उत्तर प्रदेश के माफिया डॉन अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की हत्या कर दी गई। यह निश्चित रूप से उत्तर प्रदेश पुलिस की एक बड़ी विफलता का द्योतक तो है, पर शायद इस हत्या से भी बड़ी हत्या उन परिणामों की करने की चेष्टा हो रही है, जो प्रदेश को एक लंबी यातना के बाद सुकून की सांस लेने का अवसर दे रहे हैं।
दिनांक 15 अप्रैल, समय- रात करीब 10:30 बजे। स्थान- प्रयागराज जनपद के मंडलीय चिकित्सालय के सामने। लगभग 20 सेकंड तक हुई गोलीबारी और भारी पुलिस बल की उपस्थिति में उत्तर प्रदेश के माफिया डॉन अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की हत्या कर दी गई। यह निश्चित रूप से उत्तर प्रदेश पुलिस की एक बड़ी विफलता का द्योतक तो है, पर शायद इस हत्या से भी बड़ी हत्या उन परिणामों की करने की चेष्टा हो रही है, जो प्रदेश को एक लंबी यातना के बाद सुकून की सांस लेने का अवसर दे रहे हैं।
आप इंटरनेट पर अतीक अहमद का आपराधिक इतिहास खोजने की कोशिश करें। अधिकतर स्रोत मीडिया के मिलेंगे, जिनमें एक-दो वाक्यों में राजू पाल और उमेश पाल हत्याकांड के उल्लेख के बाद सीधे अतीक के राजनीतिक वृत्तांत की चर्चा होने लगती है। आप अंग्रेजी मीडिया को देखने की कोशिश करें। अधिकांश खबरें यह बताती नजर आती हैं कि किस तरह अतीक का बचपन गरीबी में बीता था। वह तो इस गरीबी से मुक्ति पाना चाहता था। ऐसा लगता है जैसे उसके सारे आपराधिक इतिहास को, अज्ञात संख्या में बेकसूर लोगों के प्राण लेने के उसके वृत्तांत को किसी तरह जायज ठहराने का प्रयास किया जा रहा हो।
इस तथ्य को रेखांकित किया जाना महत्वपूर्ण है कि अतीक और अशरफ, दोनों दुर्दांत अपराधी थे, जिन पर हत्या, अपहरण, वसूली और जमीन छीनने के 160 से अधिक मामले दर्ज थे। यह संख्या उन प्रकरणों की है, जिनके पीड़ितों ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराने का साहस दिखाया और जिन मामलों में पुलिस ने मामला दर्ज करने की हिम्मत दर्शाई। वरना आतंक की स्थिति तो यह थी कि खुद 10 न्यायाधीश अतीक को जमानत देने की याचिका सुनने से स्वयं को पृथक कर चुके थे।
कैसे मरा, इससे फर्क नहीं पड़ता
अंत इस आतंक का हुआ है। उन लोगों से पूछिए, जो पिछले 43 वर्ष से माफिया डॉन अतीक का आतंक झेल रहे थे, वे लोग जिनका सब कुछ उजड़ चुका है। अतीक के आतंक के विरुद्ध जनाक्रोश कितना गहरा था, इसका अनुमान प्रदेश के आम लोगों की प्रतिक्रियाओं से लगाया जा सकता है, जो हत्या का समर्थन नहीं करते, लेकिन इस बात से प्रसन्न हैं कि प्रदेश अब आतंक मुक्त हो गया है।
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अतीक अहमद की हत्या के बाद एक न्यूज चैनल द्वारा कराए गए एक सर्वेक्षण में लोगों से पूछा गया कि पुलिस अभिरक्षा में अतीक और अशरफ की हत्या को वे कैसे देखते हैं? इसमें सबसे ज्यादा 51 प्रतिशत लोगों का कहना था कि वह माफिया था, ऐसे में इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह कैसे मरा। वास्तव में इस संतोष की सांस का एक सुर यह भी है कि अब तक की सरकारें अतीक अहमद और उसके जैसे अन्य माफिया गिरोहों की हर हरकत से न केवल आंखें मूंदे रहती थीं, बल्कि उसे संरक्षण और प्रोत्साहन भी देती थीं। जनता की यह हर्ष ध्वनि उस चली आ रही परिपाटी के पटाक्षेप पर भी मानी जानी चाहिए।
