उत्तराखंड निर्वाचन आयोग द्वारा जारी नई वोटर लिस्ट में एक बार फिर से राज्य में जनसंख्या असंतुलन के संकेत सामने आ रहे हैं। पिछले नौ माह में यूपी से लगे चार मैदानी जिलों में 68 हजार से ज्यादा नए वोटर बन गए हैं। ऐसा माना जा रहा है कि उनमें ज्यादातर वोटर यूपी से यहां आकर बसने वाले हैं।
उत्तराखंड के संयुक्त मुख्य निर्वाचन अधिकारी प्रताप शाह द्वारा जारी की नई मतदाता सूची में राज्य में अब कुल वोटर संख्या 8085488 हो गई है। ऐसी जानकारी दी गई है कि मतदाता सूची में 169529 नाम हटाए गए है और 111095 नाम नए जोड़े गए है। यानी करीब 58 हजार वोटर कम हो गए हैं। दिलचस्प बात ये है कि नए मतदाता यूपी से लगे मैदानी जिलों में उधम सिंह नगर में 26559, देहरादून में 23897, हरिद्वार में 18211, नैनीताल में 9611 जुड़े हैं, इसके अलावा पौड़ी जिले में 8647 वोटर बढ़ गए हैं।
जानकारी के मुताबिक वोटर ज्यादा वहीं बढ़े हैं जहां अल्पसंख्यक आबादी पहले से ही ज्यादा है। इन जिले में पहले से ही जनसंख्या असंतुलन पर बहस छिड़ी हुई थी और ताजा वोटर लिस्ट ने एक बार फिर से इस मुद्दे को हवा दे दी है। एक जानकारी ये भी सामने आई है कि इस बार निर्वाचन आयोग ने 32997 मृतक मतदाताओं को सूची से हटाया है। 15772 ऐसे मतदाता थे जिनके दो स्थानों पर नाम दर्ज थे उन्हें हटा दिया गया है। इनमे ज्यादातर वोटर पहाड़ के दस जिलों के सामने आए हैं। जो युवा वोटर नए जुड़े हैं उनमें ज्यादातर पहाड़ के नौ जिलों के हैं और 30 से 39 साल के नए 22300 वोटर्स मैदानी जिलों में सामने आए हैं। पिछले नौ माह में नए वोटर्स की संख्या 16674 है।
5 जनवरी से 30 सितंबर तक पूरे राज्य में चले अभियान में ये जानकारी भी दी गई है कि राज्य के 5679153 मतदाताओं यानी करीब सत्तर फीसदी ने आधार लिंक कर दिया है, शेष पर काम चल रहा है। यहां ये भी जानकारी है कि ज्यादातर आधार लिंक न होने वाले वोटर भी मैदानी जिलों के हैं। माना जा रहा है कि आधार लिंक जब सभी वोटर्स के हो जाएंगे तो निर्वाचन आयोग एक ही राज्य की मतदाता सूची में नाम दर्ज करने का प्रावधान लागू करेगा।
उत्तराखंड में पिछले पंद्रह सालों में मैदानी जिलों में जनसंख्या असंतुलन का मुद्दा उठ रहा है और राज्य बनने के बाद नैनीताल, उधम सिंह नगर, देहरादून, हरिद्वार में मुस्लिम आबादी तीस से पैंतीस प्रतिशत हो गई है। यूपी, बिहार से हजारों लोग यहां आकर बस गए हैं और ये भविष्य में यहां की सामाजिक, राजनीतिक विषयों को प्रभावित करेंगे। लचर भू कानून की वजह से कांग्रेस शासन काल में मुस्लिम आबादी तेजी से बढ़ती गई। जबकि पड़ोसी राज्य हिमाचल में भू कानून की वजह से आज भी दो प्रतिशत से ज्यादा नहीं बढ़ पाई है।
उत्तराखंड की धामी सरकार ने भू कानून की समीक्षा और सुधार के लिए एक समिति बनाई हुई है। साथ ही समान नागरिक संहिता के लिए भी विशेषज्ञ समिति बनाई है। पहाड़ों से आबादी पलायन कर रही है, जिसको रोकने के लिए 2017 में पलायन निवारण आयोग गठित किया गया। तेज़ी से बढ़ रहे जनसंख्या असंतुलन विषय पर राज्य के बुद्धिजीवी अपनी चिंता जाहिर कर चुके हैं कि किस तरह देवभूमि उत्तराखंड के तीर्थ स्थलों के आसपास गैर हिन्दू आबादी पांव पसार रही है।
बहरहाल धामी सरकार के आगे चुनौती है कि वो किस तरह पहाड़ से पलायन हो रही आबादी को रोके और यहां मैदानी क्षेत्र में बसने वाली मुस्लिम आबादी को भी रोक सके। इसके साथ ही जितने भी आयोग समितियां बनाई गई हैं उनकी सिफारिशों को लागू करने के लिए वातावरण तैयार करे।
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