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संसार में सनातन संस्कृति का प्रसार

सनातन संस्कृति को फैलाने के साथ ही यह संस्था शिक्षा, संस्कार, रोजगार और सेवा के अनगिनत प्रकल्पों के माध्यम से समाज को एकसूत्र में बांध रही है

by अरुण कुमार सिंह
Jan 13, 2023, 09:00 am IST
in भारत, धर्म-संस्कृति
लॉस एंजिल्स का अक्षरधाम मंदिर

लॉस एंजिल्स का अक्षरधाम मंदिर

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आज स्वामिनारायण संस्था विश्व के 55 देशों में पहुंच गई है। सनातन संस्कृति को फैलाने के साथ ही यह संस्था शिक्षा, संस्कार, रोजगार और सेवा के अनगिनत प्रकल्पों के माध्यम से समाज को एकसूत्र में बांध रही है

यह किसी चमत्कार से कम नहीं है कि गुजरात के एक गांव से आरम्भ हुई स्वामिनारायण संस्था आज वैश्विक हो चुकी है। इसका पूरा नाम है—बोचासणवासी अक्षरपुरुषोत्तम स्वामिनारायण संस्था (बी.ए.पी.एस.)। गुजरात में आणंद के पास एक गांव है बोचासण। यहीं 5 जून, 1907 को शास्त्री जी महाराज (प्रमुख स्वामी जी महाराज के गुरु) ने इस संस्था की नींव रखी थी। आज इस संस्था के साथ विश्वभर में लगभग 25,00,000 लोग प्रत्यक्ष और करोड़ों लोग अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हैं। यह संस्था सनातन धर्म और संस्कृति को दुनिया में पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। यहां तक कि मुस्लिम देशों में भी वहां के शासकों के सहयोग से मंदिरों का निर्माण करवा रही है। बता दें कि इस समय आबूधाबी में स्वामिनारायण मंदिर बन रहा है।

एक मुस्लिम देश में मंदिर बनाना कैसे संभव हुआ? इस संबंध में बी.ए.पी.एस. के मीडिया प्रभारी स्वामी ज्ञानानंद जी महाराज का उत्तर बहुत ही रोचक है। उन्होंने बताया कि मानवता के प्रति प्रमुख स्वामी जी महाराज के समर्पण को देखते हुए स्वयं आबूधाबी की सरकार ने मंदिर बनाने का आग्रह किया था। इसके बाद आवश्यक कार्रवाई पूरी कर मंदिर बनाया जा रहा है और यह कार्य शीघ्र ही पूरा होने वाला है। अब तक इस संस्था ने भारत सहित दुनिया के 55 देशों में 1,231 से अधिक मंदिर बनवाए हैं। कुछ निर्माणाधीन हैं। ये मंदिर भारतीय संस्कृति का प्रसार तो करते ही हैं, साथ ही सामाजिक कार्य भी करते हैं।

केवल धर्म ही नहीं, बल्कि मानवता की सेवा के लिए भी यह संस्था सदैव आगे रहती है। कोरोना काल में इस संस्था ने अपने सारे संसाधनों को लोगों की सेवा में लगा दिया था। ज्ञानानंद जी के अनुसार संस्था में दो प्रकार के स्वयंसेवक हैं— संत (त्यागाश्रमी) और हरिभक्त (गृहस्थ)। ये सभी आपदा के समय अपने गुरु की आज्ञा से नि:स्वार्थ भाव से सेवा में जुट जाते हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, संस्कार, आयुर्वेद, व्यसन-मुक्ति, पर्यावरण, दहेज निषेध, साक्षरता, जनजातियों के विकास आदि कार्यों से यह संस्था सामाजिक क्रांति ला रही है। संस्था द्वारा 20,000 सत्संग मंडल, बाल संस्कार मंडल, युवा मंडल और महिला मंडल भी चलाए जाते हैं। इसके साथ ही 5,000 सत्संग केंद्र हैं।

स्वामी ज्ञानानंद जी कहते हैं, ‘‘विश्वास, एकता और नि:स्वार्थ सेवा के आदर्शों को बढ़ावा देना ही संस्था के मुख्य लक्ष्य हैं। संस्था सत्संग के साथ-साथ नि:स्वार्थ भाव से विश्वभर में 162 से अधिक प्रकल्पों का संचालन कर रही है। इनमें मुख्य हैं- मानव उत्कर्ष, नारी उत्थान, जनजाति समाज का सर्वांगीण विकास, बाल-युवा संस्कार, आपदा राहत कार्य, स्वास्थ्य और शैक्षणिक सेवाएं आदि। इन प्रकल्पों ने आम लोगों के जीवन पर एक अमिट छाप छोड़ी है। प्रमुख स्वामी जी महाराज द्वारा दिए गए सूत्र ‘दूसरों की भलाई में ही हमारी भलाई है’ को ध्यान में रखते हुए संस्था ने विश्व के हर तबके के व्यक्ति को स्पर्श किया है।’’

प्रमुख स्वामी जी महाराज का चमत्कारी व्यक्तित्व

वडोदरा जिले में एक गांव है चाणसद। यहीं 7 दिसंबर, 1921 को प्रमुख स्वामी जी महाराज का प्राकट्य हुआ। बचपन में इनका नाम था शांतिलाल। माता दीवाली बा और पिता मोतीभाई सत्संग-प्रेमी थे। इस कारण उनके घर संतों का आगमन होता रहता था। अभी शांतिलाल कुछ ही महीने के थे कि एक दिन शास्त्री जी महाराज उनके घर पहुंचे। उन्होंने बालक शांतिलाल को आशीर्वाद दिया और उनके माता-पिता से कहा कि यह हमारा है। हमें दे दीजिएगा। कुछ वर्ष बाद ऐसा ही हुआ। 7 नवंबर, 1939 को उन्होंने गृहत्याग कर दिया और साधु बनने के लिए निकल पड़े। 22 दिसंबर, 1939 को अमदाबाद में शास्त्रीजी महाराज ने शांतिलाल को प्राथमिक पार्षदी दीक्षा देकर 10 जनवरी, 1940 को गोंडल में भागवती दीक्षा दी। फलस्वरूप विश्व को नारायणस्वरूपदास स्वामी की भेंट मिली। मात्र दस वर्ष में ही ये अपने गुरु शास्त्रीजी महाराज के प्रिय बन गए। 1950 में इन्हें इस संस्था का प्रमुख बनाया गया। इस तरह इन्हें प्रमुख स्वामी जी महाराज के रूप में जाना जाने लगा। उन्होंने अपनी आध्यात्मिक आभा से दुनिया को प्रभावित किया। उन्होंने 55 से अधिक देशों की यात्रा की और वहां मंदिर बनवाए।

संस्थापक और शिष्य परंपरा

स्वामिनारायण संप्रदाय के संस्थापक हैं भगवान स्वामिनारायण। इनका प्रादुर्भाव अयोध्या के पास छपिया नामक गांव में 3 अप्रैल, 1781 को हुआ था। संन्यास से पूर्व इनका नाम था घनश्याम पांडे। इन्होंने मात्र 11 वर्ष की आयु में घर छोड़ दिया था। इसके बाद हिमालय और अन्य स्थानों पर कठोर तपस्या की। बाद में ये घूमते-घूमते सौराष्टÑ (गुजरात) पहुंचे। यहीं उन्होंने इस संप्रदाय की नींव रखी। 1830 में उन्होंने इस धरा को छोड़ दिया। उनके बाद इस संप्रदाय को गुणातितानंद जी स्वामी, भगतजी महाराज, शास्त्रीजी महाराज, योगीजी महाराज और प्रमुख स्वामी जी महाराज का मार्गदर्शन मिला। अभी इसके प्रमुख हैं- महंत स्वामी जी महाराज।

अवश्य जाएं अक्षरधाम मंदिर

दिल्ली में ‘अक्षरधाम’ के नाम से एक मेट्रो स्टेशन है। इससे कुछ ही दूरी पर अक्षरधाम मंदिर स्थित है। श्वेत संगमरमर और गुलाबी पत्थरों से निर्मित इस मंदिर की भव्यता देखते ही बनती है। विशेष बात यह है कि इस मंदिर के निर्माण में कहीं भी लोहे का प्रयोग नहीं किया गया है। 100 एकड़ में फैले इस मंदिर में प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु आते हैं। यहां आने वाले हर व्यक्ति को भारतीय संस्कृति की अविस्मरणीय अनुभूति होती है। यहां यंत्रचालित प्रतिमाओं और आधुनिक दृश्य-श्रव्य माध्यमों द्वारा सनातन मूल्यों की अमिट प्रेरणा मिलती है। यहां 40 मिनट की एक फिल्म ‘नीलकंठ यात्रा’ भी दिखाई जाती है। यह फिल्म भगवान स्वामिनारायण के संपूर्ण जीवन को बताती है। यहां होने वाला नौकाविहार श्रद्धालुओं को आनंद देने के साथ-साथ प्राचीन भारत के बारे में भी बताता है।

सात वर्ष के प्रशिक्षण के बाद बनते हैं साधु

अमदाबाद से भावनगर की तरफ जाने पर लगभग 150 किलोमीटर की दूरी पर सारंगपुर पड़ता है। यह एक छोटा-सा गांव है। यहीं 1981 में प्रमुख स्वामी जी महाराज ने संत प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना की थी। जो भी युवा संन्यास लेकर स्वामिनारायण संस्था के माध्यम से सनातन समाज और देश की सेवा करना चाहता है, उसे सबसे पहले सारंगपुर ही जाना पड़ता है। यहां कुल मिलाकर वह सात वर्ष तक प्रशिक्षण लेता है। इस दौरान उसे अपनी दृढ़ता, सक्षमता की परीक्षा देने के साथ-साथ धर्म, ज्ञान, तप, वैराग्य, गुरु सेवा, राष्ट्र सेवा आदि का संकल्प लेना पड़ता है। जब वह इन सबमें अपने को सिद्ध कर लेता हैै, तब उसे स्वामिनारायण संस्था का साधु बनाया जाता है। यही साधु दुनियाभर में फैले अक्षरधाम मंदिरों की व्यवस्था और अन्य कार्य को संभालते हैं।

कुछ अन्य गतिविधियां
शिक्षा के क्षेत्र में इस संस्था के अनेक कार्य हैं। इसके द्वारा 17 गुरुकुल, 13 प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालय और उच्च शिक्षा के लिए पांच अध्ययन केंद्र चलाए जा रहे हैं। इनके माध्यम से आधुनिकता और आध्यात्मिकता से सुसज्जित एक ऐसी पीढ़ी तैयार हो रही है, जो दुनियाभर मेें मानव सेवा के प्रति समर्पित है। इसके अतिरिक्त इस संस्था ने गुजरात में भूकंप पीड़ितों के लिए 50 से अधिक विद्यालयों का निर्माण कराया है और बड़ी संख्या में घर बनवाए हैं। जनजाति समाज के उत्थान के लिए संस्था अनेक संगठनों को सहायता देती है।
स्वास्थ्य के क्षेत्र में यह संस्था महाराष्ट्र, गुजरात आदि राज्यों में अनेक अस्पतालों का संचालन करती है, जहां रोगियों की चिकित्सा प्राय: नि:शुल्क या रियायती दर पर होती है। इसके साथ ही संस्था के चिकित्सक गांव-गांव घूम कर लोगों के स्वास्थ्य की देखरेख करते हैं। संस्था समय-समय पर नि:शुल्क स्वास्थ्य शिविर भी आयोजित करती है।

लोगों को व्यसन से दूर करने के लिए भी संस्था अभियान चलाती है। ऐसे ही पर्यावरण के संरक्षण और समाज से दहेज को समाप्त करने के लिए संस्था के कार्यकर्ता लगातार कार्य करते हैं। इसके साथ जहां भी कोई आपदा आती है, तो संस्था से जुड़े साधक पीड़ितों की सहायता के लिए कूद पड़ते हैं।

भले ही ये सभी कार्य संस्था से जुड़े साधु और अन्य साधक करते हैं, लेकिन इनके मार्गदर्शक रहे प्रमुख स्वामी जी महाराज। हालांकि 13 अगस्त, 2016 को प्रमुख स्वामी जी महाराज अक्षरनिवासी (निधन) हो चुके हैं, लेकिन यह संस्था उनके दिखाए मार्ग पर ही चल रही है। इस समय यह अपने मार्गदर्शक प्रमुख स्वामी जी महाराज का शताब्दी महोत्सव मना रही है। प्रमुख स्वामी जी महाराज के शताब्दी वर्ष के समापन पर अमदाबाद में 14 दिसंबर, 2022 से एक महोत्सव चल रहा है। इसका समापन 15 जनवरी, 2023 को होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 14 दिसंबर को स्वामिनारायण संस्था के महंत स्वामी जी महाराज (वर्तमान में यही इस संस्था के गुरु हैं) के सान्निध्य में महोत्सव का उद्घाटन किया। इस अवसर पर नरेंद्र मोदी ने कहा, ‘‘प्रमुख स्वामी जी महाराज मेरे पिता तुल्य थे। 1981 में पहली बार व्यक्तिगत रूप से स्वामी जी का सत्संग हुआ था। स्वामी जी ने मंदिरों द्वारा अध्यात्म और विज्ञान का अद्भुत संगम दर्शाया है। उन्होंने जाति-पाति, अमीर, गरीब जैसे भेदों को समाप्त कर दिया।’’

प्रमुख स्वामी जी महाराज की आभा ही ऐसी थी कि एक बार वे जहां चले जाते थे, वहां सामाजिक और आध्यात्मिक परिवर्तन की नई धारा बहने लगती थी। यही कारण है कि उनके मार्गदर्शन में ‘बोचासणवासी अक्षरपुरुषोत्तम स्वामिनारायण संस्था’ का संसार में विस्तार हुआ और इसके साथ ही दुनिया के लोगों ने सनातन धर्म और संस्कृति के एक नए रूप को देखा। 

Topics: स्वामी ज्ञानानंदमुस्लिम देशआबूधाबी में स्वामिनारायण मंदिरसनातन धर्म और संस्कृतिस्वामिनारायण संप्रदाय
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