अक्सर देखा जाता है कि किसी मध्यमवर्गीय परिवार के लोग अपने बच्चों को शिक्षित कर उनसे अच्छी नौकरी करने की उम्मीद करते हैं। विवेक दुबे से भी यही उम्मीद की गई थी। हालांकि उन्होंने घर वालों का मान भी रखा और एमसीए करने के बाद कुछ समय तक नौकरी भी की। पर उन्हें अपनी मिट्टी से इतना लगाव है कि कुछ समय बाद सब कुछ छोड़कर अपने गांव लौट आए। विवेक ने घर वालों को बताया कि वे खेती करना चाहते हैं।
उनकी इस बात को सुनकर उनके पिता अशोक कुमार दुबे, जो भूतपूर्व सैनिक हैं और माता अमरावती देवी दंग रह गई। लेकिन दोनों को अपने बेटे पर इतना भरोसा था कि वह जो करेगा अच्छा ही करेगा। इसलिए उन दोनों ने विवेक का हौसला बढ़ाया। उसका परिणाम यह हुआ है कि आज विवेक खेती से ही लाखों रुपए महीना कमा रहे हैं और लगभग 50 लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं। विवेक झारखंड में पलामू जिले के मेदनी प्रखंड स्थित बारालोटा गांव के रहने वाले हैं।
विवेक की प्रेरणा से उच्च शिक्षित दूसरे युवा भी खेती करने लगे हैं।
वास्तव में विवेक की हिम्मत और मेहनत गजब की है।
इन दोनों की बदौलत ही वे आज नई ऊंचाई को छू रहे हैं।
खेती के लिए विवेक ने पलामू के अति नक्सल प्रभावित क्षेत्र नावा बाजार प्रखंड के कंडा गांव में पांच एकड़ जमीन पट्टे पर ली। इसके बाद उसमें वे नई तकनीक से स्ट्रॉबेरी की खेती करने लगे। कार्य शुरू करने से पहले उन्होंने स्ट्रॉबेरी की खेती का गहरा अध्ययन किया। इसके बाद अपने दोस्त प्रवीण सिंह के साथ काम शुरू किया। धीरे-धीरे दोनों की मेहनत रंग दिखाने लगी। स्ट्रॉबेरी की खेती ने उन्हें आशातीत सफलता दिलाई। इसके बाद दोनों कार्य का विस्तार करते गए।
वर्तमान में दोनोें लगभग 35 एकड़ जमीन पर खेती कर रहे हैं। स्ट्रॉबेरी के साथ-साथ थाई अमरूद, गोल्डन शरीफा, काला धान, काला चावल सहित कई तरह की मौसमी फसलों को भी उपजा रहे हैं। कह सकते हैं कि इस खेती को विवेक ने उद्योग का रूप दे दिया है। विवेक बताते हैं, ‘‘शुरुआत में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा।
जानकारी के अभाव में फसलों में कई प्रकार के कीड़े-मकोड़े लग जाते थे और फसल खराब हो जाती थी। अध्ययन के बाद इसका निदान निकाला तो बाजार और कामगारों की चुनौती आई। हालांकि जल्दी ही ये चुनौतियां भी समाप्त हो गई। धीरे-धीरे समाज के सभी लोगों का भी सहयोग प्राप्त होने लगा। इस कारण कार्य आसान हो गया।’’ उन्होंने यह भी बताया कि भारत के अंदर खेती में भी असीम संभावनाएं हैं, लेकिन पढ़े-लिखे लोग इसे हीन भावना से देखते हैं, यह नजरिया बदलना चाहिए।
विवेक खेती के लिए हर तकनीक का उपयोग कर रहे हैं। उन्होंने बूंद-बूंद सिंचाई को अपनाया है। वे एक साथ कई फसलों को उगा रहे हैं, पूरी तरह जैविक खेती कर रहे हैं। बता दें कि उन्होंने बंजर भूमि को पट्टे पर लिया था। अब वे उस जमीन पर ‘सोना’ उगा रहे हैं। उनके इस प्रयोग को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आ रहे हैं। उनकी देखादेखी अन्य किसानों ने भी नई तकनीक से खेती करना शुरू कर दिया है।
आसपास के विद्यालयों के छात्र भी विवेक की खेती को देखने आते हैं। विवेक की प्रेरणा से उच्च शिक्षित दूसरे युवा भी खेती करने लगे हैं।
वास्तव में विवेक की हिम्मत और मेहनत गजब की है। इन दोनों की बदौलत ही वे आज नई ऊंचाई को छू रहे हैं।
दस वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। राजनीति, सामाजिक और सम-सामायिक मुद्दों पर पैनी नजर। कर्मभूमि झारखंड।
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