तीन तलाक पर बने कानून को चुनौती देने के मामले में केंद्र सरकार ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पूरी तरह अमल सुनिश्चित करने के लिए कानून समय की जरूरत थी, ऐसे केस में 3 साल तक की सजा से तीन तलाक को रोकने में मदद मिली है।
केंद्र सरकार ने कहा है कि तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित किये जाने के बावजूद अभी भी पूरी तरह इस पर रोक नहीं लग पाई है। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में कहा है कि कोर्ट के फैसले के बाद भी देशभर में सैकड़ों की संख्या में तीन तलाक के केस सामने आए हैं।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने ट्रिपल तलाक कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। बोर्ड ने कहा है कि तलाक-ए-बिद्दत को अपराध बनाना असंवैधानिक है। इस मसले पर जमीयत-उलेमा-ए-हिंद समेत 3 याचिकाएं पहले से लंबित हैं। इन पर कोर्ट ने 13 सितंबर 2019 को नोटिस जारी किया था।
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ वकील सलमान खुर्शीद ने कहा था कि जिस प्रथा को सुप्रीम कोर्ट रद्द घोषित कर चुका है, उसके लिए सजा का प्रावधान क्यों किया गया है। उन्होंने कहा था कि तीन साल की सजा वाला सख्त कानून परिवार के हित में नहीं है।
जमीयत उलेमा-ए-हिंद की याचिका में ट्रिपल तलाक के कानून पर रोक लगाने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि ट्रिपल तलाक को रोकने वाला हालिया कानून संविधान की मूल भावना के अनुरूप नहीं है। वकील एजाज मकबूल के जरिये दायर याचिका में इस कानून पर रोक लगाने के लिए दिशा-निर्देश जारी करने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि इस कानून को लागू करने के लिए ऐसी कोई परिस्थिति नहीं थी क्योंकि ऐसे तलाक को सुप्रीम कोर्ट पहले ही असंवैधानिक घोषित कर चुका है।
याचिका में कहा गया है कि इस्लामिक कानून के मुताबिक शादी एक दीवानी कांट्रैक्ट है और तलाक के जरिये उस कांट्रैक्ट को खत्म किया जाता है। इसलिए दीवानी गलतियों के लिए फौजदारी उत्तरदायित्व तय करना मुस्लिम पुरुषों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। याचिका में कहा गया है कि एक्ट की धारा 4 के मुताबिक 3 साल की कैद का प्रावधान काफी ज्यादा है, क्योंकि इससे गंभीर मामलों में भी उससे कम की सजा का प्रावधान है। एक्ट की धारा 7 के मुताबिक इसे गैर जमानती अपराध माना गया है, जबकि उससे गंभीर अपराधों जैसे अपहरण इत्यादि जमानती हैं।
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