संसद भवन के ठीक बगल में रेड क्रॉस सोसायटी के बाहर, गुरुद्वारा बंगला साहिब के पास आदि स्थानों पर मजारें उग आईं। सर्वोच्च न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता हरिशंकर जैन इसे जमीन जिहाद मानते हुए कहते हैं कि कट्टरपंथियों का एक समूह इसी बहाने शहरों के मुख्य स्थलों को कब्जाता है।
नई दिल्ली में संसद भवन से लगभग 400 मीटर की दूरी पर पटेल चौक के निकट भारत के चुनाव आयोग का कार्यालय है। यहीं से पूरे देश में चुनाव संपन्न कराए जाते हैं। इतने शक्तिशाली और महत्वपूर्ण कार्यालय के मुख्य द्वार के पास कुछ वर्ष पहले एक पेड़के नीचे थोड़ी ईंटें रखी गईं। इसके बाद पेड़ के निचले हिस्से को सफेद-हरे रंग से रंगा गया और देखते ही देखते वहां एक कथित मजार उग आई। इसके फैलाव को वह चुनाव आयोग भी नहीं रोक पाया, जो बड़े-बड़े नेताओं को ‘सीधा’ कर देता है। चुनाव आयोग के दफ्तर आने और जाने वाले नेताओं, प्रशासनिक अधिकारियों की कभी उस अवैध मजार पर नजर नहीं गई, फैलाव रोकना तो दूर की बात! यही कारण है कि दिनों-दिन मजार का आकार बढ़ता गया।
इतना ही नहीं, इस इलाके में और भी अवैध मजारें बनती चली गईं। संसद भवन के ठीक बगल में रेड क्रॉस सोसायटी के बाहर, गुरुद्वारा बंगला साहिब के पास आदि स्थानों पर मजारें उग आईं। सर्वोच्च न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता हरिशंकर जैन इसे जमीन जिहाद मानते हुए कहते हैं कि कट्टरपंथियों का एक समूह इसी बहाने शहरों के मुख्य स्थलों को कब्जाता है। फिर यहीं से अराजक गतिविधयों को संचालित करता है। वे यह भी कहते हैं, ‘‘अवैध मजार या मस्जिद बनाने के पीछे दारुल इस्लाम की सोच है, जो भारत को इस्लामी देश बनाना चाहती है।
दुर्भाग्य से इस सोच को सेकुलर नेताओं का समर्थन मिलता है। इसलिए कभी इस पर विचार नहीं किया गया कि संसद के आसपास इतनी मजारें और मस्जिदें कैसे और क्यों उग रही हैं?’’ हालांकि विश्व हिंदू परिषद जैसे कई संगठन वर्षों से इन अवैध मजारों को हटाने की पुरजोर मांग करते रहे हैं, लेकिन कभी भी इनकी मांग को गंभीरता से नहीं लिया गया। प्रशासनिक स्तर से इन मजारों के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं हुई तो प्रीत सिंह और कुछ अन्य ने 4 मार्च, 2023 को दिल्ली उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की। इसमें कहा गया कि दिल्ली में सरकारी भूखंडों पर अवैध रूप से मजार और मस्जिदें बन रही हैं, जो ठीक नहीं है।
याचिका में 15 अवैध मजारों और मस्जिदों का सचित्र विवरण दिया गया है। इसके साथ ही न्यायालय से मांग की गई है कि इस तरह के निर्माण पर रोक लगनी चाहिए और जो निर्माण हो गया है, उसे ध्वस्त किया जाना चाहिए। इस याचिका की सुनवाई दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रह्मण्यम प्रसाद की दो सदस्यीय पीठ ने की। इस पीठ ने 7 मार्च को आदेश दिया कि इन सभी स्थानों की स्थिति का निरीक्षण किया जाए। इसके साथ ही अदालत ने यह भी कहा कि इस पर अगली सुनवाई 15 मई को होगी।
पाञ्चजन्य ने पहले ही जगाया
अवैध मजार और मस्जिदों पर पाञ्चजन्य (20 सितंबर, 2020) में एक आवरण कथा प्रकाशित हुई थी। ‘जमीन हथियाने का हथियार’ शीर्षक से प्रकाशित इस रपट में विस्तार से बताया गया था कि वक्फ बोर्ड किस तरह सरकारी जमीन पर कब्जा करवा रहा है। उस समय पाञ्चजन्य के आवरण पृष्ठ पर चुनाव आयोग के बाहर वाली मजार का चित्र छपा था। पाञ्चजन्य ने जिस मुद्दे को उठाया, आज वह अंतिम दौर में दिख रहा है।
याचिकाकर्ता के वकील विष्णु शंकर जैन का कहना है कि न्यायालय के आदेश के बाद संबंधितविभागों के अधिकारी हरकत में आए और इन लोगों ने कुछ अवैध मजारों को ध्वस्त किया। इनमें प्रमुख है चुनाव आयोग के मुख्य द्वार के पास की मजार। पिछले दिनों नई दिल्ली नगरपालिका परिषद (एनडीएमसी) और कुछ अन्य सरकारी संस्थाओं ने संयुक्त कार्रवाई कर उस मजार को हटा दिया। इसके अलावा मंडी हाउस स्थित गोल चक्कर के पास बनी मजार को भी 23 अप्रैल को जमींदोज कर दिया गया।
दूसरे दिन वहां पहुंचे वामपंथी और मजहबी संगठनों के कुछ स्वयंभू नेताओं ने लोगों को भड़काने का प्रयास किया। वे कह रहे थे कि यह सब केंद्र सरकार के इशारे पर हो रहा है, लेकिन कोई उनकी एक सुनने को तैयार नहीं था। उल्टे वहां मौजूद ज्यादातर लोग मजार के हटने से खुश थे, क्योंकि वर्षों से यह मजार आवागमन को अवरुद्ध कर रही थी।
