लोकमंथन के उद्घाटन सत्र में उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने ‘सेलेक्टिव एजेंडा’ चलाने वालों के विरुद्ध बुद्धिजीवियों से मौजूदा मुद्दों पर तार्किक ढंग से बोलने का आह्वान किया। साथ ही, चेताया कि अभी उनकी चुप्पी खतरनाक साबित हो सकती है
असम की राजधानी गुवाहाटी में प्रज्ञा प्रवाह द्वारा 21-24 सितंबर तक राष्ट्रीय संवाद ‘लोकमंथन-2022’ का आयोजन किया गया। इसका उद्देश्य था पूर्वोत्तर के समृद्ध सांस्कृतिक लोकाचार को देश से जोड़ना। कार्यक्रम के तीसरे सत्र का उद्घाटन करते हुए उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भारतीय समाज में बुद्धिजीवियों की भूमिका को रेखांकित किया।
उन्होंने कहा, ‘‘वर्तमान दौर में यदि बुद्धिजीवी चुप रहने का विकल्प चुनते हैं तो समाज का यह बहुत महत्वपूर्ण वर्ग हमेशा के लिए चुप हो जाएगा। समाज में ‘सेलेक्टिव एजेंडा’ चलाने वालों के विरुद्ध उन्हें स्वतंत्र रूप से संवाद और विचार-विमर्श करना चाहिए ताकि सामाजिक नैतिकता और औचित्य संरक्षित रहे।
इसके लिए बुद्धिजीवियों को वर्तमान मुद्दों पर बोलना होगा।’’ उन्होंने कहा कि पूर्व में भारत के संतों ने नीतिगत मुद्दों पर न केवल राजाओं को सलाह दी, बल्कि समाज में सद्भाव व स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए निर्भीकता से लोक के समक्ष अपने विचारों को रखा।
हमारा राष्ट्र अत्यंत प्राचीन होने के साथ-साथ चिरयुवा रहा है। हमारी विशाल युवा जनसंख्या देश ही नहीं, पूरे विश्व की नियति का निर्धारण करेगी। ज्ञान के अपने प्राचीन कोश के साथ भारत की वैश्विक मंच पर महत्वपूर्ण भूमिका है।
— जगदीप धनखड़, उप राष्ट्रपति
उन्होंने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर संविधान सभा में हुई बहस स्वतंत्र और स्वस्थ चर्चा का प्रमाण है, जिसे भारत ने लंबे समय से संजोया है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लोकतंत्र का अमृत बताते हुए उप राष्ट्रपति ने नागरिक समाज के बुद्धिजीवियों से विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच सामंजस्यपूर्ण संतुलन सुनिश्चित करने में सक्रिय भूमिका निभाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि यह कार्य विचार-विमर्श तंत्र के माध्यम से हो सकता है, क्योंकि लोकतांत्रिक मूल्य और मानवाधिकार निश्चित रूप से बुद्धिजीवियों के लिए संवाद और चर्चा के अवसर खोलते हैं।
सभी भारतीयों के बीच साझा सांस्कृतिक सूत्र पर विचार करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘हमारी ‘अद्वितीय सांस्कृतिक एकता’ की सुंदरता और ताकत हमारे राष्ट्रीय जीवन के हर पहलू में परिलक्षित होती है। सांसारिक, पंथनिरपेक्ष मामलों से लेकर उच्च आध्यात्मिक पहलुओं तक, बुआई के मौसम में किसानों द्वारा गाए जाने वाले गीतों से लेकर पर्यावरण के प्रति हमारे समग्र दृष्टिकोण तक भारतीयता की अंतर्निहित एकता को महसूस किया जा सकता है।
हमें स्वयं में ‘अपना इतिहास’ की भावना विकसित करनी होगी, जिसमें लोक परंपराएं, स्थानीय कला रूप और असंख्य बोलियां शामिल हैं। तभी हम वास्तव में मन और आत्मा से स्वतंत्र हो सकते हैं।’’ साथ ही, उन्होंने कहा कि राष्ट्र के रूप में हम इतिहास के एक निर्णायक दौर से गुजर रहे हैं। हमारी विशाल युवा जनसंख्या देश ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व की नियति का निर्धारण करेगी। इसके लिए युवाओं को मानसिक रूप से सशक्त बनाना होगा।
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