नागपुर: रेशमबाग परिसर में संघ के विजयादशमी कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि प्रख्यात पर्वतारोही पद्मश्री संतोष यादव शामिल हुईं, इस अवसर पर सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत, प्रांत संघचालक राम हरकरे, महानगर संघचालक राजेश लोया और सह संघचालक श्रीधर गाडगे भी उपस्थित थे। इस दौरान पद्मश्री संतोष यादव ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और सनातन धर्म दोनों का भाव एकसमान है। संघ का कार्य ईश्वरीय है। परिणामस्वरूप सभी को संघ कार्य को देखने, समझने और आगे बढ़ाने की जरूरत है।
संतोष यादव ने कहा कि ‘प्रारब्ध पहले भयो जन्म पाछे’ ऐसा बचपन से सुनती आई हूं, और आज उसका अनुभव हो रहा है। बचपन से मेरे विचार देखकर लोग मुझसे पूछते थे, कि तुम संघी हो क्या? तब मुझे संघ कार्य का बोध नहीं था, लेकिन मेरे क्रियाकलाप और विचारों से लोगों को लगता था, कि मै संघ के विचारों से प्रेरित हूं। उन्होंने कहा कि इसी प्रारब्ध के चलते आज संघ के सर्वोच्च मंच पर आने का सम्मान प्राप्त हुआ है।
इस दौरान उन्होंने यह भी कहा कि पूरे विश्व को चाहिए की संघ के कार्य को देखे, समझे। बतौर यादव भारतीय सभ्यता और संघ दोनों एकसमान है। भारतीय सभ्यता हमें एकसान रहना और जीना सिखाती है। वहीं, संघ के कार्यकर्ता और प्रचारक मातृभूमि एवं विश्वकल्याण के भाव को लेकर आगे बढ़ रहे हैं।
उन्होंने कहा कि संघ सनातन संस्कृति के प्रचार-प्रसार में लीन है। संघ की राष्ट्रभावना मुझे संघ की और आकर्षित करती है। हिमालय से समुद्र तक फैला हमारा देश सनातन राष्ट्र है।
संतोष यादव ने कहा कि सनातन में सृजन का भाव होता है, नष्ट करने का नहीं। मौजूदा समय में विश्व को परेशान करने वाली परिस्थितियां, बाधाएं और समस्याओं का उत्तर सनातन संस्कृति के पास है। विश्व के मानव कल्याण के उद्देश्य को लेकर जीना यही सनातन सभ्यता और संघ का कार्य है।
उन्होंने बाताया, कि बीते 97 वर्षों से संघ के स्वयंसेवक मातृभूमि की सेवा, धर्म की रक्षा और मानवता के कल्याण के लिए प्रयासरत हैं। उन्होंने आह्वान करते हुए, कहा कि स्वयंसेवक अपना यह संकल्प आगे भी बरकरार रखें। संतोष यादव ने कहा कि संघ कार्य को ईश्वरीय कार्य है।
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