नेपाल में संसद के निचले सदन के लिए गत 20 नवम्बर चुनाव संपन्न हुए थे। इन चुनावों के अभी तक आए नतीजे प्रधानमंत्री देउबा की नेपाली कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व वाला सत्तारूढ़ गठबंधन स्पष्ट जीत की तरफ बढ़ता दिख रहा है। प्राप्त समाचारों के अनुसार, यह गठबंधन अभी तक घोषित 118 सीटों में से 64 सीटें जीत चुका है। माना जा रहा है कि सत्ता की कमान नेपाली कांग्रेस के हाथ आ जाएगी।
उल्लेखनीय है कि संसद में 275 सीटों वाले निचले सदन की 165 सीटों पर चुनाव प्रत्यक्ष मतदान के माध्यम से संपन्न कराए गए हैं। बाकी की 110 सीटों को आनुपातिक चुनाव प्रणाली के माध्यम से भरा जाएगा। इस अनुसार, बहुमत प्राप्त करने के लिए किसी दल अथवा गठबंधन को 138 सीटें जीतनी होंगी।
देखने वाली बात यह है कि स्पष्ट बहुमत पाने के बाद अगर देउबा सरकार की नई पारी शुरू करते हैं तो वह ऐतिहासिक और आध्यात्मिक रूप से निकट भारत के प्रति क्या नीतियां अपनाएंगे
आंकड़ों की नजर से सोमवार यानी 21 नवम्बर को शुरू हुई मतगणना में अभी तक नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा की पार्टी नेपाली कांग्रेस के नेतृत्व वाला गठबंधन बहुमत की तरफ बढ़ता जा रहा है। इस सत्तारूढ़ गठबंधन द्वारा अभी तक जीतीं 118 में 64 सीटें महत्वपूर्ण मानी जा रही हैं।
बता दें कि प्रत्यक्ष चुनाव के अंतर्गत नेपाली कांग्रेस 39 सीटें जीत चुकी है और यह सबसे ज्यादा सीटें जीतने वाली पार्टी के तौर पर सामने आ रही है। जबकि सत्तारूढ़ गठबंधन में साझेदारी कर रही सीपीएन माओइस्ट सेंटर तथा सीपीएन यूनीफाइड सोशलिस्ट पार्टी अभी तक क्रमश: 12 और 10 सीटें जीत चुकी हैं। वहीं लोकतांत्रिक समाजवादी और राष्ट्रीय जनमोर्चा को क्रमश: दो तथा एक सीट मिली है। ये दल भी सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार, पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के नेतृत्व वाले गठबंधन सीपीएन-यूएमएल को अभी तक 35 सीटें मिलना दिखाता है कि भले उन्हें शायद बहुमत न मिले, लेकिन वे संसद में एक दमदार आवाज साबित हो सकते हैं। देखने वाली बात यह भी है कि ओली की पार्टी सीपीएन-यूएमएल को अपने दम पर 29 सीटें प्राप्त हो चुकी हैं। जबकि सीपीएन-यूएमएल की गठबंधन साझेदारी वाली राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी तथा जनता समाजवादी पार्टी को अभी तक क्रमश: चार व दो सीटें मिली हैं।
एक और दिलचस्प तथ्य यह भी है कि नई बनी राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी को सात सीटें मिल चुकी हैं। लेकिन अभी तक लोकतंत्रराय समाजवादी पार्टी तथा जनमत पार्टी, इन दोनों मधेशी दलों ने क्रमशः दो तथा एक सीट ही जीती है। नागरिक उन्मुक्ति पार्टी को भी दो सीटें तथा जनमोर्चा और नेपाल मजदूर किसान पार्टी को एक-एक सीट पर जीत मिली है। पांच सीटों पर निर्दलीय व अन्य चुने गए हैं।
मतगणना से रुझान स्पष्ट हो चले हैं और विभिन्न दलों के वरिष्ठ नेताओं के बीच भावी सरकार के गठन को लेकर चर्चाओं के दौर शुरू हो चुके हैं, सरकार के स्वरूप को लेकर मंत्रणाओं के दौर चल रहे हैं। कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूनिफाइड मार्क्सिस्ट-लेनिनिस्ट) (सीपीएन-यूएमएल) के अध्यक्ष पूर्व प्रधानमंत्री ओली ने हाल में सीपीएन-माओवादी सेंटर के अध्यक्ष पुष्पकमल दहल प्रचंड को फोन करके बधाई दी। दोनों ही नेता प्रतिनिधि सभा के लिए चुने जा चुके हैं।
उधर पदेन प्रधानमंत्री और नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा ने भी प्रचंड और ओली को फोन पर विजय की बधाई दी है। पीटीआई एजेंसी की खबर है कि सरकार बनाने को लेकर वाताओं के इस दौर में ओली ने प्रचंड के सामने फोन पर नई सरकार के गठन हेतु एक गठबंधन बनाने का प्रस्ताव रखा है। हालांकि सूत्रों के अनुसार, प्रचंड ने अभी इस पर अपना कोई मत प्रकट नहीं किया है।
एक लंबे समय से राजनीतिक अस्थिरता से गुजर रहा आर्थिक रूप से कमजोर हो चुका नेपाल की सत्ता क्या करवट लेने वाली है, यह सवाल हर जागरूक नेपाली के मन में उठ रहा है। एक और बड़ा सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या नई सरकार चीन की चालाक चालों में उलझना पसंद करेगी या अपने पैरों पर खड़े होकर स्वाभिमान के साथ विकास की ओर देखेगी!
काठमांडु पर पिछले कुछ वक्त से बीजिंग के बढ़ते प्रभाव से इंकार नहीं किया जा सकता। वहां विभिन्न परियोजनाओं में ‘मदद’ देकर चीन कहीं अफ्रीका के गुरीब देशों की तरह नेपाल को भी अपने विस्तारवादी शिंकजे में न जकड़ ले, इस बात की आशंका वहां के चिंतनशील लोगों को सताए हुए है। काठमांडु में तो कई प्रदर्शन हो चुके हैं और चीन की जकड़ से मुक्त रहने की मांग की गई है। लेकिन हर बार सरकार किसी न किसी रूप में बीजिंग की बैसाखी पर आती दिखी है।
चीन से नेपाल को सीमा के अतिक्रमण के खतरे भी दिख चुके हैं। नेपाल के कई सीमांत गांवों में चीन ‘अपने गांव’ बसा चुका है। यह अतिक्रमण विभिन्न एजेंसियों ने उपग्रह चित्रों के माध्यम से प्रमाणित भी किया है, लेकिन बीजिंग के कथित दबाव में सरकार ने उसके विरुद्ध को कदम नहीं उठाया है। इससे उलट वह संभवत: काटमांडु में बैठे कम्युनिस्ट तत्वों के दबाव में भारत के साथ गाहे—बगाहे सीमा विवाद उठाता आ रहा है। देखने वाली बात यह है कि स्पष्ट बहुमत पाने के बाद अगर देउबा सरकार की नई पारी शुरू करते हैं तो वह ऐतिहासिक और आध्यात्मिक रूप से निकट भारत के प्रति क्या नीतियां अपनाएंगे!
A Delhi based journalist with over 25 years of experience, have traveled length & breadth of the country and been on foreign assignments too. Areas of interest include Foreign Relations, Defense, Socio-Economic issues, Diaspora, Indian Social scenarios, besides reading and watching documentaries on travel, history, geopolitics, wildlife etc.
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