आखिरकार लंबी चर्चा-वार्ताओं, समर्थन-विरोधों और सलाह-मशविरों के बाद फिनलैंड को ‘नाटो’ गुट में जगह दे दी गई है। फिनलैंड इस गुट का 31वां सदस्य देश बन गया है। कल ब्रूसेल्स स्थित नाटो मुख्यालय के सामने एक औपचारिक समारोह में फिनलैंड का झंडा फहराया गया। इस मौके पर नाटो के महानिदेशक जेन्स स्टोलटेनबर्ग, फिनलैंड के राष्ट्रपति साउली निनिस्टो व अन्य नेता उपस्थित थे। जेन्स ने इसे एक ऐतिहासिक दिन बताया, फिनलैंड और नाटो, दोनों के लिए।
लेकिन उस रूस के लिए फिनलैंड के नाटो का सदस्य बनने का कल का दिन आक्रोश से भरा रहा जिसकी 1300 किलोमीटर लंबी सीमा रूस से सटी है। मास्को इस घटनाक्रम को अमेरिका के रूस विरोधी कदम की तरह देख रहा है। बेशक, यह उस क्षेत्र के लिए एक ऐतिहासिक राजनीतिक बदलाव जैसा ही है। रूस के पड़ोसी देश फिनलैंड का अमेरिका की अगुआई वाले नाटो गुट में जुड़ना रूस को चुभने जैसा ही है। वह कभी नहीं चाहता था कि ऐसा हो।
फिनलैंड के राष्ट्रपति साउली निनिस्टो ने भी इसे एक ऐतिहासिक कदम की संज्ञा दी। उन्होंने कहा कि उनके देश के इस गुट का सदस्य बनना फिनलैंड और नाटो को और बलशाली बनाएगा। उन्होंने ब्रूसेल्स में नाटो की सदस्यता से जुड़ी शेष कार्रवाई को पूरा किया। फिनलैंड के विदेश मंत्री नाटो की स्थापना संबंधी करार के हितरक्षक अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन को औपचारिक पत्र भी सौंपा।
‘नाटो’ अर्थात ‘नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन’ दरअसल एक रक्षा गठबंधन है। इसका गठन 1949 में किया गया था। अमेरिका, कनाडा, यूके तथा फ्रांस जैसे ताकतवर देश इसके सदस्य हैं। नाटो की स्थापना संधि के अनुसार, यदि इस संगठन के किसी सदस्य देश पर कोई आक्रमण करता है तो सभी सदस्य देश उसकी मदद के लिए बाध्य हैं। सब साथ मिलकर उस लड़ाई को लड़ेंगे। यूक्रेन के मामले में जैसा दिख रहा है, अधिकांश नाटो सदस्य देश यूक्रेन के समर्थन में आ जुटे हैं। जबकि दिलचस्प बात यह है कि यूक्रेन अभी नाटो का सदस्य नहीं है!
कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि नाटो गुट में फिनलैंड के आ जाने के बाद, इस गुट और अमेरिकी पक्ष की ताकत बढ़ जाएगी। फिनलैंड को इस गुट में शामिल किया जाए या न किया जाए, इस पर पिछले सप्ताह नाटो के सहयोगी देश तुर्किए तथा हंगरी ने सहमति में वोट डाला था। हालांकि इस बारे में एक साल से कार्रवाई जारी थी। बताया जा रहा है कि इस बार की प्रक्रिया नाटो के इतिहास में सबसे कम समय में पूरी की गई है और वह भी ऐसे वक्त में जब यूक्रेन पर रूस ने हमला बोला हुआ है।
नाटो में शामिल होने के बाद फिनलैंड के राष्ट्रपति साउली निनिस्टो ने भी इसे एक ऐतिहासिक कदम की संज्ञा दी। उन्होंने कहा कि उनके देश के इस गुट का सदस्य बनना फिनलैंड और नाटो को और बलशाली बनाएगा। उन्होंने ब्रूसेल्स में नाटो की सदस्यता से जुड़ी शेष कार्रवाई को पूरा किया। फिनलैंड के विदेश मंत्री नाटो की स्थापना संबंधी करार के हितरक्षक अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन को औपचारिक पत्र भी सौंपा।
क्या फिनलैंड के नाटो सदस्य बनने में रूस—यूक्रेन युद्ध की भी भूमिका है? इस सवाल पर कुछ कूटनीतिविदों का कहना है कि रूस ने यूक्रेन पर जो हमला बोला हुआ है उसके कारण फिनलैंड को भय है कि कहीं रूस उस पर भी हमला न बोल दे, कहीं उसके कुछ हिस्से अपने में न मिला ले। इस वजह से उसे पश्चिमी खेमे का सदस्य बनने में अपनी भलाई दिखी है। चूंकि यूक्रेन अभी नाटो का सदस्य नहीं है। यही कारण है कि नाटो के अनेक देश यूक्रेन की सीधी सहायता नहीं कर पाए हैं। यह बाध्यता भी संभवत: फिनलैंड को पश्चिमी देशों के इस संगठन में लाई है।
लेकिन फिनलैंड के नाटो में शामिल होने को रूस ने हल्के में नहीं लिया है। पड़ोसी देश के पश्चिमी गुट से जुड़ने के बाद उसने कहा है कि अब वह फिनलैंड से सटी सीमा पर चौकसी बढ़ा देगा। रूस के रक्षामंत्री ने कहा है कि इस घटनाक्रम से विवाद और गहरा जाएगा।
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