झारखंड में पलामू के उन हिंदुओं ने स्वाभिमान दिखाते हुए आंबेडकर भवन लेने से मना कर दिया है, जिन्हें लगभग दो महीने पहले उनकी जन्मभूमि से कट्टरवादी तत्वों ने जबरन उजाड़ दिया था। प्रशासन ने उन तत्वों के विरुद्ध कोई कार्रवाई न कर हिंदुओं को दूसरी जगह बसाने का निर्णय लिया, पर यह हिंदुओं को स्वीकार नहीं है।
पाठकों को ध्यान होगा कि लगभग दो महीने पहले पलामू जिले के पांडू प्रखंड के मुरुमातु गांव के लगभग 50 हिंदू परिवारों के घरों और जमीन पर स्थानीय मुसलमानों ने जबरन कब्जा कर लिया था। गांव के मुसलमानों का कहना था कि ये हिंदू परिवार जहां रहे हैं, वह जमीन मदरसे की है। इसके बाद एक दिन बड़ी संख्या में हिंदुओं की बस्ती में मुसलमान पहुंचे और उन लोगों ने जबरन हिंदुओं को घर से निकाल दिया। इसके साथ ही उनके घरों और मंदिर को बुलडोजर से तोड़ दिया गया।
मामला जब तूल पकड़ा तो स्थानीय प्रशासन ने हिंदुओं के रहने की व्यवस्था पांडू थाने के एक पुराने और जर्जर भवन में कर दी, लेकिन प्रशासन ने आरोपियों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं की। भारी बारिश के बीच हिंदुओं को घर से निकाल दिया गया। इस कारण उन्हें बड़ी दिक्कत हुई। उनके पास न तो खाने के लिए कुछ है और न ही पहनने के लिए। जब इसकी जानकारी हिंदुत्वनिष्ठ संगठनों के कार्यकर्ताओं को तो हुई उन्होंने उनकी मदद की। इस मामले को पाञ्चजन्य ने प्रमुखता से छापा था।
इस खबर का असर देखने को मिला। झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस ने स्वत: संज्ञान लिया। इसके बाद पक्ष और विपक्ष के कई नेता उन हिंदुओं से मिलने पहुंचने लगे।
अंत में इन हिंदू परिवारों में से कुछ लोग अपनी समस्या लेकर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के पास गए। इसके बाद प्रशासन ने उन हिंदुओं को सीलदिली पंचायत के नेवरी गांव में बसाने का निर्णय लिया।
यानी प्रशासन ने हिंदुओं को उजाड़ने वालों के सामने घुटने टेक दिए। जिस प्रशासन को हिंदुओं को उजाड़ने वालों के विरुद्ध कार्रवाई करनी चाहिए थी, उसने ऐसा किया नहीं, उल्टे हिंदुओं को दूसरी जगह बसाने का निर्णय ले लिया और उनके लिए आंबेडकर आवास भी स्वीकृत कर दिया। यह निर्णय हिंदुओं को मंजूर नहीं है। इस कारण पिछले दिनों हिंदुओं ने सरकार को बता दिया है कि उन्हें आंबेडकर आवास मंजूर नहीं है।
हिंदुओं का कहना है कि भले ही वे लोग बेघर रहेंगे, लेकिन अपनी जन्मभूमि को नहीं छोड़ेंगे। इस मामले पर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कहा है, ”हेमंत सरकार कट्टरपंथी और जिहादी मुसलमानों के सामने नतमस्तक हो चुकी है। झारखंड में हिंदुओं की सुध लेने वाला कोई नहीं बचा है। इन महादलित परिवारों को बेघर करने वाले मुसलमानों पर कठोर कार्रवाई करनी चाहिए थी, लेकिन इन हिंदू परिवारों को ही और कहीं और बसाने का काम किया जा रहा है। झारखंड में सरकार हेमंत सोरेन चला रहे हैं या फिर कट्टरपंथी, यह पता ही नहीं चल रहा है?”
विश्रामपुर विधानसभा के भाजपा विधायक रामचंद्र चंद्रवंशी ने कहा है, ”झारखंड सरकार और स्थानीय प्रशासन तुष्टीकरण की वजह से इन महादलित हिंदू परिवारों को मुरुमातु में नहीं बसा पा रही है। एक तरफ तो उन्हें स्थानीय मुसलमानों ने बेघर कर दिया, दूसरी तरफ प्रशासन उन्हें दूसरी जगह जमीन भी अगर दे रही है तो मात्र 2 डिसमिल। इतने में इन गरीब परिवारों का गुजर-बसर कैसे होगा, यह भी विचार करने वाली बात है।” उन्होंने सरकार और प्रशासन से मांग की है कि इन गरीब परिवारों को वापस उनके पुराने स्थान पर ही बसाया जाना चाहिए।
इस मामले में पाञ्चजन्य ने मुसलमानों का पक्ष जानने का प्रयास किया, लेकिन संपर्क नहीं हो पाया। हालांकि पलामू के उपायुक्त आंजनेयुलू दोड्डे का कहना है कि मुरुमातु की जमीन मुसलमानों की ही है। लेकिन कुछ लोगों का कहना है कि जो लोग उस जमीन पर वर्षों से रह रहे थे, उन्हें जबरन खदेड़ना भी तो ठीक नहीं है। इसके लिए प्रशासन के जरिए रास्ता निकालना चाहिए था।
वहीं पलामू के स्थानीय हिंदू कार्यकर्ता आशीष भारद्वाज ने कहा, ”इन महादलित परिवारों की सुरक्षा और उनके जीवन—यापन की जिम्मेदारी भी सरकार को लेनी चाहिए, लेकिन सरकार की रुचि सिर्फ एक समुदाय विशेष को आगे बढ़ाने में दिखाई दे रही है।”
यह था पूरा मामला
कुंजरूकला पंचायत के अंतर्गत मुरुमातु गांव में मुसलमानों की आबादी काफी अधिक है। इसी गांव के पास टोंगरी पहाड़ी के पास काफी समय से ये परिवार रह रहे थे। जीवन-यापन के लिए ये लोग मेहनत-मजदूरी करते हैं। इनके घर खपरैल के थे। 29 अगस्त को उसी गांव के रहने वाले डॉक्टर रसूल असगर सेठ, उमद रसूल, जफर अंसारी, वार्ड सदस्य अदरु अंसारी, मुखिया इसराइल अंसारी उर्फ इसरार और राजन मियां सहित कई दबंग मुसलमानों की वजह से उन्हें बेघर होना पड़ा। इन लोगों ने हिंदुओं से हस्तलिखित सहमति पत्र पर जबरन अंगूठा लगवा लिए। बेघर हुए हिंदू परिवार रोते रहे, बिलखते रहे, लेकिन इनकी पुकार किसी ने नहीं सुनी।
दस वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। राजनीति, सामाजिक और सम-सामायिक मुद्दों पर पैनी नजर। कर्मभूमि झारखंड।
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