भागवत ने कहा कि समस्त हिंदू समाज को महर्षि वाल्मीकि पर गर्व करना चाहिए, क्योंकि वाल्मीकि जी के कारण ही मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम के बारे में हम सब जानते हैं।
गत अक्तूबर को महर्षि वाल्मीकि जयंती के अवसर पर कानपुर के नानाराव पार्क में एक कार्यक्रम का आयोजन हुआ। वाल्मीकि समाज द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत विशेष रूप से उपस्थित थे।
कार्यक्रम में उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए श्री भागवत ने कहा कि समस्त हिंदू समाज को महर्षि वाल्मीकि पर गर्व करना चाहिए, क्योंकि वाल्मीकि जी के कारण ही मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम के बारे में हम सब जानते हैं। उन्होंने कहा कि समाज में सबको बराबरी का अवसर मिलना चाहिए। इसके लिए केवल व्यवस्था बनाने से काम नहीं चलेगा, बल्कि मन बदलना पड़ेगा।
उन्होंने कहा कि राजनीतिक और आर्थिक स्वतंत्रता तभी सार्थक होगी, जब सामाजिक स्वतंत्रता आएगी। इसलिए डॉ. हेडगेवार जी ने 1925 से उस भाव को लाने का प्रयास शुरू किया संघ के रूप में। उन्होंने कहा कि सामाजिक समरसता और अपनेपन के भाव को बढ़ाने के लिए लगातार प्रयास करने होंगे।
बांग्ला में एक कहावत है, ‘अगर अच्छे लोग हैं, अपनेपन को मानते हैं, तो इमली के पत्ते पर भी 9 लोग बैठ सकते हैं।’ यही अपनापन चाहिए। उन्होंने कहा कि दुनिया में जिस व्यक्ति को मनुष्य बनना है, उसके लिए महर्षि वाल्मीकि महत्वपूर्ण हैं, आराध्य हैं। उनकी जयंती सबको मनानी चाहिए।
वाल्मीकि जी ने हमें बताया है कि हमको योग्य होना है तो कैसे होना है। चाहे संकट जैसे हो, हारना नहीं है, अपितु प्रयत्न करते रहना है, आगे बढ़ते रहना है। सहायता अवश्य आएगी। वाल्मीकि जी लिखते हैं कि कुंभकर्ण का वध होने तक रामजी की सहायता के लिए कोई नहीं था। केवल वानर और रामजी।
जब विश्वास हो गया कि श्रीराम जीत सकते हैं, रावण को हरा सकते हैं, तो मदद के लिए इंद्र ने रथ भेजा। इसलिए हमें एक-दूसरे की सहायता करनी है। यही हम लोगों के लिए वाल्मीकि जी का संदेश है।
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