देश की आज़ादी की लड़ाई में न जाने कितने देशवासियों ने खुद को बलिवेदी पर चढ़ा दिया। राज घराने से लेकर आम जन मानस तक, भारत के हर गली-कूचे से आपको स्वतंत्रता सेनानियों की कहानियां मिल जाएंगी। ऐसे ही साहस और समर्पण की कहानियां हमारे देश के वनवासियों की भी हैं। गांधी जी से प्रेरित होकर अंग्रेजों के अत्याचारों के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले एक जनजातीय समाज से आने वाले नायक थे लक्ष्मण नायक। जिनसे डरकर अंग्रेजों ने उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया था।
लक्ष्मण नायक का जन्म 22 नवंबर 1899 को कोरापुट में मलकानगिरी के तेंटुलिगुमा में हुआ था। उनके पिता पदलम नायक थे, जो भूयान जनजाति से संबंध रखते थे। नायक ने अपने और अपने लोगों के लिए अकेले ही ब्रिटिश सरकार के खिलाफ़ मोर्चा खोला। अंग्रेजी सरकार की बढ़ती दमनकारी नीतियां जब भारत के जंगलों तक भी पहुंच गई और जंगल के दावेदारों से ही उन की संपत्ति पर लगान वसूला जाने लगा तो नायक ने अपने लोगों को एकजुट करने का अभियान शुरू कर दिया।
नायक ने अंग्रेज़ों के खिलाफ अपना एक क्रांतिकारी गुट तैयार किया। आम वनवासियों के लिए वे एक नेता बनकर उभरे। उनके कार्यों की वजह से पूरे देश में उन्हें जाना जाने लगा। इसी के चलते कांग्रेस ने उन्हें अपने साथ शामिल करने के लिए पत्र लिखा। कांग्रेस की सभाओं और ट्रेनिंग सेशन के दौरान वे गांधी जी के सम्पर्क में आए। वह गांधी जी से बहुत प्रभावित हुए। कांग्रेस के अभियानों में जनजाति समाज भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने लगा था। लक्ष्मण नायक गांधी जी का चरखा साथ लेकर जनजातीय समाज के गांवों में शिक्षा के लिए लोगों को प्रेरित करते थे। उन्होंने ग्रामीण इलाकों में बदलाव लाने में अहम भूमिका निभाई। उन्हें बहुत से लोग ‘मलकानगिरी का गांधी’ भी कहने लगे थे।
महात्मा गांधी के कहने पर उन्होंने 21 अगस्त 1942 को जुलूस का नेतृत्व किया और मलकानगिरी के मथिली पुलिस स्टेशन के सामने शांतिपूर्वक प्रदर्शन किया। पर पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर अंधाधुंध गोलीबारी की, जिसमें 5 क्रांतिकारियों की मौत हो गई और 17 से ज्यादा लोग घायल हो गए।
ब्रिटिश सरकार ने उनके बढ़ते प्रभाव को देख, उन्हें एक झूठे हत्या के आरोप में फंसा दिया। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और फांसी की सजा सुनाई गई। 29 मार्च 1943 को बेरहमपुर जेल में उन्हें फांसी दे दी गई। अपने अंतिम समय में उन्होंने बस इतना ही कहा था, “यदि सूर्य सत्य है, और चंद्रमा भी है, तो यह भी उतना ही सच है कि भारत भी स्वतंत्र होगा।”
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