रूस अब तेजी से चीन पर निर्भर होता जा रहा है। पश्चिमी प्रतिबंधों के कारए रुस की हथियार निर्माण क्षमता भी घटती जानी है। जबकि चीन तेजी से अपने पैर पसार रहा है और किसी अनपेक्षित स्थिति से निपटने के लिए उसने यूक्रेन के साथ भी समझौता कर लिया है।
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के मार्च 2013 में सत्ता संभालने के बाद से उनकी अपने रूसी समकक्ष राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से 40 बार मुलाकात हो चुकी है। हालांकि शी जिनपिंग की वर्तमान 41वीं यात्रा यूक्रेन युद्ध के बाद पहली है। इस बैठक के परिणामों और क्षेत्र के लिए उसके निहितार्थों पर ध्यान देने से पहले, इस व्यक्तिगत मित्रता और चीन-रूस मित्रता पर एक नजर वर्तमान बैठक को समझने के लिए आवश्यक है।
प्रत्येक देश के साथ साझेदारी के लिए चीन की अलग-अलग श्रेणियां हैं। सर्वोच्च श्रेणी ‘व्यापक रणनीतिक साझेदारी समन्वय संबंध’ है, जिसका उपयोग केवल रूस के साथ अपने संबंधों का वर्णन करने के लिए किया जाता है। पिछले दस वर्षों में, राष्ट्रपति शी ने व्यक्तिगत रूप से चीन-रूस संबंधों पर ध्यान दिया है और दोनों वैचारिक रूप से जुड़ चुके हैं। दोनों दुनिया में अमेरिकी आधिपत्य को तोड़ने की कोशिश करते हैं और दोनों को अमेरिका और पश्चिम के प्रति गहरा अविश्वास है। फरवरी 2022 में शी-पुतिन शिखर सम्मेलन के दौरान, दोनों पक्षों ने घोषणा की कि उनकी मित्रता की ‘कोई सीमा नहीं’ है।
इस पृष्ठभूमि को देखते हुए, शी की रूस यात्रा अमेरिका और पश्चिम के लिए यह संदेश है कि तमाम बयानबाजी के बावजूद चीन रूस को नहीं छोड़ेगा और वास्तव में मित्रता को अगली सीढ़ी तक ले जाएगा। चीन के सरकारी स्वामित्व वाले एक पोर्टल में प्रकाशित एक लेख में यात्रा के औचित्यों की यह सूची गिनाई गई है कि एक तो मित्र (रूस) को यह विश्वास दिलाना था कि पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद वह अकेला नहीं है; दूसरे रूस की निंदा करने के लिए अमेरिकी दबाव के बावजूद चीन की स्वतंत्र विदेश नीति को पेश करना; और तीसरे यूक्रेन में स्थिति को पश्चिम के दोष के रूप में चित्रित करना।
बैठक के बाद जारी संयुक्त विज्ञप्ति और एक चीन प्रेक्षक को दिए गए अलग-अलग बयान एक बात बहुत स्पष्ट रूप से स्थापित करते हैं: भले ही शी जिनपिंग ने इस संघर्ष में रूस को खुले तौर पर भौतिक समर्थन की पेशकश नहीं की, लेकिन उन्होंने निश्चित रूप से गठबंधनों के विस्तार के खिलाफ रूस के रुख का समर्थन किया है। उधर रूस ने यूक्रेन मुद्दे के समाधान के लिए चीन की योजना की सराहना की है और यह कहा है कि जब भी दूसरा पक्ष ऐसा करने का फैसला करेगा, तो रूस इस मुद्दे को सुलझाने के लिए मध्यस्थ के रूप में चीन का स्वागत करेगा।
चीन सैन्य आपूर्ति और प्रौद्योगिकी के लिए रूस पर निर्भर है, लेकिन अब वह और अधिक रूसी वैज्ञानिकों को लुभाने की कोशिश करेगा। रूस तेल और प्राकृतिक गैस के लिए भी चीन का सबसे भरोसेमंद स्रोत है। चीन की अधिकांश खरीदारी का भुगतान अमेरिकी डॉलर और उपभोक्ता वस्तुओं में किया जाता है और रूस के सुदूर पूर्व में बड़ी संख्या में चीनी श्रमिक काम करते हैं। लेकिन रूस की सबसे बड़ी भूमिका, जो हालांकि अमूर्त है, वह चीन के साथ वैचारिक तालमेल वाला सबसे बड़ा देश होना है।
हालाँकि रूसी यह नहीं छिपा सके कि उन्हें बेवजह घसीटकर चीन के आर्थिक और राजनीतिक घेरे में लाया जा रहा है। राष्ट्रपति शी का स्वागत, शी की पत्नी पेंग लियुआन द्वारा एक टैंक पर गाए गए गीत से किया गया था। इसमें निहित सैनिक प्रतीक किसी से छिपा नहीं था। इसके अलावा, पुतिन ने बीआरआई, वैश्विक विकास पहल (जीडीआई) आदि जैसी पहलों सहित एक वैकल्पिक विश्व व्यवस्था के शी जिनपिंग के दृष्टिकोण का समर्थन किया। प्रतिबंधों से लड़ने के लिए एक ठोस उपाय भी था: विशेष रूप से मंगोलिया में साइबेरिया -2 गैस पाइपलाइन (चीन-रूस के बीच विवादित क्षेत्र), जिससे चीन को रूसी आपूर्ति में तो वृद्धि होगी, लेकिन यह रूस को चीनी क्रेता एकाधिकार में और गहरे धकेल देगी।
