राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. श्री मोहन भागवत जी ने नागपुर में विजयादशमी उत्सव के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में उद्बोधन दिया। कार्यक्रम में प्रमुख अतिथि के रूप में पद्मश्री संतोष यादव जी शामिल हुईं।
श्री मोहन भागवत जी ने कहा कि नवरात्रि की शक्ति पूजा के पश्चात विजय के साथ उदित होने वाली आश्विन शुक्ल दशमी के दिन हम प्रतिवर्षानुसार विजयादशमी उत्सव को संपन्न करने के लिए यहां एकत्रित है। शक्तिस्वरूपा जगद्जननी ही शिवसंकल्पों के सफल होने का आधार हैं। सर्वत्र पवित्रता व शान्ति स्थापन करने के लिए भी शक्ति का आधार अनिवार्य है। संयोग से आज प्रमुख अतिथि के रूप में अपनी गरिमामयी उपस्थिति से हमें लाभान्वित व हर्षित करने वाली श्रीमती संतोष यादव उसी शक्ति का व चैतन्य का प्रतिनिधित्व करती हैं। वह दो बार गौरीशंकर की ऊंचाई तक पहुंची हैं।
सरसंघचालक जी ने यह भी बताया कि संघ के कार्यक्रमों में अतिथि के नाते समाज की प्रबुद्ध व कर्तृत्व संपन्न महिलाओं की उपस्थिति की परम्परा पुरानी है। व्यक्ति निर्माण की शाखा पद्धति पुरुष व महिला के लिए संघ तथा समिति की पृथक चलती है। बाकी सभी कार्यों मे महिला पुरुष साथ में मिलकर ही कार्य संपन्न करते हैं। भारतीय परम्परा में इसी पूरकता की दृष्टि से विचार किया गया है। भारत में लोगों ने उस दृष्टि को भुला दिया, मातृशक्ति को सीमित कर दिया। सतत आक्रमणों की परिस्थिति ने इस मिथ्याचार को तात्कालिक वैधता प्रदान की तथा उसको एक आदत के रूप में ढाल दिया । भारत के नवोत्थान के उष:काल की पहली आहट से हमारे सभी महापुरुषों ने इस रूढ़ि को त्यागकर; मातृशक्ति को एकदम देवता स्वरूप मानकर पूजाघर में बंद करना अथवा द्वितीय श्रेणी की मानकर रसोईघर में मर्यादित कर देना, इन दोनों अतियों से बचते हुए उनके प्रबोधन, सशक्तिकरण तथा समाज के सभी क्रियाकलापों में, निर्णय प्रक्रिया सहित सर्वत्र बराबरी की सहभागिता पर ही जोर दिया है। तरह – तरह के अनुभवों की ठोकरें खाकर विश्व में प्रचलित व्यक्तिवादी तथा स्त्रीवादी दृष्टिकोण भी अब इस तरफ ही अपना विचार मोड़ रहा है। वर्ष 2017 में विभिन्न संगठनों में काम करने वाली महिला कार्यकर्ताओं ने भारत की महिलाओं का बहुत व्यापक सर्वेक्षण किया। वह शासन को भी पहुंचाया गया। इसके निष्कर्षों से भी मातृशक्ति की समान सहभागिता की आवश्यकता अधोरेखित होती है। यह कार्य कुटुम्ब स्तर से प्रारम्भ होकर संगठनों तक स्वीकृत व प्रचलित होना पड़ेगा तब और तभी मातृशक्ति सहित सम्पूर्ण समाज की संहति राष्ट्रीय नवोत्थान में अपनी भूमिका का सफल निर्वाह कर सकेगी। इस राष्ट्रीय नवोत्थान की प्रक्रिया को अब सामान्य व्यक्ति भी अनुभव कर रहा है ।
उन्होंने कहा कि जो सब काम मातृ शक्ति कर सकती है वह सब काम पुरुष नहीं कर सकते, इतनी उनकी शक्ति है और इसलिए उनको इस प्रकार प्रबुद्ध, सशक्त बनाना, उनका सशक्तिकरण करना, उनको काम करने की स्वतंत्रता देना व कार्यों में बराबरी की सहभागिता देना अहम है।
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