सताती थी। इसके समाधान के लिए प्रदेश सरकार ने भावांतर भरपाई योजना से मोटे अनाज के उत्पादन को जोड़ा है। इससे जो किसान मोटे अनाज की खेती करते थे लेकिन लागत नहीं मिलने की वजह घाटे में फसल बेचने को मजबूर होते थे, उन्हें अब अच्छी लागत मिल रही है। इसके अंतर्गत जिन किसानों की बाजरे की फसल एमएसपी से कम दाम पर बिकेगी, उन्हें सरकार द्वारा 450 रुपये प्रति एकड़ मुआवजा दिया जाता है। हरियाणा इस तरह की योजना लागू करने वाला देश का पहला राज्य है। केंद्र सरकार ने बाजरे की एमएसपी 2,350 रुपये प्रति क्विंटल निर्धारित की है।
गुजरात के नर्मदा, और डांड जिले के जनजाति समुदाय के जीवन स्तर में श्रीअन्न समृद्धि की बहार लेकर आये हैं। नर्मदा के डेडियापाड़ा तहसील में एक हजार किसान श्रीअन्न की खेती कर रहे हैं। स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा इन्हें नि:शुल्क बीज मुहैया कराया गया, जिससे वह इसकी खेती के लिए प्रेरित हुए। मोटे अनाज के छिलके निकालने के लिए एक संयंत्र लगाया गया है, वहीं एक वैक्यूम पैक मशीन स्थापित की गई है। इससे मोटे अनाज को परिष्कृत किया जाता है।
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