रूस को चीन का जूनियर पार्टनर बनने की प्रक्रिया अच्छी तरह चल रही है। रूस की चीन पर इस बढ़ती हुई स्पष्ट निर्भरता का भारत पर सीधा प्रभाव पड़ेगा। वह यह कि भारत को अब तक रूस से जो राजनीतिक, कूटनीतिक और सैन्य समर्थन मिल रहा था, वह या तो कमजोर हो जाएगा या समाप्त होता जाएगा। भारत के लिए सैन्य हार्डवेयर और प्रौद्योगिकी के आपूर्तिकर्ता के रूप में रूस की उपयोगिता कम हो जाएगी। रूस पहले ही माइक्रोचिप्स और अन्य महत्वपूर्ण घटकों आदि की कमी का सामना कर रहा है, जो वह अपनी सभी हथियार प्रणालियों के लिए आयात करता था। यूक्रेन के साथ संघर्ष के बावजूद रूस अब तक चीन की आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम था।
हालांकि चीन ने भविष्य की घटनाओं के अपनी योजना या आशा के अनुरूप नहीं होने पर कोई बड़ी हानि या विफलता से बचने के लिए यूक्रेन के साथ सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर करके संबंध बनाए। ऐसा करने वाली चीन पहली विदेशी शक्ति है। चीन सैन्य आपूर्ति और प्रौद्योगिकी के लिए रूस पर निर्भर है, लेकिन अब वह और अधिक रूसी वैज्ञानिकों को लुभाने की कोशिश करेगा। रूस तेल और प्राकृतिक गैस के लिए भी चीन का सबसे भरोसेमंद स्रोत है। चीन की अधिकांश खरीदारी का भुगतान अमेरिकी डॉलर और उपभोक्ता वस्तुओं में किया जाता है और रूस के सुदूर पूर्व में बड़ी संख्या में चीनी श्रमिक काम करते हैं। लेकिन रूस की सबसे बड़ी भूमिका, जो हालांकि अमूर्त है, वह चीन के साथ वैचारिक तालमेल वाला सबसे बड़ा देश होना है।
भारत पर असर
नया पनपता यह संबंध भारत के लिए चिंता का विषय है। चीन भारत के प्रति अपनी नीति तब तक नहीं बदलेगा, जब तक कि उसे बड़ी रियायतें नहीं मिलतीं। रूस पहले से ही चीन का जूनियर पार्टनर बन चुका है। यूक्रेन युद्ध के बाद रूस संभवत: थका हुआ, काफी कमजोर और लुटा-पिटा रह जाएगा। जैसे ही प्रतिबंध प्रभावी होंगे और रूस महत्वपूर्ण पुर्जे प्राप्त करने में असमर्थ हो जाएगा, तो रूस की सैन्य हार्डवेयर और उपकरणों के निर्माण और आपूर्ति करने की क्षमता पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। ऐसे में रूस चीन पर और भी ज्यादा निर्भर हो जाएगा।
ऐसे में भारत को रूस के साथ अपने संबंधों की तत्काल व्यापक और वस्तुनिष्ठ समीक्षा करने की आवश्यकता है। रक्षा आयातों को तेजी से कम करने की हाल की घोषणा भले ही ‘आत्मनिर्भर भारत’ को बढ़ावा देने की ओर इशारा करती हो, लेकिन रूस और चीन पर निर्भरता की भरपाई के लिए अन्य उत्पादों और सहयोग के क्षेत्रों को शामिल करने के लिए इसका विस्तार करने की आवश्यकता है। भारत को दुनिया की सबसे उन्नत उच्च-तकनीक, निवेश के लिए उपलब्ध पूंजी और केवल अमेरिका और पश्चिम में उपलब्ध विशाल बाजारों का लाभ उठाने की जरूरत है। पश्चिम एक विश्वसनीय भागीदार हो सकता है, जिसकी भारत के साथ न तो कोई सीमा है और न ही हितों का गंभीर टकराव है। यदि भारत स्वतंत्र तौर पर बढ़ना और एक प्रमुख शक्ति बनना चाहता है, तो महत्वपूर्ण क्षेत्रों में स्वदेशी उत्पादन को बढ़ाने के लिए भारत के पास उपलब्ध समय बहुत अधिक नहीं है। यह समय सीमा बहुत हुआ तो 2035 होगी।
ये घटनाएं और बयान भारत के प्रति तीखे होते चीनी तेवरों का पूर्वाभास देती हैं। प्रश्न यह है कि क्या भारत रूस को चीन पर निर्भर बनने से रोकने के लिए कुछ कर सकता है? अगर रूस चीन पर निर्भर बन जाता है, तो यह घटना भारत के लिए एक भू-राजनीतिक आपदा होगी, क्योंकि भारत की विदेश नीति का प्राथमिक उद्देश्य एशिया के संसाधनों पर एकाधिकार रखने वाले ब्लॉक के पनपने से बचना रहा है।
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