कर्नाटक में मंगलुरु स्थित मस्जिद के नीचे मंदिर का ढांचा मिला है। मस्जिद प्रबंधन एक ओर पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियिम की धाराओं का हवाला दे रहा है, दूसरी ओर अदालत के अधिकार क्षेत्र को ही चुनौती दे रहा है
कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़ जिले में वाराणसी ज्ञानवापी जैसा एक मामला सामने आया है। मंगलुरु के थेनका उलीपाडी गांव में मलाली मार्केट स्थित अस्सईद अब्दुल्लाही मदनी मस्जिद को मरम्मत के नाम पर तोड़ा जा रहा था। यह सब उस समय हो रहा था, जब ज्ञानवापी पर देशभर की नजरें गड़ी हुई थीं।
मस्जिद समिति द्वारा मरम्मत के लिए जब निर्माण सामग्री अंदर लाई जा रही थी, तब इस पर स्थानीय लोगों का ध्यान गया। मलबे में मस्जिद की दीवार, खंभों और छत पर जो शिल्पकला दिखती है, वह अमूमन दक्षिण भारत के मंदिरों में पाई जाती है। यही नहीं, दीवारों को जिस तरह से रंगा गया था, उससे लगता है कि सच्चाई को छिपाने की कोशिश की गई थी। इसके लिए बाकायदा दीवार भी खड़ी की गई थी। लेकिन मलबे से झांकते भारतीय वास्तुशिल्प की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद हिंदू जागे।
विश्व हिंदू परिषद से जुड़े टी.ए. धनंजय और बी.ए. मनोज कुमार ने मस्जिद प्रबंधन से तोड़फोड़ रोकने की अपील की, पर वह नहीं माना। तब दोनों युवकों ने पुलिस प्रशासन को इसकी सूचना दी। विहिप और स्थानीय लोगों का कहना है कि जहां मस्जिद है, पहले वहां मंदिर था। विहिप, बजरंग दल सहित कई हिंदू संगठनों के विरोध के बाद स्थानीय पुलिस ने निषेधाज्ञा लागू कर मस्जिद में निर्माण कार्य पर रोक लगा दी। साथ ही, जिला प्रशासन संबंधित जमीन से जुड़े रिकॉर्ड भी खंगाल रहा है। इस बाबत वक्फ बोर्ड से भी रिकॉर्ड मांगे हैं।
पुलिस प्रशासन ने काम तो रोक दिया, लेकिन शिकायतकर्ताओं से यह भी कहा कि मस्जिद प्रबंधन के पास निर्माण कार्य कराने की अनुमति है, इसलिए अदालत के आदेश के बिना लंबे समय तक निर्माण कार्य रोका नहीं जा सकता है। लिहाजा, अगले ही दिन धनंजय और मनोज ने स्थानीय अदालत में याचिका दाखिल की, जिस पर 21 अप्रैल, 2022 को अदालत ने मस्जिद में निर्माण कार्य पर अस्थायी तौर पर रोक लगा दी। लेकिन सर्वेक्षण के लिए आयुक्त नियुक्त करने की मांग स्वीकार नहीं की थी। उच्च अदालत ने भी स्थानीय अदालत के फैसले को बरकरार रखा। लेकिन मस्जिद प्रबंधन की ओर से याचिका दाखिल करने के बाद अदालत ने आदेश सुनाया है।
केवल वक्फ ट्रिब्यूनल ही सुनवाई कर सकता है। लेकिन अदालत ने मस्जिद प्रबंधन की दलील खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि मस्जिद से जुड़ी याचिका की सुनवाई उसके अधिकार क्षेत्र में आती है। साथ ही, कहा कि अगर ज्ञानवापी मामले में भूमि विवाद मुख्य मुद्दा है, तो मलाली मस्जिद मामले में भी ढांचा और जमीन, दोनों का परीक्षण किया जाएगा।
याचिकाकर्ता धनंजय और मनोज का कहना है कि इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि मस्जिद के नीचे मंदिर का अस्तित्व है। इसलिए ज्ञानवापी मस्जिद की तरह ही मलाली मस्जिद का भी सर्वेक्षण कराया जाना चाहिए। मस्जिद सरकारी जमीन पर बनी है। इसलिए हम दोनों पुराने मंदिरों को ऐतिहासिक स्मारक घोषित करने और उसे संरक्षित करने के लिए पुरातत्व विभाग को सौंपने की मांग कर रहे हैं। उधर, मस्जिद प्रबंधन ने यह तर्क देते हुए याचिका दाखिल की कि मस्जिद वक्फ बोर्ड की जमीन पर है, इसलिए यह दीवानी अदालत के अधिकार क्षेत्र से बाहर है।
इस पर केवल वक्फ ट्रिब्यूनल ही सुनवाई कर सकता है। लेकिन अदालत ने मस्जिद प्रबंधन की दलील खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि मस्जिद से जुड़ी याचिका की सुनवाई उसके अधिकार क्षेत्र में आती है। साथ ही, कहा कि अगर ज्ञानवापी मामले में भूमि विवाद मुख्य मुद्दा है, तो मलाली मस्जिद मामले में भी ढांचा और जमीन, दोनों का परीक्षण किया जाएगा।
इसी के साथ अदालत ने मस्जिद का सर्वेक्षण करने की अनुमति भी दे दी है। मस्जिद प्रबंधन ने निचली अदालत के फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती देने की बात कही है। इस मामले की अगली सुनवाई 12 दिसंबर को होगी। बता दें कि मलाली मस्जिद 4,350 वर्ग फीट में फैली हई है। मस्जिद के बगल में एक कब्रिस्तान है।
मस्जिद प्रबंधन पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियिम, 1991 की धारा 3,4 और 6 की दुहाई दे रहा है। लेकिन उसे यह भी याद रखना चाहिए कि सर्वोच्च अदालत ने कहा है कि पूजा स्थल कानून इस बात से नहीं रोकता कि किसी मजहबी स्थल के चरित्र का पता ही न लगाया जाए।
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