बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मुस्लिम तुष्टीकरण के लिए हर हद पार कर रहे हैं। उन्होंने कहा है कि राज्य के सभी सरकारी विद्यालयों में उर्दू शिक्षकों की बहाली की जाएगी। इसके अलावा वे सचिवालय में उर्दू अनुवादकों की बहाली कर रहे हैं।
एक समय बिहार में कांग्रेस के दिग्ग्ज नेता और मुख्यमंत्री रहे स्व. जगन्नाथ मिश्र को ‘मौलाना मिश्रा’ कहा जाता था। उन्होंने ही मुस्लिम तुष्टीकरण के लिए बिहार में उर्दू को द्वितीय राजभाषा का दर्जा दिया था। इसके बाद जगन्नाथ मिश्र ने संस्कृत विद्यालयों की उपेक्षा शुरू की और जमकर उर्दू विद्यालय शुरू करवाए। इसका दुष्पारिणाम यह हुआ कि बिहार में संस्कृत के बड़े—बड़े शिक्षण संस्थान बंद हो गए और दूसरी ओर उर्दू उस शिक्षण संस्थान तक पहुंच गई, जहां उसकी आवश्यकता भी नहीं थी। इसका फायदा कांग्रेस को मिला और मुसलमान उसके साथ वर्षों तक रहे। भले ही इसके कई दुष्परिणाम भी हुए, लेकिन इससे जगन्नाथ मिश्र को कोई फर्क नहीं पड़ता था।
कुछ ऐसा ही कार्य इस समय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कर रहे हैं। नीतीश कुमार जब से भाजपा को छोड़कर राजद के साथ आए हैं तब से वे लोगों को सलाह दे रहे हैं कि हर किसी को उर्दू सीखनी चाहिए। इसके अलावा वे उर्दू को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठा चुके हैं। अभी 3 नवंबर को नीतीश कुमार ने राज्य में उर्दू अनुवादकों को नियुक्ति पत्र बांटा। उस अवसर पर भी उन्होंने सबको सलाह दी कि उर्दू सीखनी चाहिए, उर्दू सीखना जरूरी है। उर्दू सीखने से ज्ञान बढ़ेगा। इतना ही नहीं, मुख्यमंत्री ने नवनियुक्त उर्दू अनुवादकों से आग्रह किया कि जहां भी रहिए, लोगों को उर्दू सिखाइए, ताकि हिंदी के बाद उर्दू भी ज्यादा से ज्यादा लोग जान सकें। सभी लोग अपना काम करते हुए एक खास समुदाय के लिए सरकार द्वारा किए गए कार्यों को लोगों तक पहुंचाइए।
यह कार्यक्रम मुख्यमंत्री सचिवालय के जन संवाद कक्ष में आयोजित था। कार्यक्रम में मुख्यमंत्री के साथ उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव, अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री जमा खान और मुख्य सचिव अमीर सुबहानी भी उपस्थित थे।
बता दें कि महागठबंधन की सरकार बनने के कुछ दिनों के अंदर अगस्त माह में ही उर्दू और बांग्ला शिक्षकों के रिक्त पदों की जानकारी सभी जिला पदाधिकारियों से मांगी गई थी और आनन—फानन में उर्दू शिक्षकों की नियुक्ति कर दी गई, जबकि बांग्ला शिक्षकों का मामला अधर में है।
इस मामले को लेकर राज्य में तीखी प्रतिक्रिया हुई है। भाजपा प्रवक्ता निखिल आनंद ने इसे मुस्लिम तुष्टीकरण की पराकाष्ठा कहा है। उन्होंने कहा, ”राजद की गोद में बैठने के बाद नीतीश कुमार मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति कर रहे हैं। नीतीश कुमार उर्दू अनुवादक, बिहार के हर स्कूल में उर्दू शिक्षक की बहाली और अब हर थाने में उर्दू से जुड़े लोगों की बहाली कर रहे हैं। नीतीश कुमार बिहार को पाकिस्तान न बनाएं। अगर उनको पाकिस्तान—परस्त होने का इतना ही शौक है तो वे पाकिस्तान चले जाएं।”
वहीं केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा, “नीतीश कुमार सरकार संस्कृत पर कोई निर्णय नहीं लेती है, लेकिन उर्दू शिक्षकों और अनुवादकों की बहाली कर रही है। सरकार बनने के 24 घंटे के भीतर तुष्टीकरण की राजनीति शुरू हो गई थी। अब उसकी परिणति दिख रही है।”
पूर्व उपमुख्यमंत्री रेणु देवी ने भी ट्विटर पर कहा है, ‘तुष्टीकरण की दुकान’ खुल गई है। उन्होंने ट्वीट किया, “नई सरकार में संस्कृत पर कोई फैसला नहीं आया है, लेकिन यह उर्दू पर आया है। तुष्टीकरण की दुकान खुल गई है। जो लोग समाज में दुश्मनी फैलाकर राज्य पर शासन कर रहे हैं, उन्हें लोग सबक सिखाएंगे।”
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