अतिक्रमण हटाओ अभियान का असर 27 अप्रैल को पूर्वी दिल्ली के हसनपुर डिपोे के पास भी दिखा, जहां सड़क के बीचोंबीच बनी मजार को ध्वस्त कर दिया गया। इस मजार को दिल्ली के उपराज्यपाल द्वारा गठित रिलीजियस कमेटी की अनुशंसा पर तोड़ा गया, क्योंकि इस मजार के कारण हसनपुर डिपो और उसके आसपास गाड़ियों की आवाजाही में बहुत परेशानी होती थी। हमेशा जाम की स्थिति रहती थी। इस कारण स्थानीय लोग इसके विरोध में थे और हटाने की मांग कर रहे थे।
इससे पहले 12 अप्रैल को बंगाली मार्केट में एक मस्जिद की अवैध चारदीवारी को तोड़ा गया। यह कार्रवाई भूमि तथा विकास कार्यालय (एलएंडडीओ), केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (सीपीडब्ल्यूडी) और एनडीएमसी ने की। इन सरकारी संस्थानों का कहना है कि मस्जिद की चारदीवारी अवैध थी। इसलिए उसको तोड़ा गया, हालांकि मस्जिद की देखरेख करने वालों का कहना है कि अवैध निर्माण नहीं हुआ था।
चोरी और सीनाजोरी
गत 1 अप्रैल को निजामुद्दीन इलाके में मथुरा रोड पर मस्जिद के सामने बनी अनेक मजारों को भी तोड़ा गया। हालांकि यहां अभी भी कई मजारें बिल्कुल सड़क पर हैं। जमीन जिहाद क्या होता है, इस स्थान को देखकर अंदाजा लगा सकते हैं। यहां क्रम से मजारें इस तरह बनाई जा रही है कि धीरे-धीरे सड़क के एक बड़े हिस्से पर ही कब्जा जमा लिया गया है। खबर यह भी है कि कार्रवाई के कुछ दिन बाद ही फिर से जमीन जिहादियों ने वहां पहले जैसा रूप देना शुरू कर दिया है। सड़क पर ही नहीं, अपितु उसके आसपास भी कब्जा जमाया जा रहा है।
छत्तरपुर में भी कार्रवाई
छत्तरपुर के सीडीआर चौक के पास बीच सड़क पर बनी मजार को भी तोड़ा गया है। इस मजार के कारण वहां जाम की भयंकर समस्या रहती थी। जाम से परेशान एक महिला ने कुछ दिन पहले इस मजार को तोड़ने का प्रयास किया था। बाद में शांति भंग करने के आरोप में उस महिला को गिरफ्तार किया गया। हालांकि जल्दी ही उसे जमानत पर छोड़ दिया गया। अब प्रशासन ने मजार को खुद ही तोड़ दिया तो लोग उस महिला की बड़ी तारीफ कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री आवास के पास अवैध मस्जिद
जमीन जिहाद से प्रधानमंत्री आवास वाला क्षेत्र भी नहीं बचा है। उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री का आवास लोककल्याण मार्ग पर स्थित है। पहले इस मार्ग को रेस कोर्स रोड कहा जाता था। यहां डेढ़ किलोमीटर लंबा घुड़दौड़ क्षेत्र है। आए दिन इस पर घुÞड़दौड़ होती है। इस घुड़दौड़ क्षेत्र के किनारे और वायु सेना स्टेशन के ठीक पीछे पहले एक झुग्गी बस्ती बसाई गई और बाद में वहां मस्जिद बना दी गई। इस झुग्गी बस्ती के लिए कोई आम रास्ता नहीं है। लोग घुड़दौड़ क्षेत्र से होकर ही आना-जाना करते हैं।
जब घुड़दौड़ होती है तो इनकी आवाजाही बंद कर दी जाती है। अब सवाल उठता है कि जहां आने-जाने के लिए कोई रास्ता तक नहीं है, वहां मस्जिद कैसे और किसकी शह पर बन गई? वहां रहने वालों को बिजली और पानी का कनेक्शन कैसे मिल गया? यह झुग्गी बस्ती प्रधानमंत्री आवास से केवल 500 मीटर दूर है। वहां कौन लोग रहते हैं, कहां से आते हैं, इनका लेखा-जोखा किसी के पास नहीं है। सुरक्षा को देखते हुए गत दिनों वायु सेना ने इस झुग्गी बस्ती को हटाने के लिए संबंधित विभाग को लिखा। इसके बाद बस्ती में कुछ दो मंजिली इमारतों को तोड़ा गया।
इन सबको देखते हुए विश्व हिंदू परिषद ने अवैध मजारों को हटाने का स्वागत किया है। विश्व हिंदू परिषद के संयुक्त महामंत्री डॉ. सुरेंद्र कुमार जैन कहते हैं, ‘‘दिल्ली में कई जगह बीस वर्ष पहले बने पुलों पर भी मजारें बन गईं और कहा जा रहा है कि ये 60 साल पुरानी हैं। यह कैसे हो सकता है? यह जमीन जिहाद है और ये गुप्तचरों को बैठाने के अड्डे हैं। इसलिए इन्हें हटाया ही जाना चाहिए।’’
बहरहाल, अभी दिल्ली में चंद अवैध मजारों पर ही कार्रवाई हुई है, लेकिन सैकड़ों स्थानों पर अभी भी अवैध मजार और मस्जिदें हैं, जिन पर कार्रवाई होनी बाकी है। उम्मीद है कि संबंधित प्रशासन यह कार्रवाई तब तक करेगा जब तक कि कब्जाई हुई जमीन मुक्त नहीं हो जाती है।
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