पाकिस्तान के सिंध सूबे से आएदिन हिन्दू प्रताड़ना के समाचार प्राप्त होते रहते हैं। वहां का हिंदू समुदाय किस तरह आतंक के साए में जी रहा है, उसके उदाहरण सामने आते रहते हैं। हिन्दुओं और सिखों की लड़कियों को मजहबी उन्मादियों द्वारा अगवा करना, उनको कन्वर्ट करते हैं, प्रताड़ित करते हैं और जबरन निकाह करते हैं। अल्पसंख्यक समुदाय की ऐसी सभी शिकायतों पर मुस्लिम प्रशासन कान ही नहीं देता, उल्टे उन्मादियों के पाले में जा खड़ा होता है। सरकार वैसी ही बहरी रहती है।
लेकिन अब पानी सिर तक आन पहुंचा है। सिंध के हिन्दू समुदाय ने अब बड़े पैमाने पर इस दमन के विरुद्ध आवाज उठाने का फैसला किया है। अनेक संगठन एक होकर 30 मार्च एक बड़ी रैली आयोजित करके पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए आवाज उठाएंगे। यह रैली पाकिस्तान दारावर इत्तेहाद (पीडीआई) के तत्वावधान में आयोजित की जाएगी।
इस रैली को वहां के सभी हिन्दुओं का समर्थन रहेगा। सभी संगठन सिंध विधानसभा के बाहर इकट्ठे होकर दुनिया को अपने साथ हो रहे हिंसक बर्ताव की जानकारी देंगे। पाकिस्तान दारावर इत्तेहाद (पीडीआई) के प्रमुख फकीर शिवा कुची का कहना है कि इस रैली में हजारों की तादाद में हिंदुओं के भाग लेने की उम्मीद है। वे कहते हैं, हमें इस कदम को उठाने के लिए इसलिए मजबूर होना पड़ रहा है, क्योंकि सिंध की सरकार हिन्दू महिलाओं तथा बच्चियों के अपहरण, जबरन कन्वर्जन और निकाह के मामलों पर ध्यान तक नहीं देती है।
सिंध सूबे में हिन्दू महिलाओं और लड़कियों के अपहरण तथा जबरन कन्वर्जन को लेकर सिंध विधानसभा में 2019 में उठा था। इसके मसौदे पर बहस भी हुई। यह विधेयक जबरन कन्वर्जन को अपराध ठहराता था। लेकिन बाद में अज्ञात कारणों से विधेयक को विधानसभा में खारिज कर दिया गया था।
शिवा कहते हैं कि प्रशासन का ध्यान इस तरह खींचने के लिए अभी से पूरे सूबे में स्थान स्थान पर छोटी—बड़ी रैलियां निकलनी शुरू हो चुकी हैं। 30 मार्च को होने जा रही एक विशाल विरोध रैली तक सूबे के सभी जिम्मेदार लोग अल्पसंख्यकों की दयनीय स्थिति के प्रति जान जाएं। शिवा की मांग है कि जबरन कन्वर्जन और निकाह के विरुद्ध जो विधेयक बनने के बाद सिंध विधानसभा में अटकाकर रखा गया है, उसे पारित किया जाना चाहिए।
जिस विधेयक का शिवा उल्लेख करते हैं वह सिंध सूबे में हिन्दू महिलाओं और लड़कियों के अपहरण तथा जबरन कन्वर्जन को लेकर सिंध विधानसभा में 2019 में उठा था। इसके मसौदे पर बहस भी हुई। कुछ विधायकों ने अपनी आपत्तियां दर्ज कराईं जिनके अनुसार संशोधन किया गया और इसे सर्वसम्मति से तय हुआ कि यह कानून सिर्फ हिंदू लड़कियों तक ही सीमित न रखा जाए। यह विधेयक जबरन कन्वर्जन को अपराध ठहराता था। लेकिन बाद में अज्ञात कारणों से विधेयक को विधानसभा में खारिज कर दिया गया था। ऐसा ही एक और विधेयक दुबारा सदन ममें लाया गया, लेकिन 2021 में वह भी निरस्त कर दिया।
लेकिन हिन्दुओं का उत्पीड़न कम होने की बजाय बढ़ता ही गया। सरकार, पुलिस प्रशासन सब जानता है, लेकिन दबंग मजहबी उन्मादियों के विरुद्ध मुंह खोलने से कतराता ही रहा है। इतना ही नहीं, कई मामलों में तो खुद पुलिस के अधिकारी पीड़ित परिवार को उन्मादियों से न उलझने और हिन्दू लड़की को अगवा करने के मामले को भुला देने की ‘सलाहें’ देते देखे गए हैं।
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