प्रदेश में सूचीबद्ध माफिया
अतीक का बेटा असद जब मुठभेड़ में मारा गया तो विपक्ष आरोप लगा रहा था कि सरकार मोस्ट वांटेड की सूची नहीं जारी कर रही। लिहाजा, जाति-धर्म देखकर नहीं, बल्कि अपराध देखकर मोस्ट वांटेड की सूची जारी कर दी गई
मेरठ जोन : उधम सिंह, योगेश भदोड़ा, बदन सिंह उर्फ बद्दो, हाजी याकूब कुरैशी, शारिक, सुनील राठी, धर्मेंद्र, यशपाल तोमर, अमर पाल उर्फ कालू, अनुज बारखा, विक्रांत उर्फ विक्की, हाजी इकबाल उर्फ बाला, विनोद शर्मा, सुनील उर्फ मूंछ, संजीव माहेश्वरी उर्फ जीवा व विनय त्यागी उर्फ टिंकू, आगरा जोन के अनिल चौधरी व ऋषि कुमार शर्मा, बरेली जोन का एजाज, कानपुर जोन का अनुपम दुबे।
लखनऊ जोन : खान मुबारक, अजय प्रताप सिंह उर्फ अजय सिपाही, संजय सिंह सिंघाला, अतुल वर्मा, मुसहीम उर्फ कासिम प्रयागराज जोन के डब्बू सिंह उर्फ प्रदीप सिंह, सुधाकर सिंह, गुड्डू सिंह, अनूप सिंह।
वाराणसी जोन : मुख्तार अंसारी, त्रिभुवन सिंह उर्फ पवन सिंह, विजय मिश्रा, ध्रुव सिंह उर्फ कुंटू सिंह, अखंड प्रताप सिंह, रमेश सिंह उर्फ काका।
गोरखपुर जोन: संजीव द्विवेदी उर्फ रामू द्विवेदी, राकेश यादव, सुधीर कुमार सिंह, विनोद कुमार उपाध्याय, राजन तिवारी, रिजवान जहीर, देवेन्द्र सिंह।
गौतमबुद्ध नगर कमिश्नरेट : सुंदर भाटी, सिंहराज भाटी, अमित कसाना, अनिल भाटी, रणदीप भाटी, मनोज उर्फ आसे, अनिल दुजाना।
कानपुर कमिश्नरेट : सऊद अख्तर, कमिश्नरेट लखनऊ के लल्लू यादव, बच्चू यादव व जुगनू वालिया उर्फ हरिवंदर सिंह।
प्रयागराज कमिश्नरेट : बच्चा पासी उर्फ निहाल पासी, दिलीप मिश्रा, जावेद उर्फ पप्पू, राजेश यादव, गणेश यादव, कमरुल हसन, जाविर हुसैन व मुजफ्फर
वाराणसी कमिश्नरेट : अभिषेक सिंह हनी उर्फ जहर, बृजेश कुमार सिंह व सुभाष सिंह ठाकुर
पिछली सरकारों में अतीक के खिलाफ छिटपुट कानूनी कार्रवाई जरूर हुई थी, लेकिन मुकदमे चलने या न चलने और खारिज होने में इतने वर्ष लग गए कि किसी पीड़ित के मन में न्याय की कोई उम्मीद नहीं रह गई थी। 18 वर्ष बीत जाने के बाद भी बसपा विधायक राजू पाल की हत्या का मुकदमा आज तक फैसले की बाट जोहता रह गया। इन चार दशकों में अतीत को पहली बार गत 3 अप्रैल को अपहरण के मुकदमे में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। बसपा शासनकाल में उसके खिलाफ कार्रवाई हुई थी, पर उसे कुछ खास फर्क नहीं पड़ा। जेल से छूटने के बाद कुछ महीनों में वह फिर से अपना साम्राज्य खड़ा कर लेता था।
रास्ते में जो आया, नहीं बचा
