राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय बौद्धिक शिक्षण प्रमुख श्री स्वांत रंजन ने कहा कि कोई भी भाषा या बोली केवल भाषा नहीं होती, बल्कि वह अपने साथ एक संपूर्ण संस्कृति, आचरण और परंपरा लेकर चलती है।
गत दिनों मार्च को पटना में चंद्रगुप्त साहित्य महोत्सव आयोजित हुआ। इसका उद्घाटन बिहार के राज्यपाल डॉ. राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर ने किया। उन्होंने कहा कि साहित्य के माध्यम से हम कई बातों को समाज के समक्ष रोचक ढंग से प्रस्तुत करते हैं। हमारे प्राचीन साहित्य में हमारी भावनाओं का प्रकटीकरण होता है और उसके आलोक में हम एक दिशा पाते हैं।
मुख्य अतिथि और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख श्री सुनील आंबेकर ने कहा कि लेखकों को आपस में जोड़ने वाले साहित्य की रचना करनी चाहिए। फूहड़ता मनोरंजन का पर्याय नहीं होती। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता भारतीय रिजर्व बैंक के सेवानिवृत्त पदाधिकारी राजकुमार सिन्हा ने की।
इसके बाद महोत्सव को मध्य प्रदेश हिंदी अकादमी के अध्यक्ष डॉ. विकास दवे, सुप्रसिद्ध उपन्यासकार डॉ. नीरजा माधव, कवि बुद्धिनाथ मिश्र, अजय अनुराग, प्रो. रामवचन राय, प्रो. संजीव शर्मा, डॉ. विजय कुमार मिश्र, प्रो. समीर शर्मा, डॉ. अमित कुमार, चर्चित उपन्यासकार डॉ. क्षमा कौल, डॉ. परमात्मा मिश्र, प्रो. चमनलाल गुप्ता आदि ने संबोधित किया। 26 मार्च को समापन सत्र को संबोधित करते हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने कहा कि भारतीय वाड्मय 10 हजार वर्ष से अधिक पुराना है।
अत: हमें पश्चिम की ओर न देखकर अपनी जड़ों को तलाशना आवश्यक है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय बौद्धिक शिक्षण प्रमुख श्री स्वांत रंजन ने कहा कि कोई भी भाषा या बोली केवल भाषा नहीं होती, बल्कि वह अपने साथ एक संपूर्ण संस्कृति, आचरण और परंपरा लेकर चलती है। इस अवसर पर प्रसिद्ध लेखिका डॉ. इंदिरा दांगी को चंद्रगुप्त साहित्य शिखर सम्मान प्रदान किया गया।
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