गत दिनों मेरठ स्थित चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के नेताजी सुभाष चंद्र बोस प्रेक्षागृह में मकर संक्रांति के अवसर पर एक कार्यक्रम का आयोजन हुआ। मुख्य वक्ता थे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख श्री स्वांत रंजन। उन्होंने कहा कि भारत उत्सवों का देश है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी उत्सव मनाता है। उनमें से एक यह मकर संक्रांति उत्सव भी है। क्रांति नहीं, सम्यक क्रांति का उत्सव है मकर संक्रांति। उन्होंने कहा कि भारत दुनिया में एक महाशक्ति के रूप में उभर रहा है। चाहे आर्थिक रूप से हो, विज्ञान एवं तकनीकी की दृष्टि से आधारभूत ढांचे को स्थापित करने के रूप में या फिर आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से।
आज हममें दुनिया को नेतृत्व देने की क्षमता विकसित हुई है। हमारे गौरवशाली अतीत को विदेशी आक्रांताओं द्वारा मिटाने के अनेक प्रयास किए गए। षड्यंत्रों के तहत गलत इतिहास लिखा एवं पढ़ाया गया। हमें कहा गया कि भारत तो अनपढ़ एवं निरक्षरों का देश है, जबकि अंग्रेजों के आने से पूर्व भारत में 5,00,000 विद्यालय थे, जो स्वायत्त रूप से संचालित किए जाते थे, जिन्हें शासन द्वारा कोई भी आर्थिक सहयोग प्रदान नहीं किया जाता था और इन विद्यालयों में सभी जाति-वर्गों के छात्र पढ़ते एवं शिक्षक पढ़ाते थे।
सामाजिक समरसता हमारी संस्कृति की पहचान रही है। उनका कहना था कि समय-समय पर भारत में हुए सामाजिक एवं भक्ति आंदोलनों ने भारत की एकरूपता एवं आत्मा को जीवित रखा। भारत के ऐसे अनेक महान व्यक्तियों, वैज्ञानिकों एवं समाज के नेतृत्वकर्ताओं के योगदान को भुलाने का षड्यंत्र रचा गया। उन्होंने जगदीश चंद्र बोस, राजा सुहेलदेव के योगदान के बारे में विस्तार से बताया।
कार्यक्रम की अध्यक्ष एवं विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. संगीता शुक्ला ने कहा कि सूर्य के उत्तरायण में प्रवेश करने पर पूरे देश में मकर संक्रांति का पर्व अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। कार्यक्रम का संचालन मनीष एवं महेंद्र सिंह ने किया। अंत में सभी ने साथ बैठकर खिचड़ी के रूप में प्रसाद ग्रहण किया।
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