समाज में कोई भी कल्याणकारी कार्य करने के लिए एक अच्छी विचारधारा का होना जरूरी है। कुछ ऐसी विचारधारा से प्रभावित थी मेरी मां राजबाला जी। वह हमेशा महिला कल्याण के लिए तत्पर रहती थीं। कोरोना काल में लॉकडाउन के दौरान उन्होंने काफी समय तक जरूरतमंद लोगों के लिए भोजन की वयवस्था की। उसी दौरान उन्होंने महसूस किया कि अल्पकालिक भरण-पोषण उनके लिए पर्याप्त नहीं है बल्कि उन्हें स्वावलंबी बनाने के लिए कुछ स्थायी कार्य किया जाए, जिससे कि परिवार की गृहिणी आत्मनिर्भर बन स्वयं भी पारिवारिक उत्तरदायित्व वहन करने में सक्षम बन सकें। परंतु नियति को कुछ और ही स्वीकार था। इस कार्य की शुरुआत से पहले ही 12 नवम्बर 2020 को मेरी माता जी का स्वर्गवास हो गया।
उनके इस सपने को पूरा करने हेतु कुछ समय पश्चात मेरे पिताजी कैप्टन अनंगपाल सिंह जी ने 12 अगस्त 2022 को उनके नाम पर राजबाला मेमोरियल ट्रस्ट की स्थापना की ताकि इसके माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाया जा सके। धीरे-धीरे कंप्यूटर, ब्यूटीपार्लर, मेहंदी प्रशिक्षण जैसे उपयोगी कोर्स की शुरुआत की तथा असहाय और जरूरतमंद परिवार के बच्चों के लिए निशुल्क शिक्षा भी शुरू की। वर्तमान मे ट्रस्ट परिवार को इस कार्य को सुचारू रूप से चलाने के लिए किसी प्रकार की कोई वित्तीय सहायता उपलब्ध नहीं हैं। इसका संपूर्ण खर्च पिताजी की एकमात्र पेंशन है। जरूरतमंदों के उत्साह को देखते हुए भविष्य में कौशल विकास के लिए ट्रस्ट परिवार कई कार्य शुरू करने पर विचार कर रहा है।
मैं राजबाला एकेडमी का प्रतिनिधित्व करती हूं। एकेडमी में क्षेत्र प्रबंधक के पद पर कार्य करती हूं। यह एकेडमी नत्थूपुरा, दिल्ली में है। राजबाला एकेडमी राजबाला मेमोरियल ट्रस्ट के नाम से हमने छोटी सी शुरुआत इस सोच के साथ की कि सिलाई-कढ़ाई के द्वारा हम महिलाओं को सशक्त करने की कोशिश करेंगे। जब सर्वे के लिए निकले तो देखा कि कोरोना काल में कई बच्चे ऐसे थे जिनके माता-पिता दोनों का निधन हो गया था। उन बच्चों के लिए बहुत मुश्किल दौर था। उनकी पढ़ाई को लेकर बहुत बड़ी समस्या खड़ी हो गई थी। धीरे-धीरे हमने कक्षा एक से लेकर आठ तक के बच्चों को ट्यूशन देना शुरू किया। महिलाओं के लिए सिलाई सेंटर खोला। उसके बाद कई महिलाओं ने ब्यूटीपार्लर में सीखने की इच्छा जताई। एकेडमी में सिलाई, ब्यूटीपार्लर, नर्सरी से आठवीं का ट्यूशन, कंप्यूटर की कक्षाएं शुरू की। कंप्यूटर की कक्षा में 85 बच्चे आ रहे हैं। पिताजी की पेंशन का बड़ा हिस्सा हर महीने इसमें जा रहा है। पहले मैं भी नौकरी करती थी, लेकिन जब पापा को अकेले घंटों इसमें लगे हुए देखा तो मैंने भी जॉब छोड़ कर पापा जी की मदद करने की कोशिश की ताकि मां के सपने को साकार कर सकूं। राजबाला अकादमी के संरक्षक कैप्टन एपी सिंह जी ने कभी भी किसी को मदद के लिए मना नहीं किया।
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