अरुणाचल प्रदेश के ईटानगर में रहने वाली फ्लोरिना देउरी पहले जब गुवाहाटी जाती थीं तो सड़क मार्ग से उन्हें कम से कम 7-8 घंटे लगते थे, लेकिन अब ईटानगर रेल से सीधा जुड़ गया है। लिहाजा, फ्लोरिना को गुवाहाटी से ईटानगर पहुंचने में अब केवल 4-5 घंटे लगते हैं। पिछले कुछ सालों में उत्तर-पूर्व में रेल नेटवर्क तेजी से बढ़ा है। चीन से सटी सीमा पर तो इस दिशा में बहुत तेजी से काम हुआ है। इसलिए पहले की तुलना में अब अरुणाचल प्रदेश की सीमाओं तक सैन्य साजोसामान पहुंचाने में आधा समय ही लगता है। रेलवे अब भारत की हर उस सीमा के पास तक पहुंचने की कोशिश में है, जहां चीन अपनी नापाक नीयत रखता है। चाहे वह सिक्किम का सीमाई इलाका हो, अरुणाचल के बर्फीले पहाड़ हों या फिर उत्तराखंड की सीमाएं हों। ऐसा नहीं है कि भारत में ही रेलगाड़ी सैनिकों और हथियारों की आपूर्ति से लेकर बड़ी-बड़ी मिसाइलें दागने के लिए काम में लाई जाते हो, बल्कि दुनिया के बहुत से देशों ने बड़े-बड़े युद्ध केवल रेलवे के भरोसे जीती भी हैं।
रक्षा विशेषज्ञ मेजर (सेवानिवृत्त) अमित बंसल ने बताया कि भारत की रक्षा तैयारियों में पिछले 200 सालों में भारतीय रेल देश की जीवन रेखा के रूप में उभरी है। रक्षा तैयारियों में इसका बहुत महत्व है। पहला महत्व, यह तेजी से सीमांत इलाकों में सेना, सैन्य उपकरण, रसद और अन्य वस्तुएं पहुंचाती है। जितना समय रेल से एक रेजिमेंट को सीमांत इलाकों में पहुंचने में लगता है, सड़क मार्ग से उसका तीन गुना समय लगता है। इससे पता चलता है कि रेल प्रणाली कितनी जरूरी है, इसके बिना हमारी रक्षा तैयारियां कितनी अधूरी हैं।
दूसरा महत्व, रेलवे लंबी दूरी की मिसाइलों के वाहक के तौर पर काम करती है। यानी जिन बड़ी-बड़ी मिसाइलों को ट्रकों या अन्य वाहनों से लाना और ले जाना मुश्किल होता है, उन्हें रेल द्वारा न सिर्फ आसानी से ढोया जा सकता है, बलिक रेल से दागा भी जा सकता है। आज का युग मिसाइलों का युग है और ऐसे में भारतीय रेल का महत्व और अधिक हो जाता है। इसलिए रेल मंत्रालय लगातार सीमाओं पर रेल मार्ग बिछाने के काम में लगा हुआ है।
भारत से लगी तिब्बत की सीमाओं पर उसने दो रेल मार्ग बना लिए हैं। इनके जरिए वह पीएलए के सैनिकों को तेजी से रसद और हथियारों की आपूर्ति कर सकता है। इसे देखते हुए भारतीय सेना ने भी देश के भीतर चार रेल मार्ग बनाने की योजना बनाई है। इसके तहत चीन से सटी लगभग सभी सीमाओं को रेलवे से जोड़ा जाना है। अरुणाचल प्रदेश के तवांग को सीधा रेल मार्ग से जोड़ने का काम चल रहा है।
1962 में चीन के साथ जब युद्ध हुआ था, तब भारतीय सैनिक उत्तर-पूर्व के राज्य अरुणाचल प्रदेश से लगी सीमाओं पर बिना रसद और हथियारों के लड़ते-लड़ते शहीद हुए थे। उस समय अगर इन इलाकों तक रेल मार्ग होता तो शायद भारतीय सैनिकों की स्थिति बहुत बेहतर होती। इसका प्रमाण 1971 के युद्ध में मिल गया, जब रेलवे के लॉजिस्टिक और हथियार आपूर्ति की वजह से भारतीय सैनिक बहुत तेजी से पश्चिम से पूर्वी सीमा पर पहुंचे और अपने पराक्रम के दम पर बांग्लादेश सीमा पर 90 हजार से अधिक पाकिस्तानी सैनिकों को आत्मसमर्पण के लिए विवश किया। इस निर्णायक युद्ध की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी रेलवे थी। युद्ध के दौरान सैनिकों समेत बाकी सेना के साजोसामान रेलवे से आ-जा रहे थे। इंडिया रेलवे इंजीनियरिंग टेरिटोरियल आर्मी यूनिट के जवानों ने उस समय पाकिस्तानी सेना द्वारा बम से किए जा रहे हमलों के बीच ट्रेनें चलाई थीं। इसको देखते हुए ऐसे ही एक जांबाज ट्रेन चालक दुर्गा शंकर को सेना के वीर चक्र से सम्मानित भी किया गया था।
किसी भी देश के रक्षा तंत्र में रेलवे की भूमिका को देखते हुए ही चीन लगातार सीमाओं पर अपना रेल नेटवर्क मजबूत कर रहा है। भारत से लगी तिब्बत की सीमाओं पर उसने दो रेल मार्ग बना लिए हैं। इनके जरिए वह पीएलए के सैनिकों को तेजी से रसद और हथियारों की आपूर्ति कर सकता है। इसे देखते हुए भारतीय सेना ने भी देश के भीतर चार रेल मार्ग बनाने की योजना बनाई है। इसके तहत चीन से सटी लगभग सभी सीमाओं को रेलवे से जोड़ा जाना है। अरुणाचल प्रदेश के तवांग को सीधा रेल मार्ग से जोड़ने का काम चल रहा है। तवांग पर चीन अपना दावा जताता रहा है। यह रेल मार्ग लगभग 378 किलोमीटर लंबा होगा, जिसमें मिसामारी-तेंगा और तवांग को जोड़ा जाएगा। इसी तरह, 497 किलोमीटर लंबे बिलासपुर-मनाली-लेह मार्ग को भी 2025 तक रेलवे से जोड़ने का लक्ष्य है।
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