अपराध और दहशत के बल पर लोगों की संपत्ति हड़प लेना अतीक का खास शगल था। जो भी उसके रास्ते में आया, उसकी हत्या करवा दी या उसे गायब करा दिया। अतीक और अशरफ के मारे जाने के बाद सूरजकली को न्याय की आस जगी है। सूरजकली की साढ़े बारह बीघा जमीन अतीक ने सोसाइटी बना कर जबरन हड़प ली थी। उनके जीवनयापन का यही एक सहारा था। करीब 34 वर्ष पहले उनके पति को भी गायब करवा दिया गया। आज तक उनका पता नहीं चल सका है। सूरजकली पर भी कई बार हमला कराया गया। वह अतीक के डर से घर में ही बंद रहती थीं। सूरजकली बताती हैं, ‘‘अतीक ने मुझसे कहा था कि जिस तरह तुम्हारे पति को गायब करवा दिया, उसी तरह तुम्हारा भी पता नहीं चलेगा। मेरे भाई को करंट लगवा कर मारा। 2016 में मुझ पर गोली चलवाई। मेरी पीठ में गोली लगी थी। उसके मर जाने से अब मुझे उम्मीद लग रही है कि मेरी जमीन वापस मिल जाएगी।’’
सपा के शासनकाल में अतीक ने नोएडा में प्रदेश के एक वरिष्ठ आईएएस से दफ्तर में दुर्व्यवहार किया। आईएएस अधिकारियों में इसे लेकर आक्रोश था, पर अतीक का कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाया।
1996 में वाहन ओवरटेक करने को लेकर किन्हीं अशोक साहू की अशरफ से कहासुनी हो गई थी। जब अशोक साहू को पता लगा कि अशरफ, अतीक का भाई है तो साहू ने अतीक से बात करके विवाद खत्म करने का प्रयास किया। तब अतीक ने कहा था, ‘‘तुमने बहुत बड़ी गलती कर दी है।’’ उसके कुछ दिन बाद अशोक की गोली मारकर हत्या कर दी गई।
किसी को नहीं बख्शा
इसी तरह, अतीक के साम्राज्य को चुनौती देने पर गैंगस्टर शौक-ए-इलाही उर्फ चांद बाबा की हत्या कर दी गई। चांद बाबा के दोस्त जग्गा ने बदला लेने की कोशिश की। उसने अतीक पर बम से हमला किया, पर वह बच गया। उसके बाद जग्गा मुंबई भाग गया। अतीक ने जग्गा को ढुंढवाया। कहा जाता है कि मुंबई में उस समय के एक बड़े माफिया ने मध्यस्थता की थी। अतीक ने वहां उससे वादा किया कि जग्गा को प्रयागराज में कोई नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा। लेकिन जग्गा प्रयागराज आया तो उसकी निर्ममता से हत्या कर दी गई। अशफाक उर्फ कुन्नू अतीक के इशारे पर काम करता था। अतीक 1994 में किसी बात पर उससे नाराज हो गया और उसकी भी हत्या करवा दी।
अतीक का दूर का रिश्तेदार है जीशान। अतीक और उसकी पत्नी ने उसे भी नहीं छोड़ा। जीशान का कहना है कि अतीक से जो भी जुड़ता था, उसे शुरू में लगता था कि उसे लाभ हो रहा है। मगर बाद में उसे अहसास होता था कि लाभ तो अतीक उससे उठा रहा है। एक बार जो भी उनसे जुड़ता, अतीक और अशरफ समय-समय पर उसे धमकाते रहते थे कि तुमने हमारे नाम पर बहुत लाभ कमाया है। पैसा पहुंचा जाओ। 2001 की बात है। अतीक जेल में था। उसने जेल से ही जीशान को संदेश भेजा, ‘‘अपनी जमीन मेरी बीवी शाइस्ता परवीन के नाम लिख दो और 5 करोड़ रुपये का इंतजाम करो। मैं जेल में हूं। पैसे की जरूरत है।’’ जीशान को धमकी दी गई। जानलेवा हमला भी हुआ। जीशान की एफआईआर पर अतीक का बेटा अली इस समय जेल में है। जीशान का कहना है, ‘‘माफिया का सफाया हो गया है। किसी के मरने की खुशी तो नहीं मना सकते, लेकिन कोई गम भी नहीं है।’’
राजू पाल की पत्नी पूजा पाल ने कहा था, ‘‘यह एक औरत का शाप है। अतीक ने जो किया है, भगवान उसे दंड जरूर देगा।’’ वृद्ध मां का अतीक के लिए बस एक ही शाप था, ‘‘इसको कीड़े पड़ेंगे।’’
अधिकारियों से दुर्व्यवहार
