हमारी गौरवशाली भूमि दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक है। लेकिन विदेशी आक्रांताओं और यूरोपीय औपनिवेशिक शक्तियों ने कई देशों और महाद्वीपों के मत-पंथ और संस्कृति को पूरी तरह नष्ट कर दिया। लेकिन वे भारत की प्राचीन मान्यताओं और पंरपराओं को नष्ट करने में सफल नहीं हुए।
इस अवसर पर असम के मुख्यमंत्री हिमंता विश्व सरमा ने कहा कि भारतीय लोकाचार और परंपरा को समर्पित लोकमंथन में जो चर्चा होगी, उससे देश में एक सार्थक विमर्श खड़ा होगा। साथ ही, देश को उत्तर-पूर्व की संस्कृति और परंपरा को जानने का अवसर भी मिलेगा।
उन्होंने कहा कि हमारी गौरवशाली भूमि दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक है। लेकिन विदेशी आक्रांताओं और यूरोपीय औपनिवेशिक शक्तियों ने कई देशों और महाद्वीपों के मत-पंथ और संस्कृति को पूरी तरह नष्ट कर दिया। लेकिन वे भारत की प्राचीन मान्यताओं और पंरपराओं को नष्ट करने में सफल नहीं हुए।
भारतीयता की भावना 19वीं सदी और उस समय के नेशन स्टेट की धारणा से काफी पुरानी है। यह कोई 1947 में बना राष्ट्र और भू-खंड मात्र नहीं हैं, बल्कि अनादिकाल से एक राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में रहा है।
—हिमंत बिस्व सरमा, मुख्यमंत्री, असम
सनातन सभ्यता की आंतरिक शक्ति के कारण ही हमारी संस्कृति आक्रांताओं के सामने अपराजेय रही। भारत न केवल एक लोकतांत्रिक देश है, बल्कि हिंदू सभ्यता का देश भी है। भारतीय सभ्यता पर वामपंथियों और सेकुलरों के हमलों के विरुद्ध सामूहिक रूप से जवाब देने की जरूरत है।
सांस्कृतिक रूप से भारत सनातन काल से एक रहा है। हमें वामपंथी विचारकों के उस विचार को अकादमिक रूप से चुनौती देनी है, जो भारत को मात्र संवैधानिक राष्ट्र और राज्यों के संघ के रूप में देखते हैं। हमें इस विचार को प्रचारित करने की जरूरत है कि भारत एक सांस्कृतिक राष्ट्र है। इस धरती से हमारी भावनाएं और आस्थाएं जुड़ी हैं। यह राष्ट्र हमारी मां है।
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