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राहुल की रुदन राजनीति

राहुल गांधी प्रकरण इतिहास में इस दृष्टि से दर्ज होगा कि सत्ता से दूर होने पर सत्ताजीवी किस सीमा तक छटपटा सकते हैं। किस तरह उन शक्तियों का खिलौना बनने को राजी हो सकते हैं, जो इस देश के प्रति शत्रुतापूर्ण भाव रखती हैं

by हितेश शंकर
Mar 15, 2023, 04:08 pm IST
in सम्पादकीय
राहुल गांधी

राहुल गांधी

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भारत में अमेरिका के पूर्व राजदूत निकोलस बर्न्स के साथ बातचीत में राहुल गांधी ने कहा कि भारत में असहिष्णुता ठीक वैसे ही बढ़ रही है जैसे अमेरिका में बढ़ रही है। लेकिन बर्न्स ट्रम्प के घोर विरोधी होने के नाते अमेरिका विरोधी होने के लिए तैयार नहीं थे। उन्होंने राहुल गांधी से साफ कहा कि अमेरिका सहिष्णु देश है सरकार चाहे कोई भी हो, अमेरिका के नागरिक इस तरह की बातें सुनने के लिए राजी नहीं हैं।

विदेश की धरती से राहुल गांधी ने भारत का जो उपहास और अपमान किया है, उस पर भारत के कम ही लोगों को आश्चर्य हुआ होगा। इससे राहुल गांधी की बौद्धिकता के स्तर के बारे में आमजन के बीच बनी छवि में भी कोई बहुत ज्यादा उतार-चढ़ाव नहीं आया है। राहुल गांधी मोदी सरकार के प्रति अपनी घृणा प्रदर्शित करने के लिए किसी भी सीमा तक जा सकते हैं, यह भी कोई नई बात नहीं है।

यह व्याप्त धारणा कि राहुल गांधी किसी और देश की ओर से भारत विरोधी अभियान का हिस्सा बने हुए हैं, इसमें भी आश्चर्यजनक कुछ नहीं है। और तो और, मोदी सरकार को गिराने के लिए विदेशों से मदद की गुहार लगाने में भी नया कुछ नहीं है। कांग्रेस की ओर से मणिशंकर अय्यर तो पाकिस्तान से ऐसी गुहार पूर्व में लगा ही चुके हैं (..इन्हें हटा दो, हमें ले आओ..)।

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समस्या सिर्फ यह है कि भारत के लोकतंत्र की उदारता का जमकर दुरुपयोग किया जा रहा है और इसके लिए स्वयं लोकतंत्र और उसकी उदारता को ही कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की जा रही है। राहुल गांधी का यह प्रकरण निश्चित रूप से इतिहास में इस दृष्टि से दर्ज होगा कि सत्ता से दूर होने पर सत्ताजीवी किस सीमा तक छटपटा सकते हैं। किस सीमा तक अपने देश को लांछित कर सकते हैं और किस तरह उन शक्तियों का खिलौना बनने को राजी हो सकते हैं, जो इस देश के प्रति शत्रुतापूर्ण भाव रखती हैं।

व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखे तो भारत सधे हुए और तेज कदमों से अपने वैभव की ओर बढ़ रहा है। विश्व के अनेक रणनीतिक, आर्थिक, सामरिक और राजनीतिक प्रश्नों पर भारत की भूमिका महत्वपूर्ण होती जा रही है। जब आप बड़े खेल में, बड़े खिलाड़ियों के साथ खेलते हैं, तो जाहिर तौर पर आप के खिलाफ होने वाले दांव-पेंच या षड्यंत्र भी बड़े स्तर के ही होते हैं। निश्चित रूप से अगला आम चुनाव होने तक इस तरह की कई और चुनौतियां सामने आएंगी, जिनमें भारत की आंतरिक शक्ति को भीतर से ही चुनौती देने, कमजोर करने और संभवत: खारिज करने का प्रयास होगा। कभी आपके अर्थ तंत्र पर हमला होगा, कभी आपके सूचना तंत्र पर, कभी आपके संस्थानों पर, कभी आप की प्रणालियों, विश्वास और आस्थाओं पर हमला होगा। इस सबका लक्ष्य भारत की जनता को उस स्तर तक भ्रमित करने का होगा, जहां वह अपने लिए उचित-अनुचित का फैसला न कर सके।