2004 में मोहम्मद कारी की गोली मारकर हत्या कर दी गई। हत्या को दुर्घटना के रूप में दिखाने के लिए कारी के शव को ट्रक से कुचलने के बाद उसे प्रयागराज जनपद के सोरांव थाना क्षेत्र में फेंक दिया गया। पुलिस ने भी हत्या को सड़क हादसा बताया था। दरअसल, कारी एक मदरसा चलाते थे, जिसमें अतीक साझेदारी चाहता था। कारी ने इनकार किया तो अतीक ने पहले उन्हें बुलाकर प्रताड़ना दी। फिर भी कारी नहीं माने तो उनकी हत्या करवा दी।
2003 से 2007 के बीच सपा के शासनकाल में अतीक अहमद ने नोएडा में प्रदेश के एक सबसे वरिष्ठ आईएएस अधिकारी के साथ उनके दफ्तर में घुसकर दुर्व्यवहार किया। आईएएस अधिकारियों में इस घटना को लेकर जबरदस्त आक्रोश था, लेकिन अतीक का कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाया। रोचक यह है कि वही आईएएस अधिकारी अखिलेश यादव के कार्यकाल में प्रमुख सचिव (गृह) भी रहे। उसी दौर में प्रयागराज जनपद में अतीक ने विद्युत विभाग के मुख्य अभियंता के कार्यालय में घुसकर उनसे भी दुर्व्यवहार किया था।
राजू पाल की हत्या
2004 के लोकसभा चुनाव में अतीक फूलपुर सीट से सांसद चुना गया। इसके बाद उसने प्रयागराज की शहर पश्चिमी विधानसभा सीट से इस्तीफा दे दिया। उस सीट से वह पांच बार विधायक रह चुका था। नवम्बर 2004 में उपचुनाव हुआ तो अतीक ने अपने भाई अशरफ को सपा के टिकट पर चुनाव लड़वाया। लेकिन बसपा के राजू पाल ने उसे हरा दिया था। चुनाव हारने पर अतीक और अशरफ ने राजू पाल को मारने का फैसला कर लिया। दिसंबर 2004 में राजू पाल पर दो हमले हुए। कहानी गढ़ने में माहिर अतीक का कहना था, ‘‘राजू पाल की रंजीत पाल से दुश्मनी है। रंजीत पाल ने उसके पेट में गोली मारी थी। इलाज के बाद राजू पाल बच गया था। विधायक बनने के बाद राजू पाल उस इलाके में बार-बार धौंस दिखाने जाता है। वे लोग उसे देख कर गोली चलाते हैं। उसके बाद वह मेरे ऊपर आरोप लगाता है।’’ उधर, राजू पाल का कहना था, ‘‘चुनाव हारने के बाद अतीक मेरी हत्या की कसम खाकर बैठा हुआ है।’’
25 जनवरी, 2005 की शाम करीब तीन बजे राजू पाल पर तीसरी बार हमला हुआ। अस्पताल ले जाते हुए रास्ते में ही राजू की मृत्यु हो गई। उसी रात करीब 11 बजे प्रयागराज के जिलाधिकारी और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक की प्रेस कॉन्फ्रेंस में राजू की मां रानी पाल बेटे को अंतिम बार देखने के लिए पुलिस लाइन में दर-दर भटकती रहीं, लेकिन देख नहीं पाई। पुलिस ने उन्हें टरकाकर घर भेज दिया कि कल सुबह आना, अभी रात बहुत हो गई है। रात में ही पोस्टमार्टम कराया गया और अगले दिन 26 जनवरी को राजू पाल के परिजनों को सूचना दिए बिना उसके शव का अंतिम संस्कार करा दिया गया। प्रशासन का तर्क था कि राजू पाल के घर में उनकी पत्नी पूजा पाल और मां ही थीं। महिलाएं घाट पर नहीं आ सकती थीं। राजू की शादी 17 जनवरी, 2005 को हुई थी। महज 9 दिन में ही पूजा की मांग का सिंदूर उजड़ गया। पूजा पाल ने कहा था, ‘‘यह एक औरत का शाप है। अतीक ने जो किया है, भगवान उसे दंड जरूर देगा।’’ बेटे की हत्या के बाद अकेली वृद्ध मां का भी बस एक ही शाप था, ‘‘इसको कीड़े पड़ेंगे।’’
पहली बार हुई सजा
