गत 14 मार्च को सर्वोच्च न्यायालय ने सुन्नी वक्फ बोर्ड की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उसने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय को चुनौती दी थी। उल्लेखनीय है कि 2017 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक याचिका पर सुनवाई करने के बाद आदेश दिया था कि अदालत परिसर में स्थित मस्जिद को हटाया जाए, क्योंकि वह जिस जमीन पर बनी है, उसका पट्टा समाप्त हो गया है।
यह याचिका अधिवक्ता अभिषेक शुक्ल ने दायर की थी। याचिका की सुनवाई करने के बाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मस्जिद को हटाने का आदेश दिया था। इस आदेश को सुन्नी वक्फ बोर्ड ने सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। अब सर्वोच्च न्यायालय ने सुन्नी वक्फ बोर्ड के दावे को खारिज कर कहा है कि मस्जिद को तीन महीने के अंदर वहां से हटाया जाए।
कैसे बनी मस्जिद
कहा जा रहा है कि कुछ वर्ष पहले इलाहाबाद उच्च न्यायालय के कुछ मुस्लिम कर्मचारी और वकीलों ने उच्च न्यायालय के उत्तरी बरामदे में जुम्मे की नमाज पढ़ना शुरू किया। इसके बाद ये लोग बगल के ही एक बंगले, जिसका मालिक एक मुसलमान ही था, की खाली जगह पर नमाज पढ़ने लगे। इस बंगले की जमीन भी पट्टे पर थी। इलाहाबाद के तत्कालीन जिलाधिकारी ने 11 जनवरी, 2001 को बंगले के पट्टे को निरस्त कर दिया। इसके लिए 2 सितंबर, 2001 को बंगले के मालिक को 10,00,000 रुपए का मुआवजा भी दिया गया। इसके बाद असली खेल शुरू हुआ।
कुछ लोगों ने नमाज की जगह पर पहले टीन का शेड बनाया और फिर धीरे-धीरे मस्जिद बना दी गई। कानून से बचने के लिए उस मस्जिद को वक्फ बोर्ड से पंजीकृत करा दिया। इस बीच बंगले को ध्वस्त कर वहां न्यायालय के लिए भवन बनाए गए। जनवरी, 2017 में वकील अभिषेक शुक्ल ने इस मस्जिद को हटाने के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की।
न्यायालय ने याचिकाकर्ता और मस्जिद पक्ष दोनों को सुनने के बाद मस्जिद को अवैध घोषित कर उसे हटाने का आदेश दिया। इसके बाद सुन्नी वक्फ बोर्ड सर्वोच्च न्यायालय पहुंचा और अब उसका भी निर्णय सबके सामने है। उम्मीद है कि तीन महीने के अंदर मस्जिद वहां से हट जाएगी।
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