आचार्य स्वामी धर्मेंद्र सच्चे मायनों में तपस्वी थे। वे श्रीरामजन्मभूमि और गोरक्षा सहित कई आंदोलनों में शामिल रहे और जेल भी गए। 1966 में उन्होंने गौ हत्या के विरुद्ध आंदोलन में 52 दिन तक अनशन किया
श्रीपंचखंड पीठाधीश्वर आचार्य स्वामी धर्मेंद्र सनातन धर्म के अद्वितीय व्याख्याकार, प्रखर वक्ता और कवि ही नहीं, हाजिरजवाब भी थे। इस ओजस्वी वाणी के रामानन्दी संत का ओजस्वी संबोधन सुनने के लिए हजारों लोग आते थे। आंदोलनकारी होने के साथ-साथ वे श्रेष्ठ रामकथा वाचक भी थे। विश्व हिंदू परिषद के केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल में रहे आचार्य धर्मेंद्र श्रीरामजन्मभूमि आंदोलन से जुड़े बड़े चेहरों में से एक थे। उन्होंने देशभर में राम मंदिर आंदोलन के लिए सभाएं की थीं।
बाबरी विध्वंस मामले में विशेष सीबीआई अदालत ने जब सभी 32 आरोपियों को बरी किया था, तब उन्होंने कहा था, ‘‘सत्य की जीत हुई। जितने भी पुराने दाग हैं, हम सब मिलकर उन्हें धोएंगे।’’ उन्होंने ही कहा था, ‘‘यह तो पहली झांकी है, काशी-मथुरा बाकी है।’’ बाबरी विध्वंस मामले में आचार्य धर्मेंद्र भी आरोपी थे। बाबरी विध्वंस मामले में अदालत का फैसला आने से पहले उन्होंने कहा था, ‘‘मैं आरोपी नंबर वन हूं। सजा से डरना क्या? जो किया सबके सामने किया।’’
आचार्य धर्मेंद्र का पूरा जीवन हिंदी, हिंदुत्व और हिंदुस्थान के उत्कर्ष के लिए समर्पित रहा। वे सच्चे मायने में तपस्वी थे। उनका जीवन अपने पिता महात्मा रामचंद्र वीर महाराज की तरह ही संघर्षपूर्ण रहा। वे कई आंदोलनों में शामिल रहे और जेल भी गए। 1966 में उन्होंने गौ हत्या के विरुद्ध आंदोलन में 52 दिन तक अनशन किया। 8 वर्ष की अल्पायु से 80 वर्ष तक उनके जीवन का हर क्षण राष्ट्र और मानवता की सेवा, आंदोलनों और प्रवासों में बीता।
वे ओजस्वी वक्ता ही नहीं, बल्कि हाजिर जवाब और लेखनी के भी धनी थे। स्वामी धर्मेंद्र पर पिता के आदर्शों और व्यक्तित्व का पूरा प्रभाव था। जब वे 13 साल के थे, तब उन्होंने ‘वज्रांग’ नाम से एक समाचार-पत्र निकाला और 16 की उम्र में ‘भारत के दो महात्मा’ नाम से चर्चित लेख लिखा। यही नहीं, 1959 में हरिवंश राय बच्चन की ‘मधुशाला’ के जवाब में ‘गोशाला’ काव्य लिखा।
आचार्य धर्मेंद्र कहते थे, ‘‘दुनिया में भारत ही एकमात्र देश है, जिसे मां कहा जाता है और जन्मभूमि मुझे स्वर्ग से भी प्रिय है। जिस प्रकार लोकमान्य तिलक कहते थे कि स्वतंत्रता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, उसी तरह मैं कहता हूं कि अपनी मातृभूमि हिंदुस्थान में अखंड हिंदू साम्राज्य स्थापित करना हिंदुओं का जन्मसिद्ध अधिकार है।
हिंदुत्व को पारिभाषित करते हुए उन्होंने कहा था कि यह विश्व वात्सल्यमयी करुणा हिंदुत्व की मूल प्रकृति है, उसका स्वभाव है। अग्नि के समान तेजस्विता, दुर्दमनीयता, अजेयता और संसार को अभय देने की क्षमता उसका कर्म है।
यह प्रत्येक हिंदू का कर्तव्य है कि वह इन गुणों से परिपूर्ण हो। महात्मा गोपालदास जी उनके अग्रज थे। हिंदुओं पर मुगल शासक औरंगजेब द्वारा लगाए गए शमशान कर के विरोध में उन्होंने अपना बलिदान दिया था। मुगल सेना के अत्याचारों और जजिया कर से स्वामी गोपालदास इतने क्षुब्ध थे कि दिल्ली में मुगल दरबार में पहुंच गए और औरंगजेब को हिंदुओं पर जुल्म न करने की चेतावनी देते हुए बंदी बनाए जाने से पहले ही कृपाण से अपना पेट चीर कर प्राण विसर्जित कर दिए।
हालांकि स्वामी धर्मेंद्र गृहस्थ थे, लेकिन उन्हें संतों के सामान आदर और सम्मान प्राप्त था। उनके दो पुत्र हैं- सोमेंद्र शर्मा और प्रणवेंद्र शर्मा। सोमेंद्र की पत्नी अर्चना शर्मा कांग्रेस में हैं और दो बार विधानसभा चुनाव भी लड़ चुकी हैं। फिलहाल, वे राजस्थान में समाज कल्याण बोर्ड की अध्यक्ष हैं।
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