वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को देवी बगलामुखी का प्राकट्य दिवस मनाया जाता है। देवी बगलामुखी दशम महाविद्या में से अष्टम महाविद्या हैं, जिसमें संपूर्ण ब्रह्माण्ड की शक्ति का समावेश हैं। देवी बगलामुखी का नाम पीताम्बरा या ब्रह्मास्त्र विद्या भी है। देवी का वर्ण स्वर्ण के समान पीला है, देवी रत्नजडित सिहासन पर आरूढ़ हो शत्रुओं का नाश करती हैं। बगला शब्द संस्कृत के वल्गा का अपभ्रंश है, जिसका शाब्दिक अर्थ दुल्हन है, वस्तुतः देवी के अलौकिक सौंदर्य और स्तंभन शक्ति के कारण ही उक्त नाम प्राप्त हुआ है। मां बगलामुखी स्तंभन शक्ति की अधिष्ठात्री देवी हैं अर्थात यह अपने भक्तों के सकल भय को दूर करके शत्रुओं का सर्वनाश करती हैं।
आज का पंचांग – बैसाख मास, ग्रीष्म ऋतु, शुक्ल पक्ष, पुष्य नक्षत्र, अष्टमी तिथि, शुक्रवार, श्री दुर्गाष्टमी, श्री बगुलामुखी जयंती, राहुकाल पूर्वाह्न 10:30 बजे से दोपहर 12:00 बजे तक, दिशाशूल पश्चिम दिशा में, सूर्य उत्तरायण, युगाब्द 5125, विक्रम संवत 2080 तदानुसार 28 अप्रैल सन 2023.
क्या है प्रचलित कथा
हिंदू धर्मशास्त्रों में देवी बंगलामुखी के संबंध में प्रचलित कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक समय महाविनाश उत्पन्न करने वाला ब्रह्मांडीय बवंडर के रूप में विकट तूफान आया, इस विकट तूफान के कारण सकल विश्व पर तहस-नहस और नष्ट होने का संकट आ खड़ा हुआ था। बवंडर से सकल जगत में चारों ओर हाहाकार मच गया, संसार की रक्षा करना असंभव हो गया था। यह बवंडर सब कुछ नष्ट करता हुआ तेजी से आगे बढ़ता जा रहा था। विनाशकारी दृश्य देखकर भगवान श्री विष्णु चिंतित हो गए, उपस्थित समस्या का कोई निदान समझ में नहीं आने से उन्होंने देवाधिदेव महादेव का स्मरण किया। भगवान महादेव ने सुझाव दिया कि आदिशक्ति के अतिरिक्त अन्य कोई भी इस महाविनाश को रोक नहीं सकता, अत: आप उनकी ही शरण में जाएं। भगवान श्रीविष्णु ने हरिद्रा सरोवर के निकट कठोर तप करके देवी महात्रिपुरसुंदरी को प्रसन्न किया, तप साधना से प्रसन्न उस महापीत देवी के हृदय से दिव्य तेज उत्पन्न हुआ। उस दिव्य महापुंज से देवी मां बगलामुखी के रूप में प्रकट हुईं। त्रैलोक्य स्तम्भिनी अष्ट महाविद्या मां भगवती देवी बगलामुखी ने अति प्रसन्न होकर भगवान श्री विष्णु को इच्छित वर दिया और तब देवी की महान कृपा से सृष्टि का विनाश रुकना सम्भव हो सका था।
माँ बगलामुखी की पूजा अर्चना हेतु इस दिन ब्रह्ममुहूर्त में प्रात:जागरण कर नित्य कर्मों में निवृत्त होकर स्नान करें और साफ स्वच्छ पीले वस्त्र धारण करें तत्पश्चात व्रत का संकल्प करें। पूर्व दिशा की ओर मुख करके आसन पर बैठकर चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर मां भगवती देवी बगलामुखी की प्रतिमा स्थापित करें। आचमन कर हाथ धोएं, आसन पवित्रीकरण, स्वस्तिवाचन, दीप प्रज्जवलन के बाद हाथ में पीले चावल, हरिद्रा, नारियल, पीले वस्त्र, पीले फूल और दक्षिणा लेकर संकल्प करें। जप के लिए हल्दी की माला ले, श्रद्धानुसार जप करें। संपूर्ण मनोरथ को पूर्ण करने की प्रार्थना करें, अंत में पूजा, अर्चना एवं व्रतकाल में भूलवश हुई किसी भी त्रुटि के लिए क्षमा याचना करें।
सौवर्णामनसंस्थितां त्रिनयनां पीतांशुकोल्लसिनीम्।
हेमावांगरूचि शशांक मुकुटां सच्चम्पकस्रग्युताम्।।
हस्तैर्मुद़गर पाशवज्ररसना सम्बि भ्रति भूषणै।
व्याप्तांगी बगलामुखी त्रिजगतां सस्तम्भिनौ चिन्तयेत्।।
देवी बगलामुखी की आराधना शत्रुनाश, वाकसिद्धि, राज्यसत्ता, वाद विवाद में विजय के लिए की जाती है। इनकी उपासना से मनुष्य का जीवन प्रत्येक बाधा से मुक्त हो जाता है। देवी बगलामुखी की साधना करने वाला साधक सर्वशक्ति सम्पन्न हो जाता है। देवी बगलामुखी के मंत्र का उपयोग स्वाधिष्ठान चक्र की कुंडलिनी जागृति के लिए करते हैं। गृहस्थों के लिए देवी समस्त प्रकार के संशयों का शमन करने वाली हैं। देवी बगुलामुखी की पूजा अर्चना में ब्रह्मचर्य का पालन करना अनिवार्य होता है।
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