यह एक आशान्वित करने वाला बिंदु भी है और चुनौती का बिंदु भी। आशा का पक्ष यह है कि इस तरह की उछलकूद जितनी ज्यादा होगी, भारत की जनता उतनी ही एकजुटता और मुखरता से इसका उत्तर देगी। चिंता का पहलू यह है कि जो लोग सिर्फ सत्ता का विरोध करने के लिए देश के विरोध के स्तर पर आते हैं, ऐसे लोग देश के लिए राजनीतिक चुनौती भले ही न बन सकें, लेकिन देश के लिए शर्मिंदगी जरूर बनते हैं। यह सहज बात नहीं है कि कैंब्रिज में राहुल गांधी का कार्यक्रम पाकिस्तानी मूल के जिस कमाल मुनीर ने आयोजित किया था, वह कश्मीर पर पाकिस्तान की रट लगाने वाले तंत्र का एक बड़ा उपकरण है। कश्मीर और हिंदुओं पर वह काफी आपत्तिजनक बातें लिखता रहा हैं।

पाकिस्तानी सरकार उसे अपना सर्वोच्च नागरिक सम्मान निशान-ए-इम्तियाज भी दे चुकी है। देश का अपमान करने के जोश में राहुल गांधी खुद अपना भी अपमान भूल चुके हैं। यह वही पाकिस्तान है, जिसके प्रधानमंत्री ने भारत के उस प्रधानमंत्री को ‘देहाती औरत’ कहा था, जिसका रिमोट राहुल गांधी और उनकी मां के पास था। इससे तो विकिपीडिया जैसे मंचों पर दर्ज उन बातों की ही पुष्टि होती है कि भारत का विभाजन जवाहरलाल नेहरू और मोहम्मद अली जिन्ना ने अपनी सत्ता-लोलुपता के कारण कराया था।

जो लोग सिर्फ सत्ता का विरोध करने के लिए देश के विरोध के स्तर पर आते हैं, ऐसे लोग देश के लिए राजनीतिक चुनौती भले ही न बन सकें, लेकिन देश के लिए शर्मिंदगी जरूर बनते हैं। यह सहज बात नहीं है कि कैंब्रिज में राहुल गांधी का कार्यक्रम पाकिस्तानी मूल के जिस कमाल मुनीर ने आयोजित किया था, वह कश्मीर पर पाकिस्तान की रट लगाने वाले तंत्र का एक बड़ा उपकरण है। कश्मीर और हिंदुओं पर वह काफी आपत्तिजनक बातें लिखता रहा हैं।

आप राहुल गांधी के संबंध में स्थान, काल और परिस्थितियों पर गौर करें। उन्होंने स्थान वह चुना जो कैंब्रिज एनालिटिका और भारत विरोधी तमाम दुष्प्रचारों का मूल स्थान है और जहां आज भी साम्राज्यवाद के सपने जीवित हैं। काल वह चुना जब चुनावों की निकटता किसी कानूनी कार्यवाही को टाल सकती है। और परिस्थिति यह कि भारत की प्रगति से ईर्ष्या रखने वालों को कुछ कहने और उद्धृत करने का अवसर भारत में ही जन्मे कुछ लोग दे रहे हैं।

रोचक बात यह कि भारत में अमेरिका के पूर्व राजदूत निकोलस बर्न्स के साथ बातचीत में राहुल गांधी ने कहा कि भारत में असहिष्णुता ठीक वैसे ही बढ़ रही है जैसे अमेरिका में बढ़ रही है। लेकिन बर्न्स ट्रम्प के घोर विरोधी होने के नाते अमेरिका विरोधी होने के लिए तैयार नहीं थे। उन्होंने राहुल गांधी से साफ कहा कि अमेरिका सहिष्णु देश है सरकार चाहे कोई भी हो, अमेरिका के नागरिक इस तरह की बातें सुनने के लिए राजी नहीं हैं। विडंबना यह है कि आत्मसम्मान खो चुके व्यक्ति को आईना भी नजर नहीं आ सकता है।
@hiteshshankar

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