पुणे। स्वतंत्रता सेनानियों के एक गांव के लोगों ने स्वच्छता अभियान को व्यावहारिक रूप दिया था। राज्य और केंद्र से इस गांव को पुरस्कार भी मिला था। अब इस गांव ने एक और अनूठी पहल की है। गांव के मंदिर से ज्यों ही शाम सात बजे सायरन बजता है, हर छोटा-बड़ा अपने मोबाइल फोन, टीवी, वीडियो यहां तक कि लैपटॉप भी बंद कर देता है। बच्चे पढ़ाई में लग जाते हैं। हर कोई घरेलू या धार्मिक चर्चा में व्यस्त हो जाता है और आठ बजे पुनः सायरन बजता है, तभी घरों के टीवी और मोबाइल ऑन होते हैं।
महाराष्ट्र के सांगली जिले में तीन हजार से अधिक की आबादी वाले मोहिते वडगांव में डिजिटल डिटॉक्स की ये गतिविधि सफलता की ओर है। गांव के ज्यादातर बच्चे अंग्रेजी मीडियम के स्कूलों की ओर जा रहे हैं। साथ ही कोरोना काल में इसका असर बच्चों की पढ़ाई पर पड़ा। बच्चों की शिक्षा के प्रति रुचि कम होने लगी।
इस पर सरपंच विजय मोहिते ने 14 अगस्त को महिलाओं के साथ बैठक की। महिलाओं ने बच्चों की पढ़ाई का विषय रखा। सर्वसम्मति से बच्चों को उनके भविष्य के बारे में सोचकर पढ़ने के लिए रोजाना डेढ़ घंटे का समय निर्धारित किया गया।
मोहिते वडगांव स्वतंत्रता सेनानियों का कस्बा है। स्वतंत्रता संग्राम में इस गांव के लोगों का बड़ा योगदान रहा है, साथ ही देश के अमृत महोत्सव वर्ष के अवसर पर मोहिते वडगांव द्वारा यह क्रांतिकारी कदम उठाया गया है। खास बात यह कि इस कस्बे में निन्यानवे प्रतिशत लोगों का उपनाम मोहिते है। मोहिते वडगांव में डेढ़ सौ बच्चे प्राइमरी स्कूल और करीब पांच सौ बच्चे सेकेंडरी स्कूल में पढ़ते हैं। इन बच्चों के पढ़ाई करने के लिए रोजाना डेढ़ घंटे का समय निर्धारित किया गया है।
फैसले का पालन कड़ाई से होता है
सामूहिक रूप से शुरू की गई इस अनूठी पहल का पालन भी पंचायत द्वारा कड़ाई के साथ किया जा रहा है। माता-पिता ध्यान रखेंगे कि इस दौरान बच्चे घर से बाहर न दिखें। आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, शिक्षक और ग्राम पंचायत सदस्यों को भी जिम्मेदारियां सौंपी गई हैं। अगर इस दौरान कोई बच्चा घर के बाहर पाया जाता है तो उसे पढ़ने की याद दिलाई जाती है। इससे बच्चों में पढ़ाई के प्रति रुचि पैदा हो रही है।
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