प्राचीन भारत की सभ्यता का तो संदेश ही यही है। शक्ति की पूजा हर जगह हुई लेकिन व्यावहारिक स्तर पर उसे अबला बना दिया गया। पूर्वोत्तर में असम ने और दक्षिण में केरल ने व्यावहारिक तौर पर भी मातृशक्ति को प्राथमिकता दी।
लोकमंथन 2022 के समापन सत्र में मुख्य अतिथि केरल के राज्यपाल श्री आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि नारी हमारे लिए अबला हो गई थी। कमजोर, शक्तिहीन। पूर्वोत्तर भारत वह भूभाग है जिसने भारत के प्राचीन मूल्यों, जिसमें मातृशक्ति को ही शक्ति माना गया है, उसी को सरस्वती और लक्ष्मी माना गया है, को लोकपरंपरा के नाते ही सही, जिन्दा रखा है।
प्राचीन भारत की सभ्यता का तो संदेश ही यही है। शक्ति की पूजा हर जगह हुई लेकिन व्यावहारिक स्तर पर उसे अबला बना दिया गया। पूर्वोत्तर में असम ने और दक्षिण में केरल ने व्यावहारिक तौर पर भी मातृशक्ति को प्राथमिकता दी।
श्री खान ने कहा कि ‘‘सुंदरता के अंदर ममत्व है… आकर्षण है… शक्ति है। लेकिन दुर्भाग्य है कि शक्ति की कल्पना को हटा दिया गया। ममत्व, आकर्षण बना रहा। लेकिन असम समेत इस देश के कुछ हिस्सों में शक्ति के रूप में उसकी आराधना और पूजा होती रही। हमारे पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने लिखा है – ‘‘अगर आप सभ्य मानव जीवन जीना चाहते हैं तो आवश्यक है कि आप अपने अंदर करुणा की भावना पैदा करें। यह करुणा का भाव स्त्रियों में नैसर्गिक रूप से आता है। पुरुषों को इसकी आवश्यकता है कि वे कोशिश करके यह भाव अपने अंदर पैदा करें।
राज्यपाल ने कहा कि भारतीय सभ्यता का सबसे बड़ा संदेश यह है कि जो खुद तुम्हारे लिए कष्टदायक है, वह कभी दूसरे के साथ मत करना। जिसे हम लोकपरंपरा कह रहे हैं, वह वास्तव में भारत की सार्वभौमिक दृष्टि है। जिनके पास धन रहा है, फौज रही है, वे कभी भारतीय समाज के आदर्श नहीं रहे। भारतीय समाज के आदर्श हमेशा ऋषि-मुनि रहे।
राजाओं में भी आदर्श वे बने, जिन्होंने मर्यादा की रक्षा की है; जिन्होंने भारतीय सभ्यता को, भारतीय प्रज्ञा को नए आयाम के साथ परिभाषित किया है। अपने समय के शानदार महल तो खंडहर होते हुए हजारों मिल जाएंगे, लेकिन रामायण और महाभारत कभी खत्म नहीं होंगे। मतलब जो चीज मानस से पैदा होती है, वह यदि दिलों में घर कर जाए तो समय उसे खत्म नहीं कर पाता।’’
उन्होंने कहा कि गुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने अपने एक भाषण में कहा था कि भारत तब तक सच्ची आजादी प्राप्त नहीं कर सकता, जब तक यह स्वीकार नहीं कर लिया जाएगा कि भारत की बुनियाद मानस में है। रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने लिखा है कि मुझे भारत की धरती से अगाध प्रेम है। यह प्रेम इसलिए नहीं है कि मैं इस भूभाग में पैदा हुआ हूं। भारत मां के बेटों की चैतन्य आत्मा से जो शब्द निकले, उसको भारत ने विषमतम परिस्थितियों में सुरक्षित रखा। यही कारण है कि भारत से मुझे गहरा प्यार है।
उन्होंने इस्लाम के उदाहरण से अपनी बात स्पष्ट करते हुए कहा कि यह बात सिर्फ भारतीय परंपरा में नहीं है। मोहम्मद साहब, जो कभी भारत नहीं आए, वे मदीने में बैठकर कहते हैं, ‘‘मैं हिन्दुस्तान की सरजमीं से ज्ञान के शीतल झोंके आते हुए महसूस कर रहा हूं।’’ दुनिया में पांच बड़ी सभ्यताएं हैं।
ईरान की सभ्यता वैभव के लिए, चीन की सभ्यता कौशल एवं शासकों के प्रति आज्ञाकारिता के लिए, रोम की संस्कृति सुंदरता के लिए, तुर्कोंकीसंस्कृति बहादुरी के लिए जानी जाती है। भारत की संस्कृति अकेली है जो अपने ज्ञान और प्रज्ञा के संवर्धन के लिए जानी जाती है।
एकल विद्यालय के संबंध में उन्होंने कहा कि ‘जब मैं नागपुर संघ मुख्यालय गया, तब मैं वहां एकल विद्यालय देखना चाहता था। यह संस्था न सिर्फ भारत के पुनर्जागरण, पुनर्निर्माण का कार्य कर रही है बल्कि उन पापों का भी प्रायश्चित कर रही है जो हमसे हुए हैं। बड़े शहरों के लोगों, सुविधा-संपन्न लोगों को यह विद्यालय यह समझाने में कामयाब हुआ है कि तुम्हारी जिम्मेवारी है कि पूर्वोत्तर भारत के सुदूर गांवों में जाकर उनके बच्चों को पढ़ाओ, उनके घर रहकर उनका खाना खाओ। ज्ञान को साझा करने की भूख एकल विद्यालय पैदा कर रही है। यही तप है।’
अंत में उन्होंने कहा, ‘‘हम जितना भी गर्व करें इस सभ्यता पर, वह कम है। जब विषमतम परिस्थितियां थीं, तब भी सुदूर क्षेत्रों में, हमारे ग्रामीण क्षेत्रों में इन मान्यताओं को, इन मूल्यों को, इन आदर्शों को बचाकर रखा गया। यह बहुत महत्वपूर्ण है।’’
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