राजू पाल और उमेश पाल पुराने दोस्त थे। दोनों बसपा के वरिष्ठ नेता अयोध्या पाल के यहां टिकट मांगने साथ गए थे। अयोध्या पाल ने ही मायावती से बातचीत करके राजू को टिकट दिलवाया था। राजू पाल हत्याकांड में उमेश गवाह थे। अतीक चाहता था कि उमेश पाल मुकदमे में पैरवी न करे। 2006 में अतीक ने उमेश का अपहरण कराया और दबाव डाला कि वह न्यायालय में पक्षद्रोही हो जाए। उमेश को जान के डर से वैसा करना पड़ा। लेकिन जब 2007 में प्रदेश में फिर बसपा की सरकार बनी, तो उमेश ने अतीक के खिलाफ अपहरण की एफआईआर दर्ज कराई। अतीक चाहता था कि उमेश अपने मुकदमे में भी पैरवी न करे। लेकिन उमेश नहीं माने। वह अपने अपहरण के मुकदमे में अपनी गवाही और जिरह करा चुके थे। लेकिन अतीक ने उनकी भी हत्या करा दी। बाद में इसी मुकदमे में अतीक को उम्रकैद की सजा हुई। यह पहला मुकदमा था, जिसमें उसे सजा हुई। अतीक पर 101 और उसके भाई अशरफ पर 50 से अधिक मुकदमे दर्ज थे।
इस साल 24 फरवरी को जब उमेश पाल को गोली मारी गई, वह भागते हुए मां की गोद तक जा पहुंचे थे। उमेश के मुंह से बस इतना निकला था, ‘‘मार डाला।’’ बेबस मां के सामने उमेश का रक्त रंजित शव पड़ा हुआ था। यही कारण है कि अतीक अहमद, अशरफ और उसके बेटे असद के मारे जाने पर प्रयागराज शहर में शायद ही किसी को अफसोस हो। उमेश पाल की पत्नी ने कहा, ‘‘योगी राज में न्याय हुआ है। एक बेटी के सुहाग के उजड़ने पर जो न्याय होना चाहिए था, वही न्याय हुआ है।’’ उमेश की 70 वर्षीया मां शांति देवी कहती हैं, ‘‘अतीक ने कई बार कहलवाया था कि मुकदमे में पैरवी न करे, नहीं तो उमेश को मरवा दूंगा। मेरा बेटा शेर की तरह लड़ता रहा। जब अतीक को लगा कि उसे सजा हो जाएगी, तो उसने मेरे बेटे को मरवा दिया।’’ मुठभेड़ में असद के मारे जाने पर उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कहा, ‘‘अपराधियों के साथ कोई रियायत नहीं बरती जाएगी। जो अपराधी पुलिस पर हमला करेगा तो आत्मरक्षार्थ पुलिस भी गोली चलाएगी।’’
योगी सरकार में कार्रवाई
भले ही अंग्रेजी मीडिया अतीक की राजनीतिक हैसियत को ज्यादा महत्व देकर कोई राजनीतिक रंग देने की कोशिश करता रहे, सच यह है कि राजू पाल की हत्या के बाद अतीक ने दो बार विधानसभा और दो बार लोकसभा का चुनाव लड़ा, लेकिन कभी जीत नहीं पाया। अतीक और अशरफ के विरुद्ध बीते 6 वर्ष में योगी सरकार ने लगातार कार्रवाई की। दोनों के विरुद्ध जिन अपराधों में कार्रवाई की जा रही थी, वे पिछली सरकारों के कार्यकाल में किए गए थे। अतीक ने योगी सरकार के कार्यकाल में पहला अपराध 24 फरवरी को किया। इसमें उमेश पाल और उनके दो सरकारी सुरक्षाकर्मियों की हत्या कर दी गई थी। इस तिहरे हत्याकांड की गूंज विधानसभा तक पहुंची। अखिलेश यादव ने कानून-व्यवस्था के सवाल पर सरकार को घेरने का प्रयास किया। तब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था, ‘‘इसी हाउस में कह रहा हूं, माफिया को मिट्टी में मिला दूंगा।’’ इस घटना से दो दिन पहले अतीक का बेटा असद पुलिस मुठभेड़ में मारा गया था। इससे आम जनमानस के इस विश्वास की पुन: पुष्टि हुई कि आदित्यनाथ सरकार ही प्रदेश को माफिया मुक्त रख सकती है। सरकार ने प्रदेश के वांछित माफिया की सूची जारी कर इसे फिर से पुष्ट कर दिया है।
