कवि अटल की याद में पाञ्चजन्य ने उनके जन्मदिवस की पूर्व संध्या पर एक कवि सम्मेलन का आयोजन किया जिसमें देश के विभिन्न प्रांतों से आए कवियों ने अपनी कविताओं के जरिए उन्हें श्रद्धांजलि दी
सुशासन दिवस की पूर्व संध्या पर गोवा के नोवोटेल रिसॉर्ट में आयोजित पाञ्चजन्य के सागर मंथन-सुशासन संवाद कार्यक्रम में श्रोताओं ने कवि सम्मेलन में वीर रस, श्रृंगार रस और हास्य रस की कविताओं का आनंद लिया। एक के बाद एक कवियों ने लगातार समा बंधाए रखा। कवि सम्मेलन का संचालन कविवर राधाकांत ने किया। डॉ. मनीष पाण्डेय ने अपनी हास्य कविताओं से श्रोताओं को सराबोर किया।
कवि सम्मेलन की शुरुआत करते हुए मुंबई से आए गीतकार चरणजीत चरण ने एक गीत अटल जी को समर्पित करते हुए सुनाया कि-
तुम थे रंग, अबीर तुम्हीं थे, नवयुग की तस्वीर तुम्हीं थे
तुम थे सच्चे साधक भारत माता के, जाऊं तुम पर कोटि-कोटि बलिहारी जी
याद बहुत आओगे, अटल बिहारी जी
पीरों और फकीरों जैसा, जीवन जिया कबीरों जैसा
मगर तुम्हारी वाणी में था, वैभव सौ जागीरों जैसा
सारे लफ्ज खनकते ऐसे, मंदिर में घंटी हो जैसे
जबसे तुमको पढ़ा-लिखा है, मत पूछो, कविताओं में कैसी चढ़ी खुमारी जी
याद बहुत आओगे, अटल बिहारी जी।
दिल्ली से आई कवियित्री ज्योति त्रिपाठी ने अपनी ओजस्वी वाणी से वीर रस की कविताएं सुना कर श्रोताओं कतो अपनी मुरीद बना लिया। सुश्री ज्योति ने इन पंक्तियों से शुरूआत की-
पार्थ अभी रीता नहीं, शौर्य शक्ति का कोश
धनुष उठाओ, मैं करूं, पाञ्चजन्य उद्घोष
राष्ट्रभाव से भरी कविता सुनाते हुए सुश्री ज्योति ने सुनाया,
बुलंदी पर रहे भारत, यही अरमान सबका है
तिरंगे पर जो आंच आए, तो फिर अपमान सबका है
जरा सा स्वार्थ सत्ता का, विरोधी बन रहे हो क्यों
भला क्यों भूल जाते हो, ये हिंदुस्थान सबका है।
अटल जी के साथ मंचों पर कविता सुना चुके उत्तर प्रदेश के डॉ. ध्रुवेंद्र भदौरिया ने अटल जी को श्रद्धांजलि देते हुए कविता पढ़ी कि-
क्रूर काल के कुटिल करों से कौन मुसाफिर छला गया
भारत माता के मंदिर में, मणिदीप जला कर चला गया
धरती बोली यह कौन गया, जो ले कविता की कला गया
तब आसमान फिर यूं बोला, वो अटल बिहारी चला गया।
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