नाविकराम ने जैविक फसल और फूल की खेती के साथ-साथ पशु पालन में भी सफलता की कहानी लिखी।
बेंगलुरु ग्रामीण जिले के डोड्डाबल्लापुर तालुक के लक्ष्मीदेवीपुरा गांव के निवासी किसान नाविकराम आरसी की व्यक्तिगत और भौतिक स्थिति का 10 वर्ष पूर्व के मुकाबले आज पूरी तरह कायाकल्प हो चुका है। ऑर्गेनिक खेती के बाबत विशेषज्ञ एवं वैज्ञानिक सलाह से आज वे बहुत खुशहाल किसान हैं। ऑर्गेनिक खेती शुरू करने से पहले उनकी वार्षिक आमदनी 4 से 5 लाख रुपये थी। अब सभी खर्चे काटने के बाद उन्हें वार्षिक लगभग 10 लाख रुपये का लाभ हो जाता है।
कॉमर्स ग्रेजुएट नाविकराम ने पढ़ाई के तुरंत बाद खेती शुरू कर दी थी। उन्हें आज की स्थिति में पहुंचने में बहुत अड़चनें आईं। सबसे पहले तो उनके पिता ने अपनी जमीन का वितरण सभी बेटों में समान रूप से किया था परंतु कुछ भाइयों ने जमीन के मामले में मुकदमा दायर कर रखा था। इस कानूनी लड़ाई से निकलने के लिए नाविकराम को बहुत पापड़ बेलने पड़े।
नाविकराम ने सागौन के 200 पौधे, 35 नारियल, 4,000 चीकू, अचार किस्म के पांच आम, नारंगी, लाल चंदन, लाल चंदन, काला बेर और कई अन्य पौधे लगाए हैं। उसकी सभी उपज कार्बनिक है क्योंकि किसी भी उर्वरक या रसायन का उपयोग नहीं किया जाता है। उनके इस परिश्रम और नवाचार को तमाम पुरस्कारों के जरिए मान दिया गया। इनमें तालुक, जिला और राज्य स्तर के पुरस्कार शामिल हैं
नाविकराम ने जब खेती शुरू की, तो उन्होंने सबसे पहले मौजूदा अंगूर की फसल को हटा दिया। उन्होंने आर्गेनिक खेती करने की ठानी और इसके लिए राज्य के कृषि, बागवानी विभाग और कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) के अधिकारियों और वैज्ञानिकों की सलाह ली। उन्होंने ग्राफ्टिंग की भी ट्रेनिंग ली। इसके बाद बागवानी और फूलों की फसलों के साथ प्रयोग करने लगे।
नाविकराम को पानी की भी दिक्कतें आईं। उनके बोरवेल से केवल 1/2 इंच पानी का उत्पादन होता था, लेकिन, उन्होंने हार नहीं मानी। उपलब्ध भूमिगत जल का सर्वोत्तम उपयोग करने के लिए उन्होंने वर्षा जल को संग्रहीत करने के लिए खेत तालाब खोदने के लिए सरकारी सब्सिडी का उपयोग किया।
उन्होंने कटहल की 10 किस्में लगाई हैं और उनमें कचहल्ली किस्म के नरसिमैया की ग्राफ्टिंग शामिल है। यह पेड़ 500 साल पुराना बताया जाता है, जबकि इस किस्म के फलों का वजन लगभग 28 किलोग्राम होता है! उन्हें अंगूर की भी बंपर फसल मिली है, जबकि यह सिर्फ 10-11 महीने पुरानी है।
नाविकराम ने सागौन के 200 पौधे, 35 नारियल, 4,000 चीकू, अचार किस्म के पांच आम, नारंगी, लाल चंदन, लाल चंदन, काला बेर और कई अन्य पौधे लगाए हैं। उसकी सभी उपज कार्बनिक है क्योंकि किसी भी उर्वरक या रसायन का उपयोग नहीं किया जाता है। उनके इस परिश्रम और नवाचार को तमाम पुरस्कारों के जरिए मान दिया गया। इनमें तालुक, जिला और राज्य स्तर के पुरस्कार शामिल हैं।
नाविकराम ने जैविक फसल और फूल की खेती के साथ-साथ पशु पालन में भी सफलता की कहानी लिखी। उन्होंने भेड़, मुर्गी, गाय, भैंस, सुअर, खरगोश, मधुमक्खी और मछली पालन किया। उनके खेत तालाब में मत्स्य पालन होता है और मछलियों के चारे के रूप में मुर्गियों के मल-मूत्र का उपयोग किया जाता है। इससे मछली के चारे पर कोई खर्च नहीं होता है।
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