बाघों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए बनाई गई नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी क्या बाघों की मौत के आंकड़ा छिपा रही है? एनटीसीए की वेबसाइट को देखकर ये कहा जा रहा है कि उत्तराखंड में जनवरी से अबतक तीन टाइगर्स की मौत का आंकड़ा वहां दर्ज नहीं किया गया, जबकि 24 घंटे के भीतर बाघ की मौत और उसकी प्रारंभिक वजह दर्ज करना जरूरी होता है।
उत्तराखंड में जनवरी से अबतक 6 बाघों की मौत विभिन्न कारणों से हुई है, लेकिन एनटीसीए की वेबसाइट पर केवल तीन बाघों की मौत का जिक्र किया गया है। रामनगर फॉरेस्ट डिवीजन में कालाढूंगी रेंज में 24 जनवरी को बाघ की मौत हुई थी। अल्मोड़ा जिले में जौरासी रेंज में 11 फरवरी को बाघिन के मौत की सूचना एनटीसीए की वेबसाइट पर दर्ज नहीं है। इसी तरह दो दिन पहले भी तराई क्षेत्र में मिले बाघ के शव की जानकारी दर्ज नहीं है।
एनटीसीए की वेबसाइट पर बाघ की मौत और बाघ के अंगों की बरामदगी, तिथि, राज्य, नर-मादा, आयु, स्थान, टाइगर रिजर्व अथवा जंगल समेत अन्य सूचनाओं को दर्ज किया जाना तय है। ये सभी सूचनाएं घटना और पोस्टमार्टम के तुरंत बाद यानी 24 घंटे के भीतर दर्ज करना जरूरी है। इसके जरिए ही देश और दुनिया को भारत के बाघों के विषय में हर गतिविधि की जानकारी मिलती है, लेकिन उत्तराखंड के तीन केस दर्ज नहीं होने से एनटीसीए की कार्यप्रणाली पर सवाल उठ रहे हैं। एक आशंका ये भी जताई जा रही है कि कहीं उत्तराखंड से ही विधिवत जानकारी उन्हें नहीं दी गई हो। ऐसा इसलिए भी किया जाता है कि बाघों की मौत का आंकड़ा यदि ज्यादा होता है तो वन्यजीव विभाग को एनटीसीए को जवाब भी देना पड़ता है।
क्या कहते हैं प्रमुख वन्यजीव प्रतिपालक
एनटीसीए की वेबसाइट पर बाघों के मौत की सूचना दर्ज नहीं होने पर उत्तराखंड के प्रमुख वन्यजीव प्रतिपालक डॉ समीर सिन्हा का कहना है कि यह सूचना मीडिया के माध्यम से उन्हें मिली है, इस बारे में एनटीसीए से संपर्क किया जा रहा है।
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