बेटे की मौत ने उड़ाए होश
उमेश पाल और उनके दो सरकारी गनर की हत्या में अतीक के बेटा असद को गोली चलाते हुए सीसीटीवी फुटेज में साफ देखा गया था। इसे अपराध की दुनिया में असद का पहला कदम कहा गया था। लेकिन अब उसके आपराधिक इतिहास की भी परतें खुलने लगी थीं। तिहरे हत्याकांड में उसके खिलाफ पहला मुकदमा प्रयागराज जनपद के धूमनगंज थाने में दर्ज किया गया था। फरार होने के बाद उस पर 5 लाख रुपये का इनाम घोषित किया गया था। पिछले 43 साल से अपराध जगत में दबदबा बनाए रखने वाले अतीक अहमद के खिलाफ अभी तक जितनी भी कार्रवाई की गई थी, उसमें यह सबसे बड़ी कार्रवाई थी।
13 अप्रैल को उसके बेटे असद और शूटर गुलाम को झांसी में एसटीएफ ने मार गिराया था। उसी दिन न्यायालय ने अतीक और अशरफ का पुलिस रिमांड मंजूर किया था। दोनों भाई न्यायालय परिसर से बाहर निकले, तो किसी ने सूचना दी कि असद को पुलिस मुठभेड़ में मार दिया गया। यह सुनकर दोनों भाइयों के चेहरे का रंग उतर गया। उमेश पाल हत्याकांड के दो अन्य अभियुक्त अरबाज और विजय उर्फ उस्मान चौधरी पहले ही मुठभेड़ में मारे जा चुके थे। विशेष पुलिस महानिदेशक (कानून एवं व्यवस्था) प्रशांत कुमार कहते हैं, ‘‘ऐसे भी इनपुट मिले हैं कि असद और गुलाम हमला करके अतीक अहमद को फरार कराने की साजिश रच रहे थे।’’
बहरहाल, 15 अप्रैल को असद को कसारी-मसारी स्थित कब्रिस्तान में दफनाया दिया गया। उसकी फरार मां शाइस्ता बेटे को अंतिम बार देखने भी नहीं आई। उसी रात जब अतीक और अशरफ को प्रयागराज के मंडलीय चिकित्सालय में मेडिकल के लिए ले जाया जा रहा था, तब इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पत्रकारों ने अतीक से पूछा, ‘‘आज असद के जनाजे में आप नहीं जा गए?’’ अतीक ने कहा, ‘‘नहीं ले गए तो नहीं गए।’’ उधर, अशरफ ने कहा, ‘‘मेन बात ये है कि गुड्डू मुस्लिम…।’’ ठीक उसी समय तीन युवकों लवलेश तिवारी, अरुण मौर्य और मोहित उर्फ सनी ने दोनों पर गोलियां बरसानी शुरू कर दीं। तीनों हत्यारोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेजा जा चुका है।
अतीक ने अपनी हनक कायम करने के लिए किसी मां की गोद सूनी कर दी, तो किसी की मांग का सिंदूर उजाड़ दिया। जिस तरह राजू पाल की मां रानी पाल अंतिम बार अपने बेटे को नहीं देख पाई थीं, उसी तरह अतीक भी अपने बेटे को अंतिम बार नहीं देख पाया।
दो बेटे जेल में, दो सुधार गृह में
अतीक का बड़ा बेटा उमर लखनऊ जेल में बंद है तो दूसरा बेटा अली प्रयागराज जनपद की नैनी सेंट्रल जेल में है। तीसरा असद पुलिस मुठभेड़ में मारा जा चुका है, जबकि दो नाबालिग बेटे बाल सुधार गृह में हैं। उमेश पाल हत्याकांड के आरोपियों को अतीक के बहनोई अखलाक ने मेरठ में शरण दी थी। वह भी जेल में है। अतीक की बहन आयशा नूरी को भी मुलजिम बनाया गया है। पूर्व विधायक अशरफ की बीवी जैनब के खिलाफ भी एफआईआर दर्ज की गई है। आयशा नूरी और जैनब भी फरार हैं। उमेश पाल हत्याकांड के चार अभियुक्त मारे जा चुके हैं। तो गुड्डू मुस्लिम, साबिर और अरमान की गिरफ्तारी पर 5-5 लाख रुपये का इनाम घोषित हैं। एसटीएफ के अपर पुलिस महानिदेशक अमिताभ यश ने कहा है कि ‘अभी काम लगातार जारी रहेगा।’
सपा शासन में फला-फूला अतीक अहमद ने अपराध जगत में कदम रखने के बाद से यह जान लिया था कि अगर लम्बे समय तक अपने साम्राज्य को बनाए रखना है तो उसे राजनीति में अपनी जड़ें मजबूत करनी होंगी।
अतीक अपराधी था, लेकिन उसे बड़ा माफिया राजनीति ने बनाया था। लोगों को बहुत से मामलों में पुलिस की जरूरत नहीं पड़ती थी। अतीक का इशारा काफी होता था। इस तरह लोग उससे जुड़ते चले गए
1989 में वह पहली बार निर्दलीय विधायक निर्वाचित हुआ था। धीरे-धीरे वह मुलायम सिंह यादव के करीब पहुंच गया। 2 जून, 1995 को हुए गेस्ट हाउस कांड के बारे में बताया जाता है कि अतीक अहमद भी स्टेट गेस्ट हाउस में मौजूद था। इसके बाद से वह मुलायम सिंह का चहेता, लेकिन मायावती की आंखों की किरकिरी बन गया था। उस समय कांशीराम अस्पताल में भर्ती थे। 1 जून, 1995 की बैठक में जब मायावती ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया, तब मुलायम सिंह ने राज्यपाल से मिलकर कहा था कि वे विधायकों के समर्थन की सूची उन्हें सौंप देंगे। राज्यपाल महोदय को दूर-दूर तक अंदाजा नहीं था कि मुलायम सिंह यादव के मस्तिष्क में क्या चल रहा है। 2 जून को बसपा विधायकों को जबरन उठवा लिया गया और समर्थन सूची पर हस्ताक्षर कराए गए।
इस तांडव को देख कर मुलायम सिंह यादव की सरकार बर्खास्त कर दी गई। उसी दिन मायावती को सपा के दबंग विधायकों ने स्टेट गेस्ट हाउस में घेर लिया था। स्टेट गेस्ट हाउस के कमरा नंबर एक में बंद मायावती काफी घबरा गई थीं। किसी तरह से वे वहां से सुरक्षित निकल पाई थीं। शाम होने के बाद राजनीतिक वातावरण तेजी से बदला। भाजपा ने बसपा को समर्थन दिया और उसी रात मायावती ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। अतीक के खिलाफ शासन के आदेश पर बड़ी कार्रवाई की गई। उसके बाद से कभी सपा तो कभी बसपा का शासन रहा। लेकिन अतीक इस माहौल को भली-भांति समझ चुका था। बसपा के शासनकाल में उसके खिलाफ मुकदमे लिखे जाते थे। उसका कार्यालय गिराया जाता था वहीं सपा के शासनकाल में वह जमानत पर बाहर आकर सब कुछ फिर से ठीक करा लेता था।
राजनीति ने बनाया बड़ा माफिया
2016 में एक गार्ड को चप्पल से पीटने का वीडियो वायरल होने पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने घटना का स्वत: संज्ञान लिया और अतीक को जेल हुई। योगी आदित्यनाथ 2017 में पहली बार मुख्यमंत्री बने। 2022 में वे दोबारा मुख्यमंत्री बने। इस बार अतीक अहमद की कमर टूट गई थी। अभी तक उसे सिर्फ बसपा से दिक्कत हुआ करती थी। उसे लगता था कि परेशानी 5 साल के लिए ही है, क्योंकि प्रदेश में एक ही पार्टी लगातार सरकार में नहीं रही। लेकिन उसका गणित फेल हो गया। 2002 में जब भाजपा के समर्थन से मायावती मुख्यमंत्री बनी थीं, तब विधानसभा में अतीक ने कहा था, ‘‘बहन जी, भाजपा के जो लोग आप की आंख में आंसू ले आए थे। उन्हीं के साथ मिलकर आपने फिर से सरकार बना ली।’’ इस पर मायावती ने तुरंत कहा था, ‘‘यह तो वक्त बताएगा कि किसकी आंख में आंसू आएंगे।’’ उसके बाद अतीक अहमद के खिलाफ रासुका और गैंगस्टर के अंतर्गत कार्रवाई की गई थी। एक ही दिन में उसके खिलाफ 111 एफआईआर दर्ज की गई थीं। हालांकि इन सभी मामलों को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया था।
अतीक अपराधी था, लेकिन उसे बड़ा माफिया राजनीति ने बनाया। लोगों को बहुत से मामलों में पुलिस की जरूरत नहीं पड़ती थी। अतीक का इशारा ही काफी होता था। इस तरह लोग उससे जुड़ते चले गए। लेकिन एक समय आया, जब खुद मुसलमानों के लिए वह नासूर बन गया था। जब तक उन लोगों को यह बात समझ में आई, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। अतीक काफी ताकतवर हो चुका था। अतीक का भाई अशरफ भी आपराधिक प्रवृत्ति का था। अतीक ने उसे भी विधायक बनवा दिया था।
माफिया की गतिविधियों पर एसटीएफ की नजर
सूचीबद्ध माफिया की गतिविधियों पर एसटीएफ और जिला पुलिस कड़ी नजर रखती है। शासन स्तर से पहले अनुमोदित 25 सूचीबद्ध माफिया में माफिया मुख्तार अंसारी, बृजेश सिंह, त्रिभुवन सिंह उर्फ पवन सिंह, संजीव महेश्वरी उर्फ जीवा, ओमप्रकाश श्रीवास्तव उर्फ बबलू, सुशील उर्फ मूंछ, सीरियल किलर सलीम, रुस्तम और सोहराब समेत अन्य कुख्यात अपराधियों के नाम शामिल थे।
ढह गया साम्राज्य
अतीक के पांच बेटे थे। अतीक चाहता था कि उसकी विरासत को उसके बेटे संभालें और दहशत कायम रखें। उसे पहले पहलवानी का शौक था, इसलिए राजनीति में आने से पहले उसे लोग पहलवान कहते थे। उसके बाद उसे अतीक चकिया कहा जाने लगा। फिर वह विधायक जी कहलाने लगा। 2004 में लोग उसे सांसद जी कहते थे। लेकिन हाल के समय में उसी शहर में जहां ऊंची आवाज में बात करने की किसी की हिम्मत नहीं थी, लोग उसे अतीक कहने लगे थे।
13 अप्रैल को जब वह न्यायालय से निकल रहा था, तब उसके ऊपर बोतल फेंकी गई। लोगों ने उसे अपशब्द भी कहे। यह उसके माफिया राज के समाप्त होने का साफ संकेत था। साबरमती जेल से प्रयागराज लाते समय रास्ते में 12 अप्रैल को उसने खुद स्वीकार किया कि ‘‘मेरा माफिया राज तो कब का खत्म हो चुका है। अब केवल हम लोगों को रगड़ा जा रहा है।’’ अतीक के विरुद्ध कुल 101 अभियोग पंजीकृत किए गए थे। जनपद न्यायालय ने उसे एक मुकदमे में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। अतीक के 153 सहयोगियों एवं गिरोह के सदस्यों के खिलाफ भी मामले दर्ज किए गए हैं। बीते 6 वर्ष में ही 52 मामले दर्ज किए गए और उसके गिरोह के 22 बदमाशों को गिरफ्तार किया गया। 11 अभियुक्तों की जमानत और 68 शस्त्र लाइसेंस निरस्त कराए गए। दो नए गिरोह पंजीकृत किए गए। 22 अपराधियों की हिस्ट्रीशीट खोली गई। 14 के खिलाफ गुंडा एक्ट के तहत कार्रवाई की गई। दो अभियुक्तों को जिला बदर किया गया। गैंगस्टर एक्ट के तीन अभियोग दर्ज किए गए। इसमें 21 अभियुक्तों के खिलाफ कार्रवाई की गई। इसके अलावा, गैंगस्टर एक्ट के तहत 4 अरब 16 करोड़ 92 लाख 46 हजार 350 रुपये की संपत्ति भी जब्त की गई। अन्य विधि एवं नियम के अंतर्गत 7 अरब 52 करोड़ 27 लाख 58 हजार रुपए की संपत्ति ध्वस्त एवं जब्त की गई। ठेका एवं अवैध व्यवसाय आदि के बंद कराने से अतीक को 12 अरब प्रति वर्ष की हानि हुई।
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