भारतीय संस्कृति व ज्ञान परंपरा से पूरा विश्व लाभान्वित होता रहा है। भारत ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ के विचार के साथ चलने वाला देश है। हम शक्ति की आराधना करते हैं, किंतु उस शक्ति का उपयोग मानवता के हित में होना चाहिए।
गत अक्तूबर को ग्वालियर में ‘राष्ट्रोत्थान न्यास’ की देखरेख में तीन दिवसीय ‘ज्ञान प्रबोधिनी व्याख्यानमाला’ आयोजित हुई। इसका विषय था- ‘हिंदू दर्शन में व्यक्तित्व विकास।’ इस विषय पर अनेक विद्वानों ने अपने विचार रखे। व्याख्यानमाला के समापन सत्र को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल के सदस्य श्री भैयाजी जोशी ने संबोधित किया।
उन्होंने कहा कि बाहरी साधनों के साथ हमें आंतरिक विकास भी करना चाहिए, तभी सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास होगा। श्री जोशी ने स्वामी विवेकानंद का उदाहरण देते हुए कहा कि स्वामी जी कहते थे कि भारत की नींव वैचारिक रूप से हमेशा से मजबूत रही है, बस इसके भवन के जीर्णाेद्धार की आवश्यकता है।
भारत ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ के विचार के साथ चलने वाला देश है। हम शक्ति की आराधना करते हैं, किंतु उस शक्ति का उपयोग मानवता के हित में होना चाहिए। हम शास्त्र का अध्ययन करते हैं, तो शास्त्र की रक्षा के लिए शस्त्र का भी अध्ययन करते हैं।
भारत की श्रेष्ठ परम्पराएं, मान्यताएं ही हमें श्रेष्ठ बनाती हैं। इसी मार्ग पर चलकर भारत पुन: विश्वगुरु बनने के मार्ग पर गतिमान है। भारतीय संस्कृति व ज्ञान परंपरा से पूरा विश्व लाभान्वित होता रहा है।
भारत ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ के विचार के साथ चलने वाला देश है। हम शक्ति की आराधना करते हैं, किंतु उस शक्ति का उपयोग मानवता के हित में होना चाहिए। हम शास्त्र का अध्ययन करते हैं, तो शास्त्र की रक्षा के लिए शस्त्र का भी अध्ययन करते हैं।
इस सत्र के मुख्य अतिथि और जीवाजी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. अविनाश तिवारी ने कहा कि सफलता के लिए लक्ष्य निर्धारण करना जरूरी है। कार्यक्रम की अध्यक्षता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मध्य भारत प्रांत के संघचालक श्री अशोक पांडे ने की। इस अवसर पर अनेक गणमान्यजन उपस्थित थे।
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