पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर होने वाला अत्याचार थमने का नाम नहीं ले रहा है। आए दिन पाकिस्तान से सिखों पर फिर से अत्याचार की घटनाए सामने आती रहती है। ताजा मामला लाहौर से सामने आया है जहां मुस्लिम कट्टरपंथियों ने गुरुद्वारा शहीद गंज भाई तारु सिंह को मस्जिद बताकर ताला जड़ दिया है। लाहौर के मुस्लिम कट्टरपंथियों के साथ पाकिस्तान की इवेक्यू ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड (ETPB) ने मिलकर गुरुद्वारा को सिख समुदाय के लिए बंद कर दिया है। जिससे स्थानीय सिखों में जबरदस्त आक्रोश है।
2 साल पहले भी घटी थी घटना
बता दें कि यह पहली बार नहीं हुआ है इससे पहले भी गुरुद्वारे को मस्जिद बताने वाली घटना 2 साल पहले घटी थी। तब भी इसी ऐतिहासिक गुरुद्वारे को मस्जिद बताया गया था। लेकिन उस समय भारत की तरफ से इस घटना को लेकर पाकिस्तान के सामने सख्त ऐतराज जताया गया था। भारत ने पाकिस्तान से मामले की जांच करने और तत्काल सुधार करने वाले कदम उठाने की मांग कर पाकिस्तान से अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों की सुरक्षा और भलाई के साथ-साथ उनके धार्मिक अधिकारों और सांस्कृतिक धरोहरों की देखभाल करने की भी अपील की थी।
भाई तारू सिंह के शहीद स्थल पर बना है गुरुद्वारा
यह गुरुद्वारा भाई तारु सिंह के शहीद स्थल पर बना है। यहां पर 1726 में मुगल काल के दौरान वायसराय जकारिया खान ने इस्लाम न स्वीकार करने पर भाई तारु सिंह का सिर काट दिया था। पाकिस्तान में कई ऐतिहासिक सिख गुरुद्वारे ऐसे हैं जो या तो जर्जर हालात में हैं या फिर भू-माफिया और स्थानीय लोगों के कब्जे में हैं। हिंदू और सिखों को टॉर्चर किया जाता है।
कौन है भाई तारू सिंह
पटियाला के पंजाब विश्वविद्यालय की सिख एनसाइक्लोपीडिया के अनुसार अमृतसर के फुला गांव में भाई तारु सिंह का जन्म एक संधु जाट परिवार में हुआ था। उस समय सिख मुगलों के खिलाफ युद्ध लड़ रहे थे।
1 जुलाई, 1745 को इस्लाम कबूल नहीं करने पर भाई तारु सिंह का सिर उखाड़ दिया गया था। उन्होंने इस्लामी आक्रांताओं के सामने अपने केश कटवाने से साफ इनकार कर दिया था। इससे गुस्साए पंजाब के मुगल सरदार जकरिया खान ने उन्हें बहुत यातनाएं दीं।
भाई तारु सिंह ने देश, सिख धर्म और खालसा पंथ के लिए अपने प्राण तक बलिदान कर दिए। गुरुद्वारा शहीद गंज भाई तारु सिंह लाहौर के नौलखा बाजार में है। उन्हें आज भी बलिदानी के रूप में याद किया जाता है।
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