उत्तर प्रदेश विधानसभा में शुक्रवार को ऐतिहासिक नजारा देखने को मिला। विधानसभा ने कोर्ट की तरह कार्यवाही की। 19 साल पुराने एक विधायक के विशेषाधिकार हनन के मामले में एक सेवानिवृत्त क्षेत्राधिकारी और पांच अन्य पुलिस कर्मियों को एक दिन के कारावास की सजा सुनाई गई। संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना ने सदन में प्रस्ताव रखा, जिस पर विधान सभा अध्यक्ष ने सर्व सम्मति से फैसला सुनाया।
बजट सत्र के दौरान शुक्रवार की सुबह 11 बजे प्रश्नकाल के साथ सदन की कार्यवाही शुरू हुई। प्रश्नकाल के बाद शून्य प्रहर की कार्यवाही शुरू हुई।नेता प्रतिपक्ष अखिलेश यादव ने नेता सदन के समाजवाद पर सदन में आये वक्तव्य का हवाला देते हुए सदन से वहिर्गमन कर गए। विधान सभा अध्यक्ष यह कहकर सपा के सदस्यों को बैठने के लिए कहा कि सदन में महत्वपूर्ण मुद्दा आने जा रहा है लेकिन सपा के सदस्य वहिर्गमन कर गए।
इसके बाद संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना ने सदन में कहा कि 2004 में बिजली व्यवस्था को लेकर तत्कालीन विधायक सलिल विश्नोई शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन कर रहे थे। तब स्थानीय पुलिस ने उनके साथ अभद्र व्यवहार किया। लाठी चार्ज किया और गाली गलौज किया। 25 अक्टूबर, 2004 को यह मामला विशेषधिकार समिति के समक्ष आया। उसका एक वीडियो आया। विशेषाधिकार समिति ने 28 जुलाई, 2006 को दोषी पुलिस कर्मियों को दंडित करने का फैसला सुनाया। इस मुद्दे पर महाधिवक्ता से परामर्श भी लिया गया है। सदन को आर्टिकल 194 में यह अधिकार दिया गया है कि हम ऐसे लोगों को दंडित कर सकें। सुरेश खन्ना ने मौजूदा 18वीं विधानसभा अध्यक्ष से पूरे सदन को कोर्ट के रूप में परिवर्तित कर कार्यवाही संचालित करने का प्रस्ताव रखा। खन्ना के प्रस्ताव पर सदन में मौजूद सभी दलों ने अध्यक्ष को संरक्षक बताते हुए फैसला सुनाने के लिए अधिकृत किया। जनसत्ता दल, अपना दल एस, सुभासपा, निषाद पार्टी, बसपा और कांग्रेस ने भी इसका समर्थन किया।
इस पर विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि इन सभी छह लोगों को सदन की अवमानना का दोषी पाया गया है। खन्ना के प्रस्ताव पर विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने सेवानिवृत्त क्षेत्राधिकारी व अन्य पांच पुलिसकर्मियों को एक दिन के कारावास की सजा सुनाई।
इसके बाद खन्ना ने कहा कि दोषी पुलिसकर्मियों को भी अपना पक्ष रखने का मौका दिया जाना चाहिए। पीठ से अनुमति मिलने पर आरोपितों ने क्षमा याचना की। इस पर संसदीय कार्य मंत्री खन्ना ने कहा कि सब लोग क्षमा मांग रहे हैं। विधायकों को जनता चुनकर भेजती है। पुलिस के अधिकारी भी शासन के निर्देशों का पालन करते हैं लेकिन इन्हें कोई अधिकार नहीं है कि किसी को अपमानित करें, गाली गलौज करें। अध्यक्ष के निर्णय को किसी भी कोर्ट में चैलेंज नहीं किया जा सकता। इसलिए इन्हें कम से कम सजा सुनाई जाए। इन्हें आज रात 12 बजे तक (एक दिन) की कारावास की सजा सुनाई जाए। इस पर उन्हें एक दिन की सजा सुनाई गई। अध्यक्ष ने सदन को अवगत कराया कि उन्हें विधान भवन में बने सेल (लॉकअप) में ही रखा जाएगा।
कौन है दंडित होने वाले पुलिस कर्मी
जिन पुलिसकर्मियों पर विशेषाधिकार समिति की संस्तुति पर कार्रवाई हुई, उनमें बाबू पुरवा के तत्कालीन क्षेत्राधिकारी अब्दुल समद, किदवईनगर के तत्कालीन थानाध्यक्ष रिषिकांत शुक्ला, तत्कालीन उपनिरीक्षक त्रिलोकी सिंह, तत्कालीन कांस्टेबल छोटे सिंह यादव, विनोद मिश्र और मेहरबान सिंह यादव हैं।
क्या था पूरा मामला
तत्कालीन भाजपा विधायक व मौजूदा विधान परिषद सदस्य सलिल विश्नोई ने बताया कि 2004 में 12 से 14 घंटे बिजली कटौती हो रही थी। उसके विरोध में हमारी पार्टी ने आंदोलन किया था। उस आंदोलन में हम तत्कालीन मुख्यमंत्री का पुतला फूंकने जा रहे थे तो तो हमारे ऊपर 50 से ज्यादा पुलिसकर्मियों ने बर्बर लाठीचार्ज किया। हम बेहोश हो गए। हमारे पैर में कई फ्रैक्चर हुए। हमारी पार्टी के लोग हमें स्ट्रेचर पर लादकर तत्कालीन मुख्यमंत्री और राज्यपाल के यहां लेकर गए। थाने में उस वक्त हमारी रिपोर्ट नहीं लिखी गई थी। तब हमने अपनी पीड़ा विधानसभा अध्यक्ष के समक्ष उठाई। विधानसभा अध्यक्ष ने हमारी शिकायत को विशेषाधिकार समिति को सौंप दिया। विशेषाधिकार समिति ने डेढ़ साल तक मौके का परीक्षण किया। साक्ष्यों और गवाहों का परीक्षण किया। उसके बाद सर्वसम्मति से दोषियों को दण्डित करने का निर्णय किया। उस विशेषाधिकार समिति में सभी दलों के सदस्य होते हैं। विशेषाधिकार समिति की सिफारिश पर आज दोषियों को दण्डित किया गया है। रही बात अखिलेश यादव के विरोध की तो अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी का दोषियों और अपराधियों को बचाने का चरित्र रहा है। आज भी उनका यह आचरण देखने को मिला। हालांकि अखिलेश यादव बहुत दिनों तक विधायकों की आवाज दबा नहीं पाएंगे।
सौजन्य से सिंडिकेट फीड
टिप